Thursday, October 11, 2007

नेकी तज अनेकी कर


नेकी तज अनेकी कर

राजेंद्र त्यागी
असामाजिक कृत्य नेकी करने वालों के प्रति भले लोगों की हमेशा से ही हमदर्दी रही है। यही कारण है कि नेकी करने के बाद जब-जब भी नेक इंसान पीड़ित हुए, भले मानुषों ने उन्हें दिलासा और सुझाव देने में तनिक भी कोताही नहीं बरती। नेकीकृत पीड़ा के ऐसे ही आड़े वक्त किसी भले मानुष ने सुझाव दिया होगा, 'नेकी कर दरिया में डाल।' नेकी के इतिहास में इसी का क्षेत्रीय संस्करण भी मिलता है, 'नेकी कर कुएं में डाल'। जिन क्षेत्रों में दरिया नहीं बहते होंगे या होते भी होंगे तो जमाने की दुश्वारियों से तंग आकर 'सरस्वती' की गति को प्राप्त हो गए होंगे, ऐसे ही क्षेत्रों के लोग नेकी डालने के लिए कुओं का इस्तेमाल करते होंगे और वहीं से सुझाव का यह क्षेत्री संस्करण उत्पन्न हुआ होगा। आधुनिक युग में परिदृश्य बिलकुल बदल गये हैं। दरिया व कुएं नेकियों के कारण पट गए हैं। दुर्भाग्यवश, अभी तक जो इस सदगति से वंचित हैं, ऐसे दरिया विकास की लाईन में लगे हैं। नेकी से अटे कुओं को समतल कर उन पर जन-सुविधा परिसर निर्मित कर दिये गये हैं। पानी के लिए लोग म्यूनिसपैल्टी के 'मिक्सचर' पर आश्रित हैं। फलस्वरूप नेकी करने वाले बेचारे बड़ी मुसीबत में हैं। जाने-अनजाने किसी से नेकी जैसे पाप कर्म हो जाए तो उसे छुपाने कहां जाए? बदलते इस परिवेश से पीड़ित हमारे मखौलकार मित्र आलोक पुराणिक ने मुसीबत से निजात दिलाने का नायाब हल प्रस्तुत किया है। नेकी करने वालों के लिए उनकी सलाह है,'न सही दरिया और कुएं, नेकी कर ही डाली है तो उसे अखबार में लपेट, यानी, 'नेकी कर अखबार में डाल।' हम प्रैक्टिकल अप्रोची हैं, प्रगतिवादी हैं, परिवर्तनवादी हैं। इसलिए हमारा मत इन से बिलकुल भिन्न है। नेकी करने का मूल सिद्धांत ही हमें फंडामेंटल लगता है, दकियानूसी लगता है। हमारा कहना है कि नेकी करे ही क्यों? पहले नेकी कर और फिर नाजायज औलाद की तरह अखबार में लपेट, दरिया-कुएं में दफनाता फिर। जरा से मजे के लिए जिंदगी भर की तोहमत, पागल कुत्ते ने काटा है? ऐसी नेकी से तो तोबा भली।ेनेकी के विरोध और अनेकी के पक्ष में हमारे पास सोलिड तर्क हैं, जैनविन कारण हैं।े हमारा कहना है, भाई! ऐसा कृत्य करते ही क्यों हो, जो समाज को स्वीकार्य न हो। स्वीकार होता तो दरियर या कुएं का मसला ही न उठता। हमारी मान! नेकी कर अपना नाम असामाजिक लोगों की सूचि में दर्ज न करा।
नेकी करेगा, भईया! फल अगले जन्म में मिलेगा, मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा। पूरे एक जन्म का इंतजार!आंख बंद हो गई फिर किसने देखा।आज का भरोसा नहीं, कल किस ने देखा।अनेकी करेगा, हाथ के हाथ फल मिलेगा।जिंदगी भर मजा लूटेगा, इसी जन्म में स्वर्ग मिलेगा।नेकी करेगा! मूर्ख कह लाएगा।अनएफिसिऐंट का लेवल चस्पा हो जाएगा।मरने के बाद भले ही स्वर्ग मिल जाए।जीते जी तो नरक का हीभागी रहेगा।औलाद को भी गर्त में ढकेल जाएगा।अनेकी करेगा! बहुमुखी प्रतिभा के धनी कह लाएगा।देर-सबेर नेता भी बन जाएगा।जीवन भर सत्ता सुख भोगेगा।मरते-मरते, औलाद के लिए मार्ग प्रशस्त कर जाएगा।