Thursday, April 24, 2008

बापू कैद में (व्यंग्य नाटक) - दो

(गतांक से आगे)----
(मुन्नालाल घुटनों के बल समाधि में प्रवेश करता है और बापू के चरण स्पर्श कर दबाने लगता है। आशीर्वाद के लिए बापू का दायां हाथ उसकी तरफ उठता है)
बापू (मुसकराते हुए) :
अच्छा, मुन्नालाल! आज तक मेरी पुण्य तिथि मनाई जाती है और वह भी श्रद्धा के साथ? इसका मतलब मैं आज भी प्रासंगिक हूं?
मुन्नालाल (ग्लानि भाव से) : ...श्रद्धा नहीं, श्राद्ध कह, बापू और पुण्य तिथि पर ही क्यों? ...प्रतिदिन मनाते हैं, तेरे भक्त। ...तेरे श्राद्ध के नाम पर ही तो हलवा-पूरी खा रहें हैं, देश के कर्णधार।
बापू (झुंझलाते हुए) : पुत्र, कभी तो पॉजेटिव हो जाया कर। जब भी आता है नीन-मेख ही निकालता आता है। ...पता नहीं तू और इस देश के अखबार कब पॉजेटिव होंगे?
मुन्नालाल : ...नेगेटिव को नेगेटिव कहना क्या पॉजेटिव नहीं है, बापू? ...बापू, मैं नेगेटिव नहीं, पॉजेटिव ही हूं। ...तेरे समक्ष असत्य नहीं सत्य ही का बखान कर रहा हूं। ...हां, बापू! तेरे नाम के सहारे ही मलाई मार रहे हैं, तेरे कथित शिष्य।
बापू (क्रोध का इजहार करते हुए) : ऐसा है तो, साधन और साध्य की पवित्रता...? (क्षोभ व्यक्त करते हुए) ...फिर तो, साधन भी अपवित्र और साध्य भी, हे राम, हे राम, हे राम!
मुन्नालाल (हँसते हुए) : अब तू भी नेगेटिव हो गया है, बापू!
बापू (मुन्नालाल को बीच ही में टोकते हुए) : ...वह कैसे पुत्र?
मुन्नालाल (मुसकराते हुए) : बापू! इतना भी नहीं समझता। ...अरेऽ ...बापू, दोनों ही तो पवित्र हैं, साधन भी और साध्य भी।
बापू (शब्दों पर जोर देते हुए) : ...वह कैसे पुत्र?
मुन्नालाल (रहस्यमयी अंदाज में) : बताता हूं, बताता हूं, धैर्य रख, बताता हूं। ...देख बापू! तेरे नाम पर खा रहें हैं, इसलिए तू साधन हुआ और तुझ से पवित्र और कौन हो सकता है, बापू? ॥तेरे शिष्य खुद खा रहे हैं, अर्थात 'चेरेटि बिगेंस फ्रॉम होम'। (विराम) बापूऽऽऽ! ॥ऐसे ही तो समाजवाद आएगा और आर्थिक समानता की तेरी अवधारण पूरी होगी। ...है-ना, साधन और साध्य दोनों पवित्र!
बापू (पीड़ा के साथ आसमान के तरफ मुंह उठाकर) : ...हे राम, हे राम, हे राम!
मुन्नालाल (मुसकराते हुए) : अच्छा, बापू! तू प्रासंगिकता की बात कर रहा था, ना? अरे, फिक्र न कर बापू! जब तक तेरे नाम का सिक्का चलता रहेगा, तब तक तू प्रासंगिक ही रहेगा।
बापू : अच्छा एक बात बता मुन्नालाल! ...जनता उनके खिलाफ सत्याग्रह क्यों नहीं करती?
मुन्नालाल (व्यंग्य भाव से) : करती तो है, बापू! ...अभी चार दिन पहले ही तो बसों में आग लगाई थी। चांदनी चौक लूटा था।
बापू (आश्चर्य व क्षोभ के साथ) : अरे, मूर्ख! मैं उपद्रव की नहीं, सत्याग्रह की बात कर रहा हूं!
मुन्नालाल (व्यंग्य भाव से) : अरे, पूज्य बापू! ...मैं भी तो सत्याग्रह की ही बात कर रहा हूं। ...लोकतांत्रिक सत्याग्रह की!
बापू (क्षोभ व्यक्त करते हुए) : यह कैसा सत्याग्रह! ...यह तो दुराग्रह है ...हिंसा का प्रदर्शन है...!
