Thursday, October 4, 2007

जमाना कुत्तों का


जमाना कुत्तों का
राजेद्र त्यागी
न्यूयार्क की बुढिया लियोन हेल्मले अपनी वसीयत में लाखों डालर अपने प्रिय कुत्ते ट्रबल के नाम कर गई। खबर पढ़ कर हमारा चेहरा सड़े कद्दू सा लटक गया। इनसान होने के अहसास को मन ही मन लानत दी, ''कितना अच्छा होता यदि हम भी किसी लियोना के प्रिय ट्रबल होते। दिन फाकों में तो न गुजरते। तलवे चाटते और बुढिया के मरने की खुदा से दुआ करते। भौंकने और तलुवे चाटने में हर्ज भी क्या है, यदि अरबपति बनने का सुनहरी अवसर प्राप्त होता हो जाए। अब कौन उसे कुत्ता कहने की हिमाकत करेगा। अब तक तलवे चाटे थे, अब वह अपने तलवे चटवाएगा।''
कुत्ते की किस्मत से रश्क करते-करते हम जमाने को गरियाने लगे, ''हाय! कैसा जमाना आ गया है, गधे कमाए, कुत्ते खाएं! बुढि़या ने एक बार भी गधों के बारे में नहीं सोचा, जिनकी मेहनत के बल पर वह अरबपति बनी। कोई बात नहीं, वही खाएगा जिसकी किस्मत में लिखा होगा, लेकिन जलालत तो यह है कि पंजीरी कुत्ते खाएं और बदनाम गधों को किया जाए। जहान का बोझा भी ढोएं और बदनाम भी हों। सरासर ज्यादती! हमने अपने मित्र से इस दुखद पहलू का कारण पूछा, तो वह तपाक से बोला, ''ढोने का काम जब है ही गधों का तो बदनामी ही कोई और क्यों ढोए!'' दरअसल हमारे मित्र व्यवहारिक किस्म के जीव हैं। कुत्तों के सद्गुण अपना कर निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर हैं।
अपनी इसी व्यथा को लेकर हमने कृशन चंदर के जहीन गधे से भी भेंट की थी। उनके प्रवचन सुन हमारे दिमाग की बंद सभी खिड़कियां एक-एक कर खुलती चली गई। उनकी जहानत से प्रभावित हो कर उन्हें सलाह दे बैठे, ''दादा! तुम्हें तो राजनीति में होना चाहिए था। तुम्हारे जैसे जहीन कई जीव राजनीति के शिखर तक पहुंच चुके हैं।'' हमारा प्रश्न सुन दादा भड़क गए और नथुने फुला कर बोले, ''किसी एक का नाम तो बताओ बरखुरदार? अरे, जहां मलाई कटती हो वहां हमारे जैसे ईमानदार और मेहनती जीवों को कौन जमने देता है।''
खिसकते-खिसकते हम मूल प्रश्न पर आए, ''दादा! 'गधे पंजीरी खा रहे हैं' फिर यह कहावत क्यों?'' दादा ने नथुने सिकोड़े और बोले, ''अरे, भाई! गधे पंजीरी ढोते भर हैं, खाते नहीं हैं। तुम्हारे ये टीवी चैनल वाले पंजीरी ढोते गधों के फोटो लेकर प्रचारित कर देते हैं, गधे पंजीरी खा रहे हैं। असल में पंजीरी कुत्ते ही खा रहे हैं, हमारे नाम तो बस वाउचर भरे जा रहे हैं।''
दादा की बात में जान दिखलाई दी। दिमाग की खुली खिड़की से हमारी अंतरात्मा झांकी, फिर मुसकराई और बोली, ''अबे, ओ बोड़म! जमाना कुत्तों का है। क्या रखा है इनसान होने में। इनसान गधा है। इंसानियत का त्याग कर कुत्ता बन जा। भौंकना सीख, तलवे चाटने की आदत डाल। आज नहीं तो कल कोई न कोई कंजूस तुझ पर भी आशिक हो जाएगी। अपना न सही मरते-मरते अरबपति तो बना ही जाएगी।''
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