Monday, January 26, 2009

शहर

गणतंत्र िदवस पर हािर्दक शुभकामनाएं

ग़ज़ल

हमें भी अपने' शहर पर गुमान है।
पर आदमी की मुश्किलों में जान है।।

तड़प-तड़प के मर गया जो आदमी।
सुना है उसका लाड़ला जवान है।।

बहुत सी' हसरतें थी अपने' शहर से।
अजीब शोर बंद हर जुबान है।।

कदम-कदम पे आहटें' हैं मौत की।
वजूद का ये कैसा' इम्तिहान है।।

मुझे ही क्या सभी को जिस पे नाज था।
वो' घर नहीं है आजकल मकान है।।

जो धज्जियां उड़ा रहा है अम्न की।
उसे ही हमने सौंप दी कमान है।।

सुना रहा जो' वक्त 'अम्बर' आजकल।
रँगी हुई वो' खूं में' दास्तान है।।

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