Saturday, October 13, 2007

गंजों के सिर पर बाल



जॉन हाकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कैथरीन सी थामसन व उनके सहयोगियों ने जीन पर शोध कर गंजों की चांद पर बाल उगाने का आविष्कार किया है। अब सिंगल प्रोटीन के जरिए बंजर चांद पर भी फसल लहराने लगेगी। समाचार पढ़कर मेरी चांद के बाल इस तरह खड़े हो गए, लादेन का नाम सुनकर जिस तरह अमेरिका की एंटी एयर क्राफ्ट गन आसमान की तरफ मुंह उठा लेती हैं। मानव बम का नाम सुन पुलिस जिस प्रकार कथक करने लगती है, उसी प्रकार मेरा तन कांपने लगा। जमीन भी पैरों तले से खिसक गई। वैसे, नेताओं ने जब से जमीन से जुड़े होने के महत्व को समझा है, तब से नेता के पास कुछ हो या न हो, जमीन जरूर होती है। हकीकत तो यह है कि वामन अवतार की तरह नेताओं ने पूरी पृथ्वी ढाई पग में नापने का 'सर्वजन हिताय' अभियान शुरू कर रखा है, ताकि आम-जन के पैरों तले जमीन न रहे। न जमीन होगी, न खिसकने का डर रहेगा। फिर भी मामला यदि संवेदनशील हो तो जमीन हुए बिना भी पांव तले से जमीन खिसकने लगती है।मेरा भयभीत होना फिजूल नहीं है, उसके पीछे जायज कारण है।

मेरे मानना है कि गंजों के सिर पर बाल उगाना आतंकवाद को बढ़ावा देना है। सीधी सी बात है, 'भगवान गंजों को नाखून नहीं देता'। अब यदि गंजों की चांद भी हरी-भरी होने लगेगी तो पूर्व गंजों की उंगलियों में नाखून उगाना ऊपर वाले की मजबूरी हो जाएगी। जब नख संपन्न लोगों की तादाद में इजाफा हो जाएगा तो स्थिति क्या होगी, इसका अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है। गंजापन दिखाने से हालांकि गंजे अभी भी बाज नहीं आते, मगर गनीमत यह है कि इसके लिए उन्हें दूसरों के नाखून तलाशने पड़ते हैं। जैसे भाई टोनी ब्लेयर को दूसरों की चांद लहूलुहान करने के लिए चचा जॉर्ज बुश के नाखूनों का सहारा लेना पड़ा।
चचा लादेन हालांकि सिर पर पगड़ी बांधे रहते हैं, उनके सिर का भूगोल दिखलाई नहीं पड़ता, फिर भी मैं दावे के साथ कह सकता हूं, वे गंजे नहीं हैं, क्योंकि उनके नाखून लंबे भी हैं और घातक भी। लोग कहते हैं कि झगड़ा नाक के कारण होता है, मगर मेरा मानना है कि नाक तो एक बहाना है। झगड़े की जड़ नाखून है, नाक नहीं। नाक तो फिजूल में बदनाम है, बेमतलब पानी-पानी हो रही है। नाक कितनी भी फूं-फां कर ले, यदि नाखून ही न होंगे तो नाक का सवाल हल करने के लिए, कोई भी किसी की चांद नाक से जख्मी नहीं कर पाएगा। खतरा बस नाखूनों से है।दिल्ली के एक स्वास्थ्य मंत्री ने अपने कार्यकाल में होटल-रेस्टोरेंट के बावरचियों के नाखून काटने का अभियान चलाया था। महाशय गंजे हैं, इसलिए नख विहीन थे। संभवतया कुंठावश उन्होंने यह अभियान छेड़ा हो। हमने तब उन्हें नेक सलाह दी, 'अरे भाई! सत्ता का नेलकटर बावरचियों पर चलाने का क्या लाभ! नाखून काटने हैं तो नेताओं के काटो। बावरचियों के नाखून तो घर की महिलाओं की तरह काम-काज में खुद ही घिस जाते हैं। नाखून तो नेताओं के घातक हैं।'
उन्होंने उस समय हमारी सलाह पर गौर नहीं फरमाया था, शायद यह उनकी राजनैतिक मजबूरी रही होगी। हालांकि उनके साथी नेताओं ने उन्हें भी नहीं बख्श था। अपने विषाक्त नाखूनों से उनकी बंजर चांद भी लहूलुहान कर दी। हमारी सलाह मान लेते तो शायद बच जाते।
खैर, उनकी वे जाने, हमारा मानना है कि हरी-भरी चांद वाले नेताओं को सत्ता से दूर रखना चाहिए, क्योंकि सत्ता और नाखून, दोनों का साथ रहना उतना ही खतरनाक है, जितना पाकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण कैंपों का होना। सत्ता और नाखून, मानों करेला नीम चढ़ा। सत्ता नाखूनों की धार तेज कर देती है। नाखून और सत्ता के घातक गठबंधन का उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं है, देश से परदेस तक अनेक उदाहरण आपकी उंगलियों पर हैं।
विश्व के वैज्ञानिकों से हमारा तो बस यही अनुरोध है कि अनुसंधान आम आदमी के लिए हितकर होने चाहिए। अपने अनुसंधानों की दिशा में परिवर्तन करो। बंजर चांद को उपजाऊ बना कर नाखून वालों की तादाद में वृद्धि का इरादा त्याग दो। यही आम-जन के हित में होगा। कुछ ऐसी खोज करो कि विश्व के सभी नेता गंजे हो जाएं, नख विहीन हो जाएं। तृतीय विश्व युद्ध का खतरा टल जाए, विश्व में शांति स्थापित हो जाए।
राजेंद्र त्यागी- फोन 9868113044