Monday, February 4, 2008

अन्तिम इच्छा

''हे, ईश्वर इतनी कृपा करना, अगले जन्म में मुझे किसी श्वान सुंदरी की कोख से जन्म दे देना! यह जन्म तो अकारत ही चला गया। तूने मुझ पर एक आंख से भी कृपा नहीं की! बिना भेदभाव के सभी को एक आंख से देखने का तेरा दावा नेताई निकला। मुझ पर यदि तेरी कृपा होती, तो कम से कम एक श्वानीय-गुण का तो मेरे चरित्र में समावेश करता! जन्म-कुण्डली बनाते वक्त भूल गया था, तो बाद में ही प्रत्यारोपित कर देता। किंतु नहीं, तू ने ऐसा भी नहीं किया! ..मेरे साथ पक्षपात किया! मेरे मित्रों को श्वान-सर्वगुण संपन्न कर दिया और मुझे बैरंग ही मृत्युलोक पोस्ट कर दिया! कोई बात नहीं भूल सुधार कर ले। अगले जन्म के लिए तो मुझे श्वान-कोटे में आरक्षित कर दे!''
शनै:-शनै: उम्र के अंतिम पड़ाव की ओर सरक रहा हूं। कल उस मंजिल को पालूंगा, जहां से नई मंजिल के लिए द्वार खुलते हैं। 'आज मरे कल दूजा दिन' सोच रहा हूं, दूजा-तीजा होने से पूर्व ही ईश्वर के सामने अपनी अन्तिम इच्छा प्रस्तुत कर दूं। इस जन्म के लिए नहीं पूर्व जन्म के लिए। इस जन्म में तो ऐसा कुछ मेरे पास है ही नहीं, जिसे लेकर मेरी औलाद झगड़ा करे और मुझे वसीयत लिखने की आवश्यकता महसूस हो! इसलिए वसीयत नहीं अन्तिम इच्छा पंजीकृत करा रहा हूं! औलाद के लिए कुछ छोड़कर जाओ और वह नश्वर शरीर ठिकाने लगाने से पूर्व ही बटवारे के लिए महाभारत का आयोजन करने लगे। इसके खिलाफ मैं हमेशा से ही रहा हूं!
मैं यह भी सोचता हूं, यह जन्म तो जैसे-तैसे पूर्ण आहुति के समीप है, फिर क्यों ने अगले जन्म के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाए। शायद उसे तरस आजाए, प्रार्थना स्वीकार कर ले। कम से कम अगले जन्म में ही सही सफल व्यक्तियों की सूची में अपना नाम भी दर्ज हो जाए!
मैं जानता हूं, इस जन्म से छुटकारा मिलने के बाद, जब तक अगला जन्म प्राप्त करूंगा, तब तक श्वान-संस्कृति अपने चर्म पर होगी। श्वान-गुण-संपन्न व्यक्ति ही तब शासन में होंगे, प्रशासन में होंगे, प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी होंगे। वैसे कमी आज भी कुछ नहीं है, लेकिन इसे प्रारंभिक अवस्था ही कहना ठीक होगा। उस समय मनुष्य गौण श्वान प्रधान होगा। अनुमान तो यह है कि जो थोडे़-बहुत मनुष्य आज शोष हैं भी, तब तक उनका भी राम नाम सत्य हो जाएगा। तब श्वान-संस्कृति ही राष्ट्र-संस्कृति होगी! उसी पर आधारित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद होगा!
कृष्ण-भक्त रसखान ने भी मेरी ही तरह पुनर्जन्म के लिए मौजूदा जन्म में आराध्य कृष्ण भगवान के सामने अन्तिम इच्छा व्यक्त की थी। किंतु मेरी और उनकी अन्तिम इच्छा के मसौदे में अंतर है। पता नहीं क्यों, उन्होंने अगले जन्म में भी मनुष्य-योनि को ही प्राथमिकता दी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने गाय, पक्षी और पाषाण के रूप में जन्म लेने की संभावना से भी इनकार नहीं किया, लेकिन श्वान को उन्होंने उपेक्षित ही रखा।
मुझे लगता है, उन्होंने वसीयत अतिभावुक अवस्था में की होगी। भावुक मन से लिए गए निर्णय बौद्धिक नहीं हुआ करते हैं। अत: वे भविष्य का सटीक अनुमान नहीं कर पाए होंगे। भावुकता के स्थान पर यदि वे बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए दूरदृष्टिं का उपयोग करते, तो एक विकल्प श्वान-रूप में उत्पन्न होने का अवश्य रखते! उनके जमाने में मानुष का महत्व श्वानों की अपेक्षा अधिक रहा होगा, इसलिए वे मानुष-जन्म को प्राथमिकता प्रदान कर गए। अब अवश्य पछता रहें होंगे!
किसी न किसी रूप में श्वान के महत्व को कवि श्रेष्ठ रामधारी सिंह दिनकर ने समझा था। 'श्वानों को मिलते दूध-दही, भूखे बच्चे अकुलाते हैं। माँ की गोदी से लिपट-लिपट जाड़े की रात बिताते हैं।' दिनकर जी की ये पंक्तियां श्वान महत्व का सबूत हैं। यह बात अलग है कि इन लाइनों में श्वानों के प्रति ईष्र्या-भाव झलकता है। लेकिन यह भी सत्य है कि समाज में श्रेष्ठ व्यक्तित्व ही ईष्र्या का पात्र होता है।
दिनकर जी की कविता के आधार पर हम यह तो दावा कर ही सकते हैं कि उनके समय से ही श्वान-संस्कृति फलने-फूलने लगी थी। आज तो वह विराट स्वरूप ग्रहण करती जा रही है और जब तक मैं पुनर्जन्म में प्रवेश करूंगा, तब तक तो वल्ले-वल्ले हो जाएगी। तब मैं भी सरकारी-बजट का लाभ प्राप्त करने के योग्य हो जाऊंगा। हालांकि चोरी-छिपे बिस्कुट अभी भी वे ही इस्तेमाल कर रहा हूं, किंन्तु तब साधिकार कर पाऊंगा।
किसी ऐश के सुंदर-कोमल स्पर्श के लिए अब तरसता हूं। जब किसी श्वान-शिशु को सुंदरी के गोल-गोल कपोलों का रसास्वादन करते देखता हूं, तो मन मसोस कर रह जाता हूं! मन में एक हूक सी उठती है, 'हाय! ..श्वान के भाग कहा कहिए, गोल-कपोल पै कर रहा चुम्मा-चाटी!'
ईश्वर मुझ पर कृपा कर दे, मेरी वसीयत पर मुहर लगा दे, तो किसी सुंदरी की गोद में शोभायमान होने का शुभ अवसर मुझे भी प्राप्त हो जाएगा। तब मुझे भी ऐश के साथ जीवन व्यतीत करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। अपनी भी ऐश होगी!
अत: बहुत सोच-विचार कर मैंने श्वान-सुंदरी की कोख से जन्म लेने की इच्छा व्यक्त की है। मगर मैं ईश्वर को किसी मुसीबत में भी नहीं डालना चाहता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि मेरे जैसी इच्छा करने वाले लोग की तादाद कहीं अधिकहोगी और श्वान-कोख सीमित। अत: मैने एक विकल्प भी रखा है। मेरे भाग्य में यदि अगली बार भी मनुष्य-योनि में ही जन्म लेना लिखा है, तो हे, परमपिता परमात्मा! इतनी कृपा अवश्य कर देना मुझे श्वान सद्गुणों से संपन्न तो कर ही देना!
संपर्क : 9868113044
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