मुन्नालाल (पुन: व्यंग्य भाव से) : अरे नहीं बापू! ...दुराग्रह नहीं, हिंसा भी नहीं, बस वक्त के साथ बदलती परिभाषा है। (मुसकराते हुए) तेरे लिए तो खुशी की बात है बापू, बदलते इस दौर की बदलती परिभाषा में भी तेरा नाम नहीं भूले हैं, तेरे भक्त। बदलते इस दौर के सत्याग्रह के साथ भी तेरा ही नाम जुड़ा है!
बापू (क्षुब्ध भाव से) : हे राम, हे राम, हे राम! ऐसा है तो मुझे नहीं चाहिए अब और नाम। ॥यही सत्य है तो उनसे कह दे भूल जाएं मुझे।
मुन्नालाल : कैसे कह दूं, उनकी भावना को ठेस पहुंचेगी। ...बैठे-बिठाए यह तो हिंसा हो जाएगी।
बापू (जिज्ञासा भाव से) : ...मगर, मुन्नालाल! मेरी खादी, स्वदेशी और अहिंसा की क्या गति है।
मुन्नालाल (व्यंग्य से) : सभी सदगति को प्राप्त हैं, बापू!
बापू (जिज्ञासा भाव से) : ...कहना क्या चाहता है, पुत्र?
मुन्नालाल : वही, जो यथार्थ है।
बापू (उत्तेजना के साथ) : साफ-साफ कह ना!
मुन्नालाल : मतलब साफ है बापू, तेरी खादी प्रमोट हो रही है। स्वदेशी की धूम है। अहिंसा के पक्ष में आंदोलन जारी है।
बापू (उत्सुकता व्यक्त करते हुए) : बता-बता, जरा विस्तार से बता। मेरे इन आदर्शो को लेकर क्या चल रहा है। मेरे शिष्य उन्हें किस तरह प्रमोट कर रहें हैं।
मुन्नालाल (रहस्यमय लहजे में) : बापू! तेरी खादी, स्वदेशी व अहिंसा को लेकर आज दिल्ली में अलग-अलग फैशन शो आयोजित हो रहीं हैं। चलेगा देखने...?
बापू (हर्ष के साथ उत्सुक्ता व्यक्त करते हुए) : ...हाँ, हाँ, अवश्य पुत्र! ...चल-ले चल, चल- चलते हैं। देखूं तो सही मेरे शिष्य मेरी खातिर क्या-क्या कर रहें हैं।
मुन्नलाल : चल बापू, चल!
(दोनों चलने के लिए तैयार होते हैं, तभी रामधुन बजनी शुरू हो जाती है। नेता एक-एक कर बापू की समाधि पर आने लगते हैं)
मुन्नालाल :
ठहर बापू! ...तेरे कथित शिष्य तुझे पुष्पांजलि अर्पित करने आने लगे हैं।
बापू (सिर हिला कर सहमति व्यक्त करते हुए) : ...हां, ठीक है, उन्हें जाने दे। ...तब चलेंगे।
(दोनों पुन: बैठ जाते हैं। नेता एक-एक कर समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित कर चले जाते हैं)
दृश्य-चार
(भव्य आडिटोरियम का भव्य रेंप। रेंप के पा‌र्श्व में एक विशाल बैनर टंगा है। जिस पर ऊपर की तरफ लिखा है, 'खादी प्रमोशन फैशन शो' उसके नीचे लिखा है 'बापू के सपनों का भारत' और उसके बाद प्रमोटर का नाम लिखा है, 'रोहित भारती'। बैनर पर लिखी इबारत पढ़ कर बापू प्रसन्न हो जाते हैं)
बापू (प्रसन्न भाव से) :
देख-देख, मुन्नालाल देख, क्या लिखा है, 'खादी प्रमोशन फैशन शो'। देख मेरा नाम भी लिखा है। (बैनर पर लिखी इबारत रुक-रुक कर पढ़ते हुए) ...'बापू के सपनों का भारत'। ये हैं मेरे सच्चे भक्त। देख, शिष्य रोहित अपने आपको भारतीय कहने में गर्व महसूस करता है। ...देख मुन्नालाल उसके नाम के आगे भारती लिखा है।
मुन्नालाल (व्यंग्य लहजे में) : हां, धैर्य धारण कर और देखता रह बापू।
(मादक संगीत और डिस्को लाइटों से आडिटोरियम जग-मागाने लगता है)
बापू (प्रसन्नता भाव से) : ...अरे, वाह! (मुन्नालाल की ओर मुँह कर) ...देख मुन्नालाल ...देख!
