Monday, November 12, 2007

दोस्त दुनियां में नहीं दाग से बेहतर

पानी और दाग, इन दोनों ने अपने आप को राष्ट्रीय समस्या के रूप में प्रस्तुत किया है। देश के कर्णधारों के समक्ष ये दोनों समस्याएं प्रधान है और शेष सभी गौण। यह भी कहा जा सकता है कि शेष सभी समस्याएं स्वयं समाप्त हो गई हैं। स्वाभाविक भी है, शहर में जब कोई बड़ा दादा पैदा हो जाता है तो बाकी दादा दुम दबाकर इधर-उधर हो जाते हैं। दोनों समस्याओं का साथ-साथ अवतरित होना महज संयोग नहीं है। चोली-दामन के संबंध की परंपरा में दोनों के बीच उसी तरह का पवित्र व अटूट गठजोड़ है, जिस तरह चोर-सिपाही, अपराध-राजनीति और नेता-दलाल के बीच।
आप सोच रहें होंगे कि चोर-सिपाही, अपराध-राजनीति और नेता दलाल की बात तो उचित है, मगर पानी संकट से दाग का क्या संबंध? है, अवश्य है! पवित्र इस गठजोड़ को आप इस प्रकार समझिए, जब पोखर का पानी उतरने लगता है तो तलहटी में जमी गाद चमकने लगती है। इसी प्रकार जब आंखों का पानी सूखने लगे और चेहरे का पानी उतरने लगे तो क्या होगा? वही होगा जो होता आया है और वही हम कह रहे हैं। अर्थात पानी उतरेगा तो दाग उभरेगा।
रहीम दास के मोती, मानस व चून नहीं हैं दाग, जो पानी उतरने पर उबरना बंद कर दे। दाग उभरता ही तब है, जब पानी उतरता है। यहां हम रहीम के 'मानस' की बात नहीं कर रहें हैं, क्योंकि उससे हम सहमत नहीं हैं। हमारा मानना है कि दाग की तरह कोई भी मानस तभी उभरता है, जब उसका पानी उतर जाता है। इस सूत्र के माध्यम से मानस व दाग के पारस्परिक संबंधों की भी व्याख्या की जा सकती है और कहा जा सकता है कि मानस के साथ दाग के बीच भी चोली दामन का संबंध है। अत: पानी और दाग के बीच प्रगाढ़ संबंध स्वत: सिद्ध है।
राष्ट्र की मूल समस्या नेताओं पर दाग की है अर्थात दागी नेताओं से जुड़ी है। यही वह समस्या है, जिसके कारण लोकतंत्र खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। मगर समस्याओं की हमारी सूची में यह कोई समस्या ही नहीं है। इस कहावत पर जरा गौर कीजिए, 'वह मर्द ही क्या, जिसके ऊपर चार लांछन न हों।' सही बात है मर्द होगा तो लांछन होंगे ही। यह कहावत नेताओं पर भी शत-प्रतिशत लागू होती है, मगर कुछ अलग तरह से, 'वह नेता ही क्या जिसके कुर्ते पर दाग न हो।' इस नीति वाक्य को इस प्रकार भी कहा जा सकता है, 'नेता है तो दाग भी होगा ही।' दाग बगैर नेता की कल्पना करना उसी प्रकार गैरवाजिब है जिस तरह कर झूठखोरी के बिना व्यापार और घूसखोरी के बिना फाइल का खिसकना। इन सभी के बीच अर्थशास्त्रीय संबंध है।
नेता और दाग के बीच अटूट रिश्ता होने के कारण ही कभी-कभी तो यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि नेता में दाग है या नेता ही दाग है। यह ''दाग बीच नेता है कि नेता बीच दाग है। दाग ही नेता है कि नेता ही दाग है॥'' की स्थिति है। चूंकि नेता व दाग के बीच प्रेम संबंध हैं, अत: राजनीति से दाग का सीधा संबंध है। आप राजनीति करें और बेदाग रह जाएं, ऐसा संभव नहीं। अब आप ही बताइए, काजल की कोठरी में रह कर बेदाग रहना क्या संभव है? कोयले की दलाली करोगे तो मुंह न सही हाथ तो काले होंगे ही।
राजनीति के दाग इतने गहरे होते हैं कि छुटाए नहीं छूटते। ''कितना कमबख्त है यह दाग, बहुत छुड़ाया मगर छूट न सका।'' पीछा छुड़ाने की बात छोड़िए, जितना छुड़ाओगे उतना ही गहरा होता जाएगा-
''हजरत-ए-दाग जहां बैठ गए, बैठ गए
और होंगे तेरी महफिल से उभरने वाले।''
लानत भेजिए ऐसी राजनीति करने वालों पर, जिनके कुर्ते बेदाग हैं। दरअसल राजनीति एक राष्ट्र स्तरीय हमाम है और हमाम में सब नंगे हैं। अब सवाल यह पैदा होता है कि हमाम में जब सभी नंगे हैं, अर्थात राजनीति में जब सभी दागदार हैं, तो फिर यह शोर क्यों? सवाल का जवाब है, 'जब आदमी पानी में डूबा हो, तो उसे अपने दाग नहीं दिखते हैं।' सिर पर घड़ो पानी पड़ा हो और आप पानी-पानी हो गए हो, फिर कैसे दिखेंगे अपने दाग। मगर ऐसे लोगों की हकीकत कुछ इस तरह है-
''वो जमाना भी हमें याद है तुम कहते थे,
दोस्त दुनियां में नहीं दाग से बेहतर।''
अंत में हम तो बस यही कहेंगे-
''कोई मिटाता है, दाग-ए-दिल, ऐ दाग
जलेगा यह चिराग महशर तक।''

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