Tuesday, November 6, 2007

पाकिस्तान में तड़का लगे, छींके हिंदुस्तान


पाकिस्तान में इमरजेंसी की घोषणा, सुनकर भयावह आश्चर्य की अनुभूति हुई। इमरजेंसी-वार्ड में इमरजेंसी की घोषणा! जिस शिशु का जन्म ही इमरजेंसी-वार्ड में हुआ हो और अभी तक वेंटिलेटर पर सांसें गिन रहा हो, उसके लिए इमरजेंसी की घोषणा! मतलब साफ हैं, मामला कुछ गड़बड़ है, अंतिम दौर के आसपास है! भयावह इसलिए कि यदि इमरजेंसी-वार्ड की परिस्थितियां भी इमरजेंसी हो गई तो फिर वहां, इमरजेंसी नहीं, उससे ऊपर वाले किसी दर्जे की व्यवस्था की आवश्यकता है! संभवतया जनहित में घोषणा इमरजेंसी की कर दी गई होगी। एक विशेषज्ञ ने लगभग ठीक ही कहा है- यह इमरजेंसी और मार्शल लॉ के बीच की कोई स्थिति है। हम कहते हैं, यह मार्शल लॉ से भी ऊपर की कोई स्थिति है। मार्शल अपने से ऊपर की ही कोई स्थिति उत्पन्न करेगा, तभी तो उसका कद बढ़ेगा। पाकिस्तान की इमरजेंसी दूरदर्शनी-परिचर्चा का विषय है।
खैर कुछ भी सही , इस बारे में हम मुशर्रफ साहब की साफगोई के कायल हो गए। उन्होंने ठीक ही कहा,- ऐ पश्चिम वालों अभी हमारा बच्चा वेंटिलेटर पर हैं। डेमोक्रेसी के लक्जरी वार्ड में शिफ्ट करने में समय लगेगा! तुम्हें भी तो सदियों लगे थे डेमोक्रेसी-वार्ड में शिफ्ट होने में! सुनों, तुम हमारी तरह की इमरजेंसी नहीं ला सकते, हम तुम्हारी तरह की डेमोक्रेसी! पाकिस्तान की जनता ने 'मुशर्रफ कपड़े उतारो, कपड़े उतारो' चिल्ला-चिल्ला कर पाकिस्तान को नख्लिस्तान बना डाला, तो बेचारे मुशर्रफ साहब क्या करते, उन्होंने कपड़े उतार दिए। पता नहीं क्यों अब शेम-शेम चिल्ला रही है! जनता आतंकवाद-आतंकवाद का शोर मचाकर आतंक फैला रही थी। जिन महानुभावों के आतंकवाद से खतरा था, मुशर्रफ साहब ने उन्हें सुरक्षित-स्थान पर पहुंचा दिया। पता नहीं क्यों वे ही लोग अब उसे नजरबंदी बताकर इमरजेंसी का शोर मचा रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है, कोई भी शख्स सभी को खुश नहीं रख सकता!
पाकिस्तान अपने हिंदुस्तान का पड़ोसी मुल्क है। पड़ोस में सड़ी मिर्च का तड़का लगेगा, तो छींक पड़ोसी को आएगी ही। पड़ोस में बरसात हो और पड़ोसी बौछार से बच जाए, यह असंभव है। भाजपा का इसमें कोई कुसूर नहीं है। वह तो पड़ोसी पाकिस्तान के तड़के के कारण छींक रही है। तो उसे याद आएगा ही कि हमारे वो भी एक दिन सड़ी मिर्चा ले आए थे। पाकिस्तान की इमरजेंसी के बहाने अपनी इमरजेंसी को कोसना स्वाभाविक है। रोने के लिए आखिर मुद्दा तो कोई चाहिए। रोएगी-चीखेगी नहीं तो भारत की जनता उसके मौन का अर्थ क्या लगाएगी, क्या यह बताने की भी जरूरत है। हमारी माताजी स्वर्गवासी हुई। मातम-पुरसी के लिए पड़ोसिन आई। हमारी माताजी का जिक्र करते-करते अपने-अपने स्वर्गवासियों के लिए विलाप करने लगीं। उनके उसी विलाप से हमें पता चला कि घूंघट में कौन सी पड़ोसिन छिपी हैं। किस-किसने रुदाली का कितना सशक्त अभिनय किया, उनके स्वजन-विलाप से ही हमें ज्ञात हुआ। जब उनके यहां कोई ताजा-ताजा स्वर्ग सिधारेगा, हम भी उसी के अनुरूप रुदन की परंपरा का निर्वाह करेंगे। उसी परंपरा का अनुसरण बेचारी भाजपा कर रही है।
पाकिस्तान की इमरजेंसी के आधार पर इंदिरा-युगीन इमरजेंसी को याद कर विलाप करना, भाजपा की मजबूरी भी है। महंगाई के मुद्दे पर वह विलाप कर नहीं सकती, क्योंकि उसके राज्य में भी महंगाई कम कृपावान नहीं थी। महंगाई एक ही किस्म की होती है, अत: महंगाई की किस्म भी विलाप का कारण नहीं बन सकती। 'गरीबी हटाओ-देश बचाओ' जैसे घटिया किस्म के विषय पर ध्यान देकर वह अपनी ऊर्जा फिजूल में नष्ट करने की पक्षधर कभी रही ही नहीं! बेचारी अभी तक परमाणु-डील के वाममार्गी टाइप मुद्दे पर आंसू बहा रही थी।
भगवान इमरजेंसी लगे अमेरिका में, वह मुद्दा भी बेचारी से छिन लिया। कभी किसिंजर, तो कभी मलफर्ड तो कभी टालबोट जैसे एक के बाद एक धमकाऊ-पूत भेजकर डील-मुद्दे को टालने के लिए दबाव डालती रही। क्या करती बेचारी आखिरकार डील-मुद्दे को टालमटोल की नीति भेंट चढ़ाना ही पड़ा। भला हो पाकिस्तान का इमरजेंसी लग गई। उसके दुख में विलाप करने के साथ-साथ अपनी इमरजेंसी पर भी विलाप करने की सुविधा मिल गई। भाजपा को वास्तव में पाकिस्तान का शुक्रगुजार होना चाहिए। भगवान राम के बाद यदि कोई उसे ऊर्जा प्रदान कर रहा है तो केवल पाकिस्तान। कभी कश्मीर के बहाने, तो कभी जिन्ना के और अब इमरजेंसी के बहाने ऊर्जा प्राप्त हो रही

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