मुन्नालाल (मुसकरा कर) : ...देख रहा हूँ, बापू! ...तू भी देखता जा!
बापू (पूर्व भाव से) : देख पुत्र, कितना सुंदर है, ...अति सुंदर!
मुन्नालाल (व्यंग्य भाव से) : ...हाँ, बापू, सत्यं शिवं सुंदरम्! ...सत्य भी है, शुभ भी और सुंदर भी! ...(झटके के साथ) ...ले, यह भी देख ...सत्यं शिवं सुंदरम् की हकीकत देख!
(पाश्चात्य संगीत का स्वर तेज होता है और उसके साथ ही कैटवॉक करती अर्धनग्न एक मॉडल रेंप पर प्रवेश करती है। उसके अंग-प्रत्यंग खादी की कतरनों ढ़के हैं। अर्धनग्न मॉडल को देख बापू आंखें बंद कर मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ करने लगते हैं।
'जै-जै हनुमान गुसाई, कृपा करो गुरुदेव की नाई
जो सत बार पाठ करे कोई, छूटे ही बंध महा सुख होई'
कुछ देर बाद बापू आंखें खोलते हैं, एक और मॉडल इठलाती हुई उनकी नजरों के सामने से गुजरती है। उसके कपड़ों का साइज और भी कम है। बापू बेचैनी सी महसूस करते हैं। एक के बाद एक कई मॉडल एक साथ रेंप पर आती हैं। बापू से रहा नहीं जाता)
बापू (ग्लानि भाव से) :
...मुझे कहां ले आए, पुत्र?
मुन्नालाल : मौन!
बापू (आवेश में झिंझोड़ते हुए) : कुछ बोलते क्यों नहीं, पुत्र? ॥ क्यों मौन हो पुत्र? मेरा ब्लड प्रेसर हाई-फाई हो रहा है।
मुन्नालाल : पुन: मौन!
बापू (अधीर होते हुए) : धैर्य जवाब दे रहा है, पुत्र! ...मस्तिष्क शून्य होता जा रहा है, किंतु तू मौन?
मुन्नालाल (उपेक्षा भाव से) : ...देखता रह ना, बापू!
बापू (निरीह भाव से) : ...क्या कह रहे हो पुत्र! बस देखता रहूं। कब तक निहारता रहूं, इन अर्धनग्न बालाओं को? ...अब और नहीं देखा जाता। मुझे यहां से ले चल, पुत्र।
मुन्नालाल (तसल्ली देते हुए व्यंग्य लहजे में) : बापूऽऽ, धैर्य रख और बदलते दौर का बदलता स्वरूप देख। अपनी खादी की लोकप्रियता देख और उसका सम्मान देख!
बापू (विनीत भाव से) : ये चकाचौंध! ... नृत्य करती अर्धनग्न बालाएं! ...पहले यह तो बता पुत्र, यह सब है क्या?
मुन्नालाल (बापू की तरफ मुंह कर,आश्चर्य से) : भूल गया बापू! बताया तो था खादी प्रमोशन के लिए फैशन शो है। बालाएं तेरी खादी का प्रचार कर रहीं हैं!
बापू (क्रोध व आश्चर्य के मिश्रित भाव से) : यह कैसा प्रमोशन! ...इनके तन पर तो वस्त्र ही नहीं! यह तो पाप है।
मुन्नालाल (मुसकराते हुए) : ...तन पर कपड़े होते तो देखने कौन आता? ...कोई देखने न आता तो तेरी खादी का प्रमोशन क्या खाक होता?
बापू (मध्य ही में क्षुब्ध भाव से) : ...किंतु, अर्धनग्न! ...यह तो पाप है!
मुन्नालाल (समझाने के लहजे में) ...कैसा पाप, कैसा पुण्य! यह तो मार्केटिंग का फण्डा है। इसमें पाप क्या, बापू?
बापू (जिज्ञासा व्यक्त करते हुए) : मार्केटिंग? यह क्या...?
मुन्नालाल (व्यंग्य भाव से) : ...यह-वह कुछ नहीं बापू, बस मार्केटिंग है, मार्केटिंग! ...नेताओं को जब-कभी भीड़ जुटानी होती है, तब तेरे नाम का जयकारा लगते हैं, ना ...बस उसी तरह!
