Wednesday, May 28, 2008

सांड़-सांड़ की पाचन शक्ति

गाजियाबाद में नन्दी पार्क के नाम से सांड़शाला है। जहां आवारा सांड़ रखे जाते हैं। जाहिर है कि नन्दी पार्क में बंद सभी सांड़ 'जन' किस्म के होंगे, क्योंकि राजनैतिक और सरकारी सांड़ आवारा सांड़ नहीं कहलाए जाते हैं, आवारागर्दी करना उनका मौलिक अधिकार है। आवारागर्दी-विरोधी कानून केवल 'जन' किस्म के प्राणियों पर ही लागू है।

दो-तीन दिन पहले उस सांड़शाला के दो सांड़ परलोक-गमन कर गए। सांड़-भक्तों (नन्दी-भक्त) की भावनाएं आहत हुई। मन शोक संपन्न हो गया। जाहिर है कि जब किसी समुदाय विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचती है, तो मुंह से एक आह-सी निकलती है। वही आह बढ़ते-बढ़ते शोर-गुल और आंदोलन में तब्दील हो जाती है। सांड़-भक्तों की मांग पर मृत-सांड़ों का पोस्टमार्टम हुआ।

उन्हीं में से एक सांड़ के पेट से दो रत्ती सोना, पांच व दो रुपये के चंद सिक्के, सौ ग्राम लोहे की कील, दो सौ ग्राम लोहे के वार्सल और न जाने क्या-क्या निकला। सांड़ के पेट से बरामद वस्तुएं देखकर लोगों को आश्चर्य हुआ, लेकिन बरामदगी सोचने के लिए हमें एक विषय दे गई।

हम विषय पर सोचते-सोचते सो गए। फिर सपने में नन्दी महाराज प्रकट हुए। बोले- भक्त! चिंता में भुट्टे की तरह क्यों भुनते जा रहे हो? हमने उनके सामने चिंता का कारण बयान कर दिया। हमारा चिंतनीय प्रश्न सुनकर नन्दी महाराज हंस दिए और फिर बोले- भक्त वह सांड़, जन-सांड़ था, सरकारी अथवा राजनैतिक सांड़ नहीं! उन दोनों में से किसी किस्म का सांड़ होता तो तुम्हारे मन में चिंतनीय यह प्रश्न ही उत्पन्न न होता।

हमने प्रश्न किया- क्यों, महाराज? नन्दी महाराज पुन: मुस्करा दिए और बोले- भक्त! राजनैतिक व सरकारी सांड़ों की पाचनशक्ति ़गजब की होती है। चंद सिक्के, रत्ती-दो रत्ती सोना और चंद कीलों की तो बात क्या, वे तो टकसाल की टकसाल हजम कर जाते हैं। सोने की समूची खदान हजम कर जाते हैं। लोहे की कील तो क्या वे टैंक के टैंक हजम कर जाते हैं और डकार भी नहीं लेते। भक्त मृत सांड़ भी यदि राजनैतिक अथवा सरकारी सांड़ होता, तो तुम और तुम्हारे डाक्टर बस ढूंढते रह जाते। भक्त! गलती की इस सांड़ ने जन-सांड़ होकर राजनैतिक व सरकारी सांड़ों जैसा भोजन करने की चेष्टा की। फिर तो उसकी ऐसी दुर्गति होनी ही थी। इतना कहकर नन्दी महाराज अंतर्धान हो गए और हम जाग गए।

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