हमारी सलाह है, व्यवहारिक सलाह है।नेकी मत कर, अनेकी कर अनेक बार कर, बार-बार कर। सुखी रहेगा। नेकी फेयर है, अनेकी अफेयर। जमाना फेयर का नहीं अफेयर का है।फेयर करना गले में हड्डंी डालना है।हड्डंी चूस! कौन मना करता है?फेयर के चक्कर में गले न फंसा।फेयर करेगा जूते खाएगा।एक से भी हाथ धो जाएगा।फेयर नहीं 'अफेयर' कर। ढोल अपने नहीं दूसरे के गले पड़ा रहने दे। जब मन आए बजा लेना, मन न करे तो कान दबा कर खिसक जाना। 'अफेयर' कर खुल्लम-खुाल्ला कर, मन भर कर। 'अफेयर' करेगा तो नाजायज औलाद भी जायज होने का एडवांस प्रमाणपत्र लेकर पैदा होगी।खुद के साथ-साथ तेरा नाम भी रोशन कर जाएगी।
समाज में जिसने भी फेयर तज अफेयर किया वही अमर हो गया। लैला-मंजनू, हीर-रांझा, सोनी-महिवाल, सीरी-फरहाद बन गया। प्रेमियों के इतिहास में नाम अमर कर गया। फेयर जिसने किया घृणा का पात्र बन गया। हमारे एक मित्र हैं, नेकीराम जी! बेचारे नेकी मार्गी है। कहने को एम.ए.पीएचडी हैं, मगर मेरठ के लालकुर्ती चौराहे पर गोलगप्पे बेच कर नेक-नीयत के साथ भरण-पोषण करने की चेष्टा में रत्ं हैं। हमने लाख बार समझाया, बड़े भाई! व्यावहारिक बनो। नेकी-वेकी की राह छोड़ो अनेकी का मार्ग अपनाओ। नेकी करोगे तो दरिया या कुएं में कहीं न कहीं दफनानी पड़ेगी। उसके बाद भी समाज से लताड़ ही मिलेगी। मजाल जो उनके कान पर जूं भी रेंगी हो। उल्टे, आंखों से गंगा-यमुना की प्रदूषित धारा बहाते हुए बोले, 'क्या जमाना आ गया है, नेकी के पीछे लोग ऐसे पड़े हैं जैसे कश्मीर के लिए पाकिस्तान अड़ा है। ठीक है! जब नैतिक मूल्यों का ही पतन हो रहा है तो नेकी ही बेचारी कहां बच पाएगी।' उनके दिमाग का प्रदूषण दूर करने का असफल प्रयास करते हुए हमने कहा, 'भई जान! कौन से मूल्यों की बात करते हो? मंदी का दौर है, मुद्रास्फीति का भटकाव बराबर जारी है। ऐसे में तुम्हारे नैतिक मूल्यों का भव कोई क्या लगाएगा? गोलगप्पों के भाव बिक रहे हैं, तुम्हारे नैतिक मूल्य। इस भाव में भी उनका कोई खरीददार नहीं। ऐसे में नैतिक मूल्य अच्छे भाव दे जाएंगे, यह सोचना भी व्यर्थ की कवायद है। कभी-कभार अखबार का अर्थ पृष्ठं भी पलट कर देख लिया करो। तुम्हारी नेकी, बाजार में कभी भाव नहीं बना पाई। नेकी की राह पर चला तो था तुम्हारा राजा हरीशचंद्र, नेकी करने की हिमाकत की थी। क्या हाल हुआ उसका, जगजाहिर है। पीछा तब तक नहीं छूटा जब तक शमशान घाट जा कर नेकी का अंतिम संस्कार नहीं कर दिया। महात्मा गांधी भी नेकी मार्गी थे, एक लंगोटी, एक लाठी के सहारे तमाम जिंदगी काट दी। अनेकी की राह पर चलने वाले उनके चेले-चपाटे! खीमखाफ पहन सत्ता का सुख भोगते रहे। अनेकी की राह पकड़ एक शिष्य पाकिस्तान ले बैठा, पूरी जिंदगी राज करा। बाकी हिंदुस्तान पर काबिज हो गये। जब तक जिंदा रहे खुद राज करा, अब औलाद गुलछर्रे उड़ा रही है। जाने-अनजाने नेकी हो भी जाए तो हमारे मित्र पुराणिक की सलाह पर अखबार वालों के आसपास भी मत फटकना। अखबार और अखबार वालों से किनारा ही करना। नेकी जैसा कुकृत्य अखबार वालों के लिए कोई खबर नहीं है। खबर बन भी जाए तो उसे प्रकाशित करना जनर्लिस्टिक एथिक्स के विपरीत है। अनