Monday, October 8, 2007

शिक्षा के क्षेत्र में हरित क्रांति


शिक्षा के क्षेत्र में हरित क्रांति
राजेंद्र त्यागी
कल एक समारोह में गया था। समारोह में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए शिक्षाशास्त्री सम्मान प्रदान किया जाना था। सम्मान के लिए आदर के साथ नाम की घोषणा की गई। माननीय मुन्नालाल मंच पर पधारे। शक्ल-सूरत देख कर हम हतप्रभ रह गए। हमारे अन्त: करण से आवाज आई, ''अरे! ये तो अपना मुन्नाभाई पानवाला है। पानवाले से शिक्षाशास्त्री हो गया!'' मैं उसकी ऊंगलियों में पैन की स्याही के दाग खोजने की चेष्टा करने लगा। प्रत्येक चेष्टा में मुझे उसके हाथों में कत्थे-चूने के दाग पाए। हमने अपने मित्र को पीड़ा से अवगत कराया, ''भइया! मुन्नाभाई और शिक्षाशास्त्री! इसके लिए तो काला अक्षर और भैंस दोनों एक समान हैं।'' मित्र ने व्यंग्य किया है, ''मुन्नाभाई समाजवादी हैं, अत: भेदभाव उनकी प्रकृति में नहीं हैं।''
हम गंभीर थे, हमारे मित्र के मन में व्यंग्य-पुष्प खिल रहे थे। हमने अपनी गंभीरता का अर्थात दोहराया, ''ये जनाब तो पान, बीड़ी-सिगरट का हिसाब भी नहीं लिख पाते। जब पान खाने जाता था, तब मैं ही लिख कर आता था। अनपढ़ व्यक्ति और शिक्षाशास्त्री!'' हमने आश्चर्य भाव से पुन: प्रश्न किया। हमारे प्रश्न का उत्तर मित्र ने प्रश्नवाचक भाव में दिया, ''अक्ल बड़ी या भैंस?'' हम बोले, ''अक्ल!'' मित्र बोला, ''फिर काले अक्षर और भैंस के बीच समानता क्यों खोजते हो? दोनों के मध्य समानता का अख्यान देते समय अक्ल के तथ्य को क्यों भूल जाते हो? काला अक्षर और भैंस के मध्य समानता का आकलन अतीत का आख्यान हो गया है। अब अक्ल और भैंस के मध्य अनुपातिक समीकरण का जमाना है, अत: बिना भाव भावना को नीलाम कर दो और अक्ल से काम लो।''
मुन्नालाल को शिक्षाशास्त्री का तमगा मिलता देख हमारी अक्ल हमारा दामन छोड़ कर कहीं चली गई। भूखी भैंस की तरह शायद कहीं घास चरने गई होगी, यह सोच कर हमने संतोष किया। किंतु मित्र हमारी अक्ल को वापस हांक कर लाने के प्रयास में जुट गया। वह बोले, ''सुनो भाई! यह शिक्षा के क्षेत्र में हरित क्रांति का जमाना है।'' हमने पुन: आश्चर्य उडेला, ''शिक्षा के क्षेत्र में हरित क्रांति! हरित क्रांति का संबंध तो कृषि क्षेत्र से है? रास्ता भटकी भैंस की तरह हरित क्रांति शिक्षा के क्षेत्र में कहां से घुस आई़?''
मित्र ने माथा ठोका और फिर बोला, ''लगता है, तुम्हारी अक्ल अभी तक किसी घूरे पर घास चर रही है, लौट कर नहीं आई है।'' हमें सांत्वना देने के लहजे में वह फिर बोला, ''कोई बात नहीं, ध्यान से सुना, एकाग्रचित्त हो कर सुनों, लौट आएगी। श्कि्षा के क्षेत्र में हरित क्रांति सावन के अंधे की तरह नहीं आई है। वास्तव में आई है। शिक्षा के क्षेत्र में घुस कर तो देखो चारों तरफ हरा ही हरा नजर आएगा।''
हमने पुन: जिज्ञासा व्यक्त की, ''कैसे?'' वह बोला, ''हरा रंग खुशहाली का प्रतीक है, हरित क्रांति माल पैदा करने का प्रतीक है। शिक्षा के क्षेत्र में चारों तरफ माल ही माल है। जो भी इस क्षेत्र में घुस गया मालामाल हो गया। अपने मुन्नालाल का भी यही हाल है।'' हमने अगला प्रश्न किया, '' कैसे?'' वह बोला, ''अपने मुन्नलाल भाई पानवाले के चार इंजीनियरिंग कालेज हैं, दो मेडीकल कालेज हैं और पांच बिजनेस मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट हैं। भाई अब पानवाले नहीं इंस्टीट्यूट वाले हैं। भई अब मालामाल हैं, शिक्षाशास्त्री हैं।'' ''..किंतु यह हुआ कैसे?'' हमने पूछा। मित्र ने बताया, ''हमारी सलाह पर। मुन्नालाल एक दिन बोले, पान के काम में ससुर पैसा तो है, पर इज्जत ना है। कछु ऐसा काम बताओ जिसमें पैसा भी हो और ससुर इज्जत भी। हम बोले, भाई इंस्टीटंयूट खोल लो। मुन्नालाल बोले, मगर हम तो ससुर काला अक्षर भैंस बराबर है। पढ़ाई-लिखाई से तो हमारा जन्म-जन्म का बैर है। हम बोले बैर का त्याग करो, दोस्ती कर लो। अक्ल से काम लो अकबर बन जाओ, बीरबलों की कमी नहीं है। एक ढूंढों के हजार मिल जाएंगे। बस मुन्नालाल की अक्ल में हमारी बात धंस गई और शिक्षाशास्त्री हो गए। अगली सरकार में शिक्षामंत्री भी हो जाएंगे।'' मुन्नलाल पानवाला शिक्षाशास्त्री हो गया। हम बीरबल बने शिक्षा के क्षेत्र में हल चलाने में व्यस्त हैं। मुन्नालाल अकबर बन हरित क्रांति का माल लूटने में व्यस्त है।