Thursday, July 31, 2008

तिजोरी में सुरक्षित लोकतंत्र !

विश्वास मत के दौरान संसद के अंदर-बाहर जो कुछ हुआ। विश्वास मत से पूर्व और उसके बाद जो कुछ हो रहा है। उस पर विभिन्न प्रकार की टिप्पणियां सुनने-पढ़ने को मिली। मसलन- लोकतंत्र हुआ शर्मसार, सरकार जीती लोकतंत्र हारा, सरकार बची शाख गई, लोकतंत्र की हत्या, शर्म भी हुई शर्मिदा आदि, आदि! हवा में उछाले गए इन जुमलों में से मैं किसी के साथ इत्ति़फा़क नहीं रखता हूं। न-इत्ति़फा़की बिना वजह की नहीं है। इन जुमलों को लेकर मैंने गहन अध्ययन किया है, शोध किया है, विचार-मंथन किया है। दिलोजान के साथ मेहनत करने के बाद ही मैं न-इत्ति़फा़की की मंजिल पर पहुंचा हूं।
पता नहीं क्यों लोकतंत्र की हत्या, लोकतंत्र की हार, लोकतंत्र शर्मसार जैसे शब्द हवा में उछालकर सास-बहू के इस सीरियल में क्यों लोकतंत्र को घसीटा गया। इस प्रकार के जुमले उछालने वालों से मेरा एक ही सवाल है, अरे भाई! लोकतंत्र इस समूचे सीरियल में था कहां? लोकतंत्र वैसे भी यहां, है कहां? लोकतंत्र तो उन तिजोरियों में सुरक्षित है, हार्स ट्रेडिंग के लिए जिनसे दौलत निकाली गई थी! लोकतंत्र होगा, तभी तो उसे जहमत आएगी! जिसका यहां अस्तित्व ही नहीं, उसे कैसी जहमत! इस पूरे प्रकरण में कहीं भी, किसी भी क्षण लोकतंत्र की सेहत को आंच नहीं आई, मैं पूरे यकीन के साथ कह रहा हूं। 'लोकतंत्र कैसे हुआ शर्मसार, शर्म आखिर क्यों हुई शर्मिदा' इन मुद्दों पर भी बुद्धि के घोड़े दौड़ाए। यहां यह बता देना अति- आवश्यक है कि मेरे घोड़ों के आगे किसी ने घास नहीं डाली, अत: दौड़ाने के लिए वे उपलब्ध थे। 'शर्म' शब्द के अर्थ जानने के लिए मैंने राजनैतिक-शब्दकोष का एक-एक पन्ने पलटा, मगर दुर्भाग्य की शब्दकोष के किसी भी पन्ने पर मुझे 'शर्म' शब्द के दर्शन नहीं हुए। एक पन्ने पर 'अपमान-अभेद्य' शब्द अवश्य प्राप्त हुआ। अंग्रेजी में शायद इसे ही 'इंसल्ट प्रूफ' कहते हैं। राजनीति के लिए बहुत ही फलदायक शब्द है। प्रगति कारक शब्द है। राजनीति में सफलता के लिए ऐसे ही शब्दों की आवश्यकता है। 'शर्म' जैसे दकियानूसी शब्दों का न होना ही कल्याणकारी है!
पन्ने-दर-पन्ने पलटने के बाद मैं शब्दकोष के उन अंतिम पन्नों पर पहुंचा, जिन पर अक्सर मुहावरे, लोकोक्तियां व कहावतें आदि होते हैं। वहां जाकर कुछ राहत का अहसास हुआ। उस पन्ने पर अनमोल वचनों के रूप में कुछ महान विभूतियों के उद्गारों का उल्लेख था। उन्हीं अनमोल वचनों के मध्य एक अनमोल वचन था- शर्म स्वयं शर्मिदा होने के लिए नहीं दूसरों को शर्मिदा करने के लिए प्रयुक्त की जाती है। इस अनमोल वचन के उद्गार-कर्ता के नाम के स्थान पर लिखा था-अज्ञात! मन ही मन उस अज्ञात-आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की, जिसने ऐसे अनमोल वचन उद्गारित कर राजनीति को नए आयाम दिए।
विश्वास मत के कथानक पर आधारित इस सास-बहू सीरियल में 'राष्ट्र-अहित' को लेकर भी सीरिअस चिंता व्यक्त की गई। विभिन्न संवादों में यह शब्द सीरियल के प्रथम एपिसोड 'डील की फील' से ही शुरू हो गया था। डील के पक्षधरों ने कहा-डील के विरोध में राष्ट्र का अहित है। इससे उलट डील विरोधियों ने कहा- डील का समर्थन करना राष्ट्र का अहित करना है। मगर अहित भरी यह चिंता भी औचित्यहीन नजर आई! क्योंकि, डील समर्थकों ने भी राष्ट्रहित में समर्थन किया। डील का विरोध करने वाले दलों ने भी राष्ट्रहित में ही समर्थन वापस लिया। जिन्होंने विश्वास मत के समर्थन में वोट नहीं दिए, उसका कारण भी राष्ट्रहित ही था। नोट लेकर वोट देने वालों के लिए भी राष्ट्रहित ही प्रेरणा का स्रोत था और जिन्होंने सदन में नोट लहराए, उनके लिए भी राष्ट्रहित ही सर्वोपरि था। चहुओर राष्ट्रहित ही राष्ट्रहित था। प्रत्येक राष्ट्रहित के प्रति समर्पित दिखलाई दिया। जिस देश के नेताओं के अंतर्मन में राष्ट्रहित के प्रति ऐसा समर्पित भाव हो, भला उस देश के शब्दकोष में 'राष्ट्र-अहित' जैसे शब्दों का क्या औचित्य!
'हार्स ट्रेडिंग' बे-बात की बात का बतंगड़! हार्स ट्रेडिंग हुई तो इसमें आश्चर्य क्या? अरे, भाई! बाजार है, बाजार में घोड़े हैं, घोड़े बिकाऊ हैं, घोड़ों के खरीददार हैं, मौका भी है और दस्तूर भी। फिर तो घोड़ों की खरीद-फरोख्त होना स्वाभाविक ही है। घोड़े-गधे सब एक भाव बिक गए, इस पर भी हंगामा क्यों? अरे मांग-आपूर्ति का सिद्धांत है, बाजार का दस्तूर है। जब मांग आपूर्ति से ज्यादा हो, तो गधे-घोड़े एक भाव बिकते ही हैं! नहीं, नहीं भाई! जब बाजार ही गधे-घोड़ों का हो, तो शेर कहां से आए? अब आप ही बताएं, क्या मेरी न-इत्तिफा़की नाजायज है?
संपर्क-9717095225