Saturday, January 12, 2008

हस्तिनापुर साम्राज्य में चुनाव

हम प्रसन्न हुए दुर्योधन!
युद्धिष्ठिर चुनाव की तैयारी में हैं, अफवाह वेग से यह समाचार समस्त हस्तिनापुर राज्य में फैल गया। इस समाचार ने कौरव शिविर में भी चिंता का प्रसारण कर दिया। समाचार सुनते ही दुर्योधन मामा शकुनि की शरण में गया और इंद्रप्रस्थ क्षेत्र से ही चुनाव मैदान में उतरने की इच्छा व्यक्त की। भांजे की इच्छा सुन शकुनि मुसकराते हुए बोला-चुनाव और तुम! नहीं, भांजे! चुनाव-संघर्ष में उतरना तुम्हारे जैसे स्वाभिमानी व्यक्तियों के बूते की बात नहीं है। उसके लिए अहंकार का त्याग कर अपमान सहन करने की क्षमता अर्जित करनी होगी और वह तुम्हारा अहंकार तुम्हें करने नहीं देगा।
अट्टहास कर दुर्योधन बोला- चिंता न करे, मामाश्री! भांजा तुम्हारा ही हूं। द्यूत-क्रीड़ा के सभी हुनर मैंने कण्ठस्थ कर लिए हैं। शकुनि ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा- किंतु भांजे! टिकट का निर्धारण करने वाली चुनाव समिति में नेता होते हैं और नेता शकुनि से भी दो पग आगे ही होते हैं। शकुनि की शंका सुन आत्मविश्वास के साथ दुर्योधन बोला- बस, मामाश्री आशीर्वाद दो, लोकतंत्र का ऐसा कौन सा पाशा है, जिसे तुम्हारा यह भांजा फेंकना नहीं जानता है। शकुनि का आशीर्वाद प्राप्त कर दुर्योधन भी संगठन कार्यालय की ओर कूंच कर गया।
प्रत्याशी चयन समिति के समक्ष राजकुमार दुर्योधन प्रस्तुत हुआ। समिति सचिव आसन ग्रहण करने के लिए राजकुमार दुर्योधन की तरफ संकेत करता, उससे पहले ही उसने स्वर्ण जड़ित मंजूषा उसके समक्ष रख दी।
आश्चर्य चकित समिति अध्यक्ष ने पूछा, 'वत्स दुर्योधन! यह क्या?'
राजकुमारोचित्त अट्टहास करते हुए दुर्योधन बोला, 'श्रद्धेय! संगठन-कोष के लिए एक हजार स्वर्णमुद्राएं हैं।' चुनाव समिति के सदस्यों ने अध्यक्ष की तरफ देखा और उसने मंजूषा अंदर पहुंचाने का संकेत किया। इसके बाद सवाल-जवाब का दौर शुरू हुआ।
अध्यक्ष का पहला प्रश्न था, 'राजकुमार! इंद्रप्रस्थ में तो जनाधार पांडवों का है। वहां से आपके विजयी होने की संभावना क्षीण लगती हैं!'
दुर्योधन ने फिर अट्टहास किया और बोला, 'जनाधार! यह किस चिड़िया का नाम है? चुनाव जनाधार के नहीं बाहुबल से जीते जाते हैं। इंद्रप्रस्थ संसदीय क्षेत्र में उतने भी मतदान-केंद्र नहीं हैं, जितने की मेरे भ्राता हैं। प्रत्येक मतदान-केंद्र पर एक-एक भ्राता नियुक्त करने के उपरांत भी भ्राता शेष रह जाएंगे।'
'अच्छा! दुर्योधन, तुम्हारे साथ पहलवान कितने हैं?'
दुर्योधन बोला, 'सौ क्या अपर्याप्त हैं? सौ भ्राताओं के अतिरिक्त कर्ण जैसे महारथी मेरे ध्वज वाहक होंगे।'
सचिव ने सवाल किया, 'मगर राजकुमार! कर्ण तो दानवीर है, यदि माता कुंती ने उससे पुन: कुंडल व कवच मांग लिए तो बना बनाया पूरा खेल क्या बिगड़ नहीं जाएगा?'
गदा हवा में लहराते हुए दुर्योधन बोला, 'नहीं, वह युग बीत गया है, जब कर्ण फाख्ता उड़ाया करते थे। मित्र कर्ण बार-बार त्रुटि दोहराने के आदि नहीं हैं। माता कुंती यदि विवश करती भी हैं, तो नकली कुंडल-कवच लाकर उन्हें दे दिए जाएंगे।'
राजकुमार दुर्योधन की हाजिर जवाबी और उसके चेहरे पर प्रकट आत्मविश्वास के भाव देख समिति के सभी सदस्य आश्चर्यचकित थे। सचिव ने अध्यक्ष की तरफ निहारा और उसके कान में फुसफुसाय, 'आदमी काम का लगता है, महाराज!'
अध्यक्ष ने सिर हिला कर सचिव का समर्थन किया। साथ ही अध्यक्ष ने सवाल किया, 'यह तो उचित है कि तुम्हारे पास पर्याप्त बाहुबल है और उसके सहारे तुम मतदान केंद्रों पर बलात अधिकार कर कूटमत की रणनीति में अवश्य ही सफल हो जाओगे, किंतु सफलता प्राप्त करने के लिए कूटनीति का ज्ञान रखने वाला भी तो कोई होना चाहिए। क्या तुम्हारे पास ऐसा कोई कूटनीतिज्ञ है?'
