Saturday, October 27, 2007

मलफोर्ड व आडवाणी जी के मध्य गोपनीय वार्ता

भारत में अमेरिकी राजदूत डेविड मलफोर्ड परमाणु-डील पर समर्थन जुटाने के लिए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी से मिले। श्री मलफोर्ड ने डील के संबंध में भाजपा को चिंता-मुक्त करने का प्रयास किया, परंतु सफलता हाथ नहीं लगी। सूत्रों के अनुसार श्री आडवाणी ने उनकी बातों को ध्यान से सुना, लेकिन डील का समर्थन करने का वायदा नहीं किया। यह जानकारी मीडिया सूत्रों के मुताबिक है। हमारे सूत्रों ने इस वार्ता का ब्यौरा कुछ इस प्रकार दिया है।
श्री आडवाणी ने उनसे स्पष्ट इनकार नहीं किया है। उन्होंने कहा था कि मैं आपके सुझाव का सिद्धांत: समर्थन करता हूं। उसके पक्ष में हूं, किंतु मैं पूर्व में दूध पीते-पीते जल चुका हूं, अत: शीतल-जल को भी फूंक-फूंक कर पीने का आदी हो गया हूं। मेरी पार्टी और हमारे बड़े भाई मुझे कहीं जिन्ना न बना दें, इसलिए आपका प्रस्ताव पार्टी की कार्यकारिणी के समक्ष प्रस्तुत करूंगा। उसके पक्ष में समर्थन जुटाऊंगा, तत्पश्चात ही आपको कोई आश्वासन दे सकूंगा वैसे भी मैं प्रधानमंत्री का दावेदार हूं। फू-फू किए बिना कुछ नहीं कहूंगा।
श्री मलफोर्ड के सुझाव के संबंध में भी हमारे सूत्र की जानकारी मीडिया के सूत्रों से भिन्न है। हमारे सूत्रों का कहना था कि परमाणु-डील का समर्थन करने की पेशकश वार्ता का एक बिंदु था। वार्ता का केंद्रबिंदु कांग्रेस और भाजपा के बीच गठजोड़ करने के संबंध में था। हमारे विश्वस्त सूत्रों के अनुसार श्री मलफोर्ड ने कुछ इस प्रकार कहा था-
न तुम उसकी काटो, न वह तुम्हारी काटे। गर्दन काट प्रतिस्पर्धा का त्याग करो, दोनों एक-दूजे को गले लगालो। वे तुम्हारी काटेंगे, तुम उनकी काटोगे, दोनों हेडलेस हो जाओगे। कोई हेडलेस चिकन कह देगा, खामोखां बुरा मान जाओगे, इसलिए न तुम उसकी काटो और न वह तुम्हारी काटे। अलग- अलग एक-एक दो कहलाते हैं। मिल जाएं तो एक और एक ग्यारह हो जाते हैं, अत: दोनों मिल जाओ, एक और एक ग्यारह हो जाओ। आगामी चुनाव में नो-दो ग्यारह होने से बच जाओ। उनकी सरकार राम भरोसे हैं। तुम्हारी सरकार बनना राम भरोसे है। रामभरोसे का भरोसा छोड़ो। एक-दूजे का भरोसा करो।
श्री मलफोर्ड ने उन्हें समझाया था- तुम अपने ढाई चावल अलग गलाते फिरो। वे अपने ढाई चावल अलग गलाते फिरें। न तुम्हारे गल पाएंगे, न उनके पक पाएंगे। दोनो ढाई जमा ढाई कर लो, मिलकर बिरयानी पकालो। जब तक चावल में दाल नहीं मिलती, तब तक खिचड़ी नहीं बनती। एक-दूजे को गले लगालो, घर में ही खिचड़ी बनालो। दाल जूतों में बटने से बचालो। 'तेरी छाछ, मेरे बैंगन' कब तक करते फिरोगे। कब तक दूसरों के चाटते फिरोगे। अरे, भाई! एक के पास बैंगन हैं, तो दूसरे के पास छाछ। फिर क्यों रहो उदास।
श्री मलफोर्ड ने विभिन्न दृष्टिंकोण से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा- चाल,चरित्र,चित्र दोनों का समान है, फिर हाथ मिलाने में क्या एतराज है। अरे, भाई! तुम भी कम सेक्युलर नहीं, वे कम नहीं! तुम बहुसंख्यकों को पटाने में लगे हो, वे अल्पसंख्यकों फंसाने में लगे हो। दोनों मिल जाओ, मिलकर बहुजन को निशाना बनाओ। ''बहुजन हराए, बहुजन जिताए'' का सिद्धांत याद रखो। धंधेबाजी में भी दोनों में से कोई कम नहीं है। घोटालेबाज तुम्हारे यहां भी कम नहीं हैं, उनके यहां भी कम नहीं। दोनों में ही इक्कीस ही इक्कीस हैं, उन्नीस किसी में भी नहीं हैं। दोनों ही का इतिहास सुनहरी है, फिर एक-दूजे को गले लगाने में क्यों देरी है।
श्री मलफोर्ड ने अंत में चेतावनी देते हुए कहा- सुनों, नेताजी! उत्तर प्रदेश से बिल्ली आ रही है। ऐसा न हो, बंदरों की लड़ाई में बिल्ली पुलाव खा जाए। तुम लड़ते रहो छीका बिल्ली के भाग पर रीझ जाए। छीका भी तुम्हारा इंतजार कब तक करेगा। उसे तो आज नहीं कल टूटना ही है। तुम लड़ते रहोगे, वह बिल्ली के भाग पर मेहरबान हो जाएगा। अत: अंकल बुश की सलाह मानों, एक-दूजे को गले लगा लो। इसी में हमारा हित है, इसी में तुम्हारा हित है।
यद्यपि श्री मलफोर्ड व श्री आडवाणी के मध्य हुई इस वार्ता की अभी तक अधिकारिक पुष्टिं नहीं हुई है। फिर भी हमारे विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि इतना अवश्‍य है कि श्री मलफोर्ड बिरयानी खाने तो नहीं आए थे।
संपर्क – 9868113044