Sunday, April 13, 2008

विकास का सफर

परिंदों की सांसे थम गई,
पुष्प सभी मुरझा गये
पात सभी झर गये
शाखाएं सभी नग्न हो गई
बरगद ने दम तोड़ दिया
प्रकृति रो पड़ी!!!
और इनसान,
विकास की गाथा लिखता रहा!
विकास के इस पथरीले सफर की
मंजिल क्या है?
परिणति क्या है?
परिणाम क्या है?
क्या..!
पंछियों के गीतों पर विराम!
खिल-खिलाते पुष्पों का मौन!
लहलाते वृक्षों की हत्या!
प्रकृति का विनाश!
ओह!
कितना आत्मघाती है,
पथरीले विकास का यह सफर!

संपर्क ः 9868113044