दुर्योधन ने एक लंबी सांस ली और अध्यक्ष की तरफ इस प्रकार देखा, मानो उसके सामान्य ज्ञान पर तरस आ रहा हो। हथेली से अपना भाल रगड़ते हुए वह बोला, 'महाराज! क्या आप मामाश्री शकुनि से परिचित नहीं हैं? संपूर्ण आर्याव‌र्त्त में उनसे बड़ा कूटनीतिज्ञ कोई दूसरा कोई है?'
विशालकाय मूंछों को उंगलियों से रगड़ते हुए दुर्योधन ने आगे कहा, 'मामा शकुनि अपनी हथेलियों के बीच जब चौपड़ के पासे रगड़ते हैं, तो अच्छे-अच्छों को पसीने छूट जाते हैं। अरे, मेरा मामा तो वह हस्ती है, जो बर्फ से बने घर में भी आग लगा दें। अल्पमत को बहुमत में और बहुमत को अल्पमत में परिवर्तित कर दे। संदेह के बीजारोपण कर स्पष्ट बहुमत प्राप्त सरकार को भी सत्ताच्युत कर दे और अल्पमत को सत्तासीन कर दे। मामा शकुनि मेरे चुनाव प्रभारी रहेंगे।'
'मगर दुर्योधन! तुमने द्रौपदी का चीरहरण किया था, विरोधी दलों ने उसे चुनावी-विषय बना कर उछालना प्रारंभ कर दिया, तो तुम्हारा ही नहीं समूचे आर्यावर्त के चुनाव का ढेर हो जाएगा!' अध्यक्ष ने आशंका व्यक्त की।
कुटिल मुस्कान का नमूना पेश करते हुए दुर्योधन ने आत्मविश्वास के साथ कहा, 'किस युग की बात कर रहे हो, श्रद्धेय! तब केवल दुर्योधन ही चीरहरण करता था, इसलिए समाचार बन जाता था। अब तो प्रतिदिन चीरहरण होते हैं, चीरहरण की घटनाएं अब कोई समाचार नहीं है, अत: चीरहरण आज न कोई विवादास्पद विषय है और न ही समाचार।'
अध्यक्ष ने नई शंका प्रस्तुत की, 'किंतु आपराधिक चरित्र होने के कारण तुम्हारा नामांकन अवैध घोषित किया जा सकता है।'
'फिर फिजूल की बकवास! मेरे विरुद्ध साक्ष्य देने की संपूर्ण आर्याव‌र्त्त में आज तक किसी ने साहस नहीं किया है। साक्ष्य नहीं तो दण्ड नहीं और दण्ड नहीं तो फिर अपराधी किस प्रकार?' इतना कह कर दुर्योधन ने पुन: अट्टहास किया।
अगला प्रश्न हवा में तैरने से पूर्व ही दुर्योधन बोला, 'अध्यक्ष जी सुनो, काकाश्री भीष्म पितामह मेरे पक्ष में प्रचार करेंगे और जब वे मेरे समर्थन में बोलेंगे तो समूचा इंद्रप्रस्थ मेरे पीछे होगा।'
सचिव ने आशंका व्यक्त की, 'मगर भीष्म पितामह का नैतिक समर्थन तो पांडवों के साथ है! वैसे भी वे शर-श्य्या पर हैं!'
बुद्धिजीवियों की सी गंभीरता चेहरे पर उतार दुर्योधन बोला, 'पितामह हस्तिनापुर की रक्षा के प्रति प्रतिज्ञाबद्ध हैं और मैं युवराज हूं, अत: पांडवों के मोह से ग्रसित होने के उपरांत भी मेरे पक्ष में प्रचार करना उनकी बाध्यता है।'
दुर्योधन ने दीर्घ श्वास लेकर आत्मविश्वास को शक्ति प्रदान की और बोला, 'पितामह का शर-श्य्या पर होना हमारे हित में हैं, क्योंकि शर-शय्या पर उन्हें किसी और ने नहीं पांडु-पुत्र अर्जुन ही ने सुलाया है। अत: प्रचार कर इसका लाभ उठाया जाएगा। पितामह की पीड़ा का लाभ उठाऊंगा और सहानुभूति मत प्राप्त करूंगा।'
दुर्योधन आगे बोला, 'दिव्य दृष्टिं प्राप्त संजय हमारा प्रचार माध्यम होगा।'
अध्यक्ष ने आशंका व्यक्त की, 'किंतु संजय तो राजकीय संचार माध्यम है, तुम्हारा व्यक्तिगत तो नहीं!'
'राजकीय क्या होता है? व्यवस्था कर ली जाएगी! चुनाव में उपयोग के लिए मार्ग निकाल लूंगा। स्वर्ण मुद्राएं किस काम आएंगी। सर्वाधिक शक्ति संपन्न होती हैं, स्वर्ण मुद्राएं!'
चुनाव समिति के सदस्यों ने परस्पर विचार-विमर्श किया और फिर अध्यक्ष ने परिणाम सुनाया, 'वत्स हम प्रसन्न हुए। सफल नेता के सभी गुण आप में विद्यमान हैं। टिकट आप ही को मिलना चाहिए हम अपनी संस्तुति उच्चाधिकार समिति के पास प्रेषित कर देते हैं। किंतु टिकट प्राप्ति से पूर्व आपको यक्ष-प्रश्न के दौर से निपटना होगा। जाओ वत्स तुम्हारा कल्याण हो।'
(कल दुर्योधन यक्ष-प्रश्‍नों का उत्‍तर देगा)