बापू (आश्चर्य व्यक्त करते हुए क्षुब्ध भाव से) : अर्धनग्न बालाएं! खादी का यह कैसा प्रमोशन, कैसी मार्केटिंग? भ्रष्ट, सभी कुछ भ्रष्ट! ...नहीं-नहीं, मुझे यहां से ले चल। मुझसे यह सब, अब और नहीं देखा जाता, पुत्र!
मुन्नालाल (व्यंग्य भाव से) : नग्न शरीर और भ्रष्ट बापू...!
बापू (मध्य ही में झुंझलाते हुए) : ...हां, हां, सभी कुछ भ्रष्ट!
मुन्नालाल (व्यंग्य भाव से) : चल तू कहता है तो मान लेता हूं, बापू! ...किंतु तू ही तो कहता था, 'बुरा मत देख' और तू ही भ्रष्ट नग्न शरीर देख रहा है! ...उनका नग्न शरीर न देख, बापू। गिलास आधा खाली नहीं आधा भरा देख। उनके अंगों पर पड़ी खादी की कतरने देख।
बापू (आग्रह पूर्वक) : यहां से ले चलो, पुत्र। ये अर्धनग्न बालाएं! अब और सहन नहीं होता, मुझसे।
मुन्नालाल (समझाने के लहजे में) : अर्धनग्न अश्लील शब्द है, बापू। ...उन्हें अश्लील कह कर अपनी जुबान गंदी न कर, उन्हें घृणा का पात्र न बना। ...वे अर्धनग्न नहीं, अर्धवस्त्रा हैं, अर्धवस्त्रा।
बापू (घृणा भाव से) : यहां सभी कुछ असत्य है। ...तुम मुझे यहां से ले चलो पुत्र।
(शरीर का वजन लाठी पर टिका बापू चलने के लिए खड़े होने लगते हैं)
मुन्नालाल (हाथ पकड़ कर बिठते हुए) :
बैठ, बापू और अपने सत्य के प्रयोग देख। असत्य नहीं, ये सत्य के प्रयोग हैं, बापू। ...सत्य हमेशा पारदर्शी होता है, ना बापू, इसलिए यहां सब कुछ पारदर्शी है, बापू। (मुसकराते हुए मुन्नालाल आगे बोला) ...बालाएं सत्य का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर रहीं हैं। ...तेरा अनुसरण कर रहीं हैं, तेरे सत्य का अनुसरण कर रहीं हैं।
बापू (खीजते हुए) : सत्य का यह कैसा अनुसरण, मेरा कैसा अनुसरण, पुत्र?
मुन्नालाल (तसल्ली देते हुए) : तू ही तो कहता था बापू! मनुष्य को मन से, वचन से, कर्म से सत्यवादी होना चाहिए, पारदर्शी होना चाहिए। ...अर्धवस्त्रा ये बालाएं पारदर्शिता के मध्यम से सत्य ही का तो प्रदर्शन कर रहीं हैं।
बापू (पुन: खीजते हुए) : सत्य, पारदर्शिता, प्रमोशन, अर्धवस्त्रा॥? तेरा यह दर्शन मेरी समझ से बाहर है, पुत्र!

मुन्नालाल (बापू को दिलासा देते हुए) : ...धीरज धर बापू, और देख-थोड़ा और देख। ...मेरा दर्शन नहीं, नए जमाने का नया दर्शन! तुझे तेरा दर्शन जीवित रखना है तो नए जमाने के दर्शन को स्वीकार कर, थोड़ा अपने को परिवर्तित कर!
बापू (क्रोध व्यक्त करते हुए) : नहीं, नहीं, यहां से चल। ...मुझे स्वीकार नहीं है, तेरे जमाने का यह चिथड़ा दर्शन?
मुन्नालाल (आश्चर्य भाव के साथ व्यंग्य करते हुए) : नए जमाने के वस्त्रों को चिथड़े कहता है, बापू! ...यह भी तेरी ही संस्कृति का अनुसरण है। ...तू ढाई गज में एक तन लपेटे है और ये ढाई गज में चार तन। है, ना तेरी ही संस्कृति का अनुसरण! ...तुझ से भी चार कदम आगे!
बापू (क्रोध में पुन: खड़े होते हैं) : ...नहीं, नहीं, नहीं, अब मैं यहां एक पल भी नहीं रुकूंगा।
मुन्नालाल (शरीर झटकते हुए) : ठीक है, ठीक है, नहीं देख पा रहा तो चल बापू।
(बापू माथे पर आए पसीने पौंछते हुए मुन्नालालके संग उठकर आडिटोरियम के बाहर चले आते हैं)
(..जारी)