हम ने तनख्वाह की रकम पत्नी के हाथ पर रखी, मगर इस बार पत्नी के चेहरे पर तनख्वाई झलक सफाचट नजर आई। आज उनके चेहरे पर परंपरागत प्रणय भाव का अभाव था। तनख्वाह वाले दिन उनके चेहरे पर अभाव के ऐसे भाव पहले कभी देखने में नहीं आए। तनख्वाह दिवस पर तो वे शरबत में नहाई रसभरी की माफिक नजर आती रही हैं। चेहरे पर ऐसे ही रसीले भाव देखकर हमारा पौत्र अक्सर कह देता है, 'दादीमां आज तो सैक्सी-सैक्सी सी लग रही हो।'
आशा के विपरीत नाक-भौ सिकोड़ते हुए पत्नी बोली, 'अब ऐसे नहीं चलेगा जी। महीने में पूरे तीस दिन लंच बांध कर ले जाते हो, तनख्वाह अट्ठाइस दिन की ही लाते हो। सुनो जी! दस हजार में तो बस डिनर, ब्रेकफास्ट ही मिलेगा। लंच का इंतजाम कहीं और कर लेना या फास्ट रख लेना। हथेली पर पंद्रह हजार रखोगे तभी लंच, डिनर दोनों मिलेंगे। ब्रेक फास्ट भी चाहिए तो कपड़े धुले-धुलाए नहीं मिलेंगे। कपड़े धुले-धुलाए पहनने हैं तो ब्रेक फास्ट की छुट्टी। सभी सुविधाएं चाहिए तो बीस हजार रुपये महीने देने होंगे।'
तनख्वाह के दिन भी पत्नी का तनखईया व्यवहार देख हमारे तनख्वाही गौरव एक ही झटके में चूर-चूर होता दिखलाई दिया। हम सोचने लगे, दफ्तर से घर के लिए चले थे, होटल कैसे पहुंच गए?
हमने साहस जुटाया और शंका समाधान के लिए श्रीमती जी से पूछा, 'यह क्या जी, यह सौदा कैसा जी?' श्रीमती जी फरमाई, 'सच्चा सौदा है, जी! पैकेज संस्कृति का युग है, जी। यह हमारा घरेलू पैकेज है, जी।' हमने माथा ठोका और मन ही मन सोचा, 'यह तो गजब हो गया जी, पैकेज संस्कृति की हवा के झोंके होटल से घर तक पहुंच गए जी।'
कल ही की तो बात है, अस्पताल के पैकेज को लेकर जब मास्टर जी अपना मुकद्दर कोस रहे थे। दरअसल मस्टराइन की डयू डेट नजदीक थी। मास्टर जी जच्चा-बच्चा अस्पताल के चक्कर लगा रहे थे, पैकेज का जोड़-भाग लगा रहे थे। सिंगल डिलवरी का पैकेज दस हजार रुपए डबल का बीस हजार, मगर डबल पर 25 प्रतिशत की छूट मिलेगी। अर्थात डबल डिलवरी पर कुल 15 हजार रुपये का खर्चा आएगा। जी ने घटा-जोड़ लगाया, दिमाग में बिजली से कौंधी, '15 हजार में क्यों न दो प्राप्त कर लूं! पैदावार के मामले में ईश्वर हम पर पहले ही से मेहरबान है, साल भर बाद फिर अस्पताल के चक्कर लगाने होंगे, फिर दस हजार खर्च करने पड़ेंगे। अच्छा है, एक बार में ही किस्सा निपटा लूं। '
मास्टर जी ने 25 प्रतिशत की छूट का लाभ उठाते हुए अस्पताल में 15 हजार रुपए जमा कर दिए। मगर ऊपर वाले ने साथ नहीं दिया, बदकिस्मती से मस्टराइन ने एक ही बच्चा जना।
डाक्टर पांच हजार रुपये वापस करने लगा। मास्टर जी को बुरा लगा। वे बोले, 'रुपये वापस नहीं चाहिए। पांच हजार का घाटा क्यों उठाऊं। अग्रीमंट डबल डिलवरी के पैकेज का हुआ था। पेमेंट भी उसी हिसाब से किया था। पांच हजार अपने पास रख, हजार-पांच सौ और चाहिए तो बोल, मगर पैकेज के हिसाब से बच्चा एक नहीं दो लूंगा।'
डाक्टर परेशान था। मास्टर को पैकेज का अर्थ समझाया और फिर बताया, 'डिलीवरी सिंगल हो या डबल, इसमें डाक्टर का कोई रोल नहीं है। ऊपर वाले की कृपा है, तुम्हारा मुकद्दर।'
अस्पताल में यदि पैकेज न होता तो बैठे-बिठाए मास्टर को नकद पांच हजार का घाटा न होता। मास्टर जी तभी से कभी अपने मुकद्दर को तो कभी अस्पताल के पैकेज को कोस रहें हैं। कैसी अजीब बात है, घर में पैकेज, होटल में पैकेज, हास्पिटल में पैकेज। पैकेज संस्कृति न हुई सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हो गया। जहां देखो उसी की रामधुन।
21 वी सदी अर्थ और संस्कृति का पुनर्जागरण काल है। तरह-तरह के घोटाले व पैकेज स्कीम ने अर्थ व संस्कृति के क्षेत्र में इस सदी ने नए आयाम स्थापित किए हैं, क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। अब तो लगता है, 22 वी सदी के आते-आते दोनों क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन का बिगुल बज जाएगा और तब पैकेज संस्कृति राजनीति, घर, होटल व हास्पिटल से निकल कर मरघट तक पहुंच जाएगी। तब मुन्नालाल की यही कामना होगी काश पिताश्री व माताश्री दोनों की आत्माएं एक साथ ही परमात्मा में लीन हो जाए और अंतिम संस्कार पैकेज का लाभ मिल जाए।
संपर्क : 9868113044
वाह सर जबरदस्त व्यंग्य है. सच है यही हालत है सब जगह. नई संस्कृति है ये पैकेज संस्कृति. अभी तो और निखरेगी और बिखरेगी. अस्पतालों से होते हुए शमशान तक पहुँचेगी. वंहा क्या आलम होगा राम जाने?
ReplyDeleteljlknj iz.kke]
ReplyDeletevki dk yss[k iSdt i<+k tksfd vkt ds thou dh lpkbZ gSA
oks fnu Hkh nqj ugh tc vkSykn ekrk firk ds fu/ku dk iSdt
'e'kku ls ysdj xqq:.k Hkxoku dh dFkk] gfj}kj o dq:{ks= esa fiaM nku
lfgr lkSnk djrs feysxsA
vkidk lsod
jfo nqvk
16-11-2007
le; 3-03 nksigj
ljlknj iz.kke]
ReplyDeletevki dk yss[k iSdt i<+k tksfd vkt ds thou dh lpkbZ gSA
oks fnu Hkh nqj ugh tc vkSykn ekrk firk ds fu/ku dk iSdt
'e'kku ls ysdj xqq:.k Hkxoku dh dFkk] gfj}kj o dq:{ks= esa fiaM nku
lfgr iSdt ls lkSnk djrs feysxsA
vkidk lsod
jfo nqvk
16-11-2007
le; 3-03 nksigj
सर सादर परनाम,
ReplyDeleteआप का लेख ''पैकेज'' आज पड़ा बहुत ठीक लगा ये आज की वास्तविकता है आप की आखरी पंक्तिया कही हम माता पिता के अन्तिम संस्कार के पैकेज के रुप मे न ले , तो हमारे लिये ठीक होगा ,दिली सरकार भी जल्द सीन्जी शमशान बनाने जा रही है .शव की अस्तिया भी मात्र दो घंटे मे मिल जाएगी कही एक ही दिन के पैकेज मे गुरुर कथा व हरिद्वार,पिंड दान सहित सभी कार्य पैकेज के तहत संपूर्ण न हो जाए , कही आप का पैकेज यहाँ सत्य न हो जाए !
आप का सेवक
रवि दुआ
दिली से
१६.११.२००७
समय
११.५४ रात्रि