Saturday, April 19, 2008

आम आदमी हटाओ देश बचाओ

आज सुबह घर में बोरिया-बिस्तर सहित एक मित्र का शुभागमन हुआ। कहने लगे, दिल्ली-दर्शन के लिए आया हैं। हम समझ गये कम से कम हफ्ता-पंद्रह दिन के लिए महंगाई में आटा गीला होने के आसार पैदा हो गए हैं। मित्र अतिथि के रूप में आए थे, क्योंकि उनके शुभागमन पूर्व निर्धारित न था, इसलिए हम बहाना बनाने के अवसर से भी वंचित रह गए। आगंतुक अतिथि हो या सतिथि महंगाई के इस जमाने में बलात आरोपित 'सेवा-कर' के समान लगते हैं। दो-चार दिन खर्च ज्यादा ही सही कम से कम सेवा का पुण्य तो प्राप्त होगा, मौजूदा दौर में इस आत्म-वंचना सुख से भी आदमी वंचित ही रहता है, क्योंकि अब सेवा करने से मेवा नहीं, सेवा-कर प्राप्त होता है। खैर सुबह ही सुबह आई मुसीबत को हमने नए सरकारी-कर की तरह स्वीकार कर लिया। यह स्वीकारोक्ति हमारी मजबूरी थी, इसके अलावा चारा भी क्या था। शायद इसे ही 'मजबूरी का नाम महात्मा गांधी' कहते हैं।
उनके शुभागमन और कम से कम हफ्ता-भर अतिथि-सत्कार का शुभ अवसर प्राप्ति का शुभ समाचार हमने पत्नी को सुनाया। समाचार सुनते ही उनकी भवें मुद्रास्फीति की तरह तन गई। उनके इरादे भांप हम सहज भाव से बोले, 'अतिथि देवो भव:'! वे बोली देवता है, तो उसकी किसी मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा कर दो। वास्तुशास्त्र के हिसाब से घर में देवता की प्राण-प्रतिष्ठा शुभ नहीं रहती है। वैसे भी देवता घर में रहेगा, तो उस पर चढ़ाने के लिए पान-सुपारी भी तो चाहिए। यहां रोटी के लाले पड़ रहे हैं, देवता के लिए पान-सुपारी का प्रबंध कहां से होगा? ऊपर का सुर साधते हुए पत्नी बोली, 'देवी दिन काट रही है, भक्त पर्चे मांगने में लगे हैं!'

पत्नीजी ने वाणी को अल्प विराम दिया और अनचाहे विज्ञापन के मॉडल की तरह हमने डॉयलाग झाड़ा, 'कोई बात नहीं, इनके चले जाने के बाद अपना लाइफ-स्टाइल कुछ दिन के लिए चेंज कर लेंगे। दो वक्त की जगह कुछ दिन एक वक्त ही भोजन कर बजट को पुन: सर्वहित बजट बना लेंगे।'
पति-पत्नी के मध्य जारी त्रासद संवाद के दौरान मित्र बाहर वाले कमरे में खुद को स्थापित करने की कवायद में जुटे थे। हम उनके पुरषार्थ से अभीभूत थे। जब हम उनके पास पहुंचे तो वे समाचार पत्र के पन्ने पलट रहे थे। हमें देख कर बोले- देखो महंगाई घटाने के लिए सरकार ने सीआरआर बढ़ा दिया है। अब देखते हैं, महंगाई कैसे पांव पसारती है। हमने प्रश्न किया- क्यों भाई सीआरआर से महंगाई का क्या संबंध? वे बोले- इससे पैसे का प्रवाह कम हो जाएगा अर्थात फिजूल खर्ची के लिए लोगों की जेब में पैसे ही नहीं होंगे। होम लोन-कार लोन पर ब्याज दर में वृद्धि हो जाएगी, तो कार-मकान सस्ते हो जाएंगे। उनका आर्थिक दर्शन सुन हमने जिज्ञासा व्यक्त की- फ्रिज, एसी, मोबाइल फोन, कार तो पहले ही सस्ते थे अब मकान भी सस्ते हो जाएंगे, मगर इससे आम आदमी की नून-तेल-लकड़ी की महंगाई पर क्या असर पड़ेगा?
मित्र थोड़ा गंभीर हो कर बोले- महंगाई पहले भी कहां थी? यह तो आम आदमी के लाइफ-स्टाइल चेंज करने के कारण थोड़े पांव पसार गई थी। अब जब पैसा ही नहीं होगा, तो फिर पुराना लाइफ-स्टाइल ही अपनाना पड़ेगा। महंगाई स्वत: ही कम हो जाएगी। हमने अगला प्रश्न किया- तो क्या लाइफ-स्टाइल में परिवर्तन कर आम आदमी नून-तेल-लकड़ी ज्यादा सटकने लगा था..? हमारा अधूरा प्रश्न सुनते ही वे तपाक से बोले- पुरानी बात छोड़ो, मगर अब जब पैसे ही जेब में नहीं होंगे, तो नून-तेल-लकड़ी भी कम खरीदेगा। इस तरह इनके दाम भी घट जाएंगे। इतना कहने के बाद मित्र रहस्य पूर्ण मुद्रा में बोले-यह आम आदमी ही सारी समस्याओं की जड़ है। आम आदमी के कारण ही महंगाई बढ़ती है, उसके कारण ही कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है।
मित्र का आर्थिक दर्शन सुन हम सोचने लगे- सत्य वचन! आम आदमी ही समस्याओं का मूल है। महंगाई बढ़े या बाजार में पैसे का प्रवाह कम हो, आम आदमी के लिए नून-तेल-लकड़ी त्रसदी का कारण ही बनी रहेंगी। क्योंकि यह देश नून-तेल-लकड़ी वाले आम आदमी के लिए नहीं है। कुछ खास लोगों के लिए है, जिन्हें महंगाई नहीं खाती, वे महंगाई को खाते हैं। इस देश में आम आदमी न हो तो सभी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाएंगी। राजनैतिक दलों को आगामी चुनाव में गरीबी हटाओ जैसे दकियानूसी नारे के स्थान पर आम आदमी हटाओ देश बचाओ जैसे प्रभावी नारे हवा में उछालने चाहिए।
संपर्क – 9868113044