
हमारा पौत्र तीन वर्ष का जवान है। उम्र से कहीं ज्यादा बन-ठन कर रहता है। उसकी माँ को उसे नहलाने, कपड़े बदलने, परफ्यूम लगाने व कंघी आदि करने के लिए वैसे हाय-तौबा नहीं करनी पड़ती, जैसी की हमारी माँ को बचपन में हमारे साथ करनी पड़ती थी। हमारी हालत तो ऐसी थी कि जब कभी हमारी माँ नहलाने के लिए हमें पानी भरी बाल्टी के पास ले जाती थी। हमें लगता था कि कसाई किसी निरीह गाय को बूचड़खाने ले जा रहा है। नहाने से पहले ही हम रौ-रौ कर कम से कम मुंह तो आंसुओं से ही धो डालते थे। अब हालात बदल गए हैं। हमारी बहू को पुत्र-स्नान से पूर्व की चिल्ल-पौं सुनने की जहमत नहीं उठाने पड़ती, क्योंकि हमारा पौत्र आंख खुलते ही नित्य-नैमेतिक कर्म कराने के लिए अपनी माँ को मजबूर कर देता है।
एक दिन हमारे एक मित्र पत्नी सहित दोपहर के भोजन पर घर पधारे। उनकी पत्नी ने हमारे पौत्र को देखा और उसकी ओर आकर्षित हुई। उसे उन्होंने गोद में बिठाया और बतियाने लगी। बतियाने के इस क्रम में उन्होंने पौत्र से पूछा- बेटे बड़े होकर क्या बनोगे। पौत्र ने बिंदास जवाब दिया, ''सैक्सी!'' उसकी हाजिर जवाबी और जवाब सुनकर हमारा व पत्नी सहित मित्र का चेहरा कंडोम के विज्ञापन वाले उस ड्राइवर की तरह लटक गया, जिसे उसके साथी 'कंडोम' बिंदास बोलने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके साथ ही क्षण भर के लिए ड्राइंगरूम में सन्नाटा छा गया। इसी बीच उनकी पत्नी उठ कर रसोई की तरफ चली गई और चेहरे की सुर्खी कुछ कम करते हुए मित्र बोले- मुन्नालाल जी आपके पौत्र का सौंदर्य बोध गजब का है।
हम बोले- हाँ! कमबख्त शाहरुख खान का फैन है। जब से उसने टीवी पर देखा है, शाहरुख खान सैक्सी नंबर वन घोषित हुआ है, उसी दिन से इसने सैक्सी बनने की ठान ली है। पहनने के लिए सैक्सी कपड़े चाहिए, खाना भी सैक्सी होना चाहिए, खिलौने के लिए भी सैक्सी-सैक्सी की रट लगाए रहता है। चेहरे पर निराशा के भाव ओढ़ कर हम आगे बोले- क्या बताएं, जनाब! दुनिया के सुपुत्रों की तरह इसका सौंदर्य बोध भी पालने में ही नजर आने लगा था। कमबख्त हर एक महिला की गोद में खेलना पसंद नहीं करता था। जब कभी रोता था, तो पड़ोसन को बुलाना पड़ता था। उसकी गोद में जाकर कहीं भैरवी-राग आलापना बंद कर सौ जाता था। हम सोचते रहे कि पुनर्जन्म के संस्कार हैं, मगर अब पता चला कि पड़ोसिन हमारी खूबसूरत है, सैक्सी लगती है, इसलिए ही उसे पसंद थी। दादी को तो उसने पालने की उम्र में ही रिजेक्ट कर दिया था। न तब उसकी गोद में जाता था और न ही अब उसके आसपास फटकता। राज पर से पर्दा अब उठा, दरअसल हमारी बुढि़या उसे सैक्सी नहीं दीखती। हाँ! एक दिन जरूर उसने दादी की अंगुली पकड़ी थी। उस दिन शादी में जाने के लिए उसने बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम वाली कहावत चरितार्थ की थी। उस दिन साहबजादे बोले थे- दादी अम्मा आज तो बड़ी सैक्सी-सैक्सी लग रही हो। हमारे पौत्र की कैफियत सुनकर मित्र बोले- अच्छा है! आगे-आगे सैक्स और सैक्सी लोगों का ही सेंसेक्स आसमान छूएगा। हम जैसे रसहीन चेहरों का सेंसेक्स तो उतार पर ही है।
भोजन कर मित्र व उनकी पत्नी चली गई, लेकिन पौत्र ने हमें उलझा दिया। हम तभी से सेक्स-संस्कृति के संबंध में सोच रहे हैं- कितनी सेक्सी-सेक्सी हो गया है जमाना। राजनीति सेक्सी, समाज सेक्सी, शिक्षा सेक्सी, व्यापार सेक्सी! कौन सा क्षेत्र है, जहां सेक्स का वर्चस्व नहीं है! सेक्स धर्म है, सेक्स कर्म है, सेक्स मोक्ष प्राप्ति का सुगम मार्ग है। 21 वीं सदी के अन्त तक केवल सेक्स शेष रह जाएगा, बाकी सभी गौण। तब सेक्स मूल्यों के साथ सेक्स-प्रधान होगी संस्कृति! हम सेक्स के सुनहरी भविष्य की कल्पना में डूबे थे, तभी हमारा पौत्र हमारे पास आया और तोतली जुबान में गुनगुनाने लगा- दे दे चुम्मा, चुम्मा दे दे..! शायद किसी फिल्म का गीत है।
फोन-9869113044
एक दिन हमारे एक मित्र पत्नी सहित दोपहर के भोजन पर घर पधारे। उनकी पत्नी ने हमारे पौत्र को देखा और उसकी ओर आकर्षित हुई। उसे उन्होंने गोद में बिठाया और बतियाने लगी। बतियाने के इस क्रम में उन्होंने पौत्र से पूछा- बेटे बड़े होकर क्या बनोगे। पौत्र ने बिंदास जवाब दिया, ''सैक्सी!'' उसकी हाजिर जवाबी और जवाब सुनकर हमारा व पत्नी सहित मित्र का चेहरा कंडोम के विज्ञापन वाले उस ड्राइवर की तरह लटक गया, जिसे उसके साथी 'कंडोम' बिंदास बोलने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके साथ ही क्षण भर के लिए ड्राइंगरूम में सन्नाटा छा गया। इसी बीच उनकी पत्नी उठ कर रसोई की तरफ चली गई और चेहरे की सुर्खी कुछ कम करते हुए मित्र बोले- मुन्नालाल जी आपके पौत्र का सौंदर्य बोध गजब का है।
हम बोले- हाँ! कमबख्त शाहरुख खान का फैन है। जब से उसने टीवी पर देखा है, शाहरुख खान सैक्सी नंबर वन घोषित हुआ है, उसी दिन से इसने सैक्सी बनने की ठान ली है। पहनने के लिए सैक्सी कपड़े चाहिए, खाना भी सैक्सी होना चाहिए, खिलौने के लिए भी सैक्सी-सैक्सी की रट लगाए रहता है। चेहरे पर निराशा के भाव ओढ़ कर हम आगे बोले- क्या बताएं, जनाब! दुनिया के सुपुत्रों की तरह इसका सौंदर्य बोध भी पालने में ही नजर आने लगा था। कमबख्त हर एक महिला की गोद में खेलना पसंद नहीं करता था। जब कभी रोता था, तो पड़ोसन को बुलाना पड़ता था। उसकी गोद में जाकर कहीं भैरवी-राग आलापना बंद कर सौ जाता था। हम सोचते रहे कि पुनर्जन्म के संस्कार हैं, मगर अब पता चला कि पड़ोसिन हमारी खूबसूरत है, सैक्सी लगती है, इसलिए ही उसे पसंद थी। दादी को तो उसने पालने की उम्र में ही रिजेक्ट कर दिया था। न तब उसकी गोद में जाता था और न ही अब उसके आसपास फटकता। राज पर से पर्दा अब उठा, दरअसल हमारी बुढि़या उसे सैक्सी नहीं दीखती। हाँ! एक दिन जरूर उसने दादी की अंगुली पकड़ी थी। उस दिन शादी में जाने के लिए उसने बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम वाली कहावत चरितार्थ की थी। उस दिन साहबजादे बोले थे- दादी अम्मा आज तो बड़ी सैक्सी-सैक्सी लग रही हो। हमारे पौत्र की कैफियत सुनकर मित्र बोले- अच्छा है! आगे-आगे सैक्स और सैक्सी लोगों का ही सेंसेक्स आसमान छूएगा। हम जैसे रसहीन चेहरों का सेंसेक्स तो उतार पर ही है।
भोजन कर मित्र व उनकी पत्नी चली गई, लेकिन पौत्र ने हमें उलझा दिया। हम तभी से सेक्स-संस्कृति के संबंध में सोच रहे हैं- कितनी सेक्सी-सेक्सी हो गया है जमाना। राजनीति सेक्सी, समाज सेक्सी, शिक्षा सेक्सी, व्यापार सेक्सी! कौन सा क्षेत्र है, जहां सेक्स का वर्चस्व नहीं है! सेक्स धर्म है, सेक्स कर्म है, सेक्स मोक्ष प्राप्ति का सुगम मार्ग है। 21 वीं सदी के अन्त तक केवल सेक्स शेष रह जाएगा, बाकी सभी गौण। तब सेक्स मूल्यों के साथ सेक्स-प्रधान होगी संस्कृति! हम सेक्स के सुनहरी भविष्य की कल्पना में डूबे थे, तभी हमारा पौत्र हमारे पास आया और तोतली जुबान में गुनगुनाने लगा- दे दे चुम्मा, चुम्मा दे दे..! शायद किसी फिल्म का गीत है।
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सेक्सी संस्कृति तो ऐसी हो गई है कि मेरे ऑफिस में एक लड़की पेन-पेंसिल को भी सेक्सी कहती थी।
ReplyDeleteसेक्सी शब्द के भी दिन बहुरे।
ReplyDeleteचलो एक शब्द का और अछूतोद्धार हुआ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है त्यागी जी आपने । सेक्सी पर हम आपसे सहमत हैं ।
ReplyDeleteहोता प्रेम अंधा
बहुत खूब लिखा । अन्दाज़ रोचक है । वैसे आजकल के बच्चों का सौन्दर्य बोध वाकई गज़ब का है । हमारा पुत्र भी हमे वेस्टर्न कपडों में देखकर वाउ कहता है और निरंतर कम खाना खाने को कहता है । वह आपके पौत्र से 2 वर्ष बडा है ।
ReplyDeleteगजब कि सेक्सी पोस्ट लिखी सरजी आपने.
ReplyDeleteमतलब ये कि बदलते ज़माने कि सही तस्वीर खींची अपने जबरदस्त व्यंग्य के साथ.
एक्दमै सेक्सी लिखे सर जी, आई मीन धांसू ;)
ReplyDeletelekh achacha lagaa.kuch din pahley gyan duttji ki ek puuri post hi iss ek "shabd" par aayii thii..vaisey mujhey lagataa hai ki naadaan bachon ke liye har vo cheez jo aankhon ko bhaaye aur durlabh ho "sexy" hai
ReplyDeleteMaan gaye aisi karaari tasveer aaj ke pariprekshya ki....bahut khoob bahut khoob...
ReplyDeleteचोट तो अच्छी पहुँचाई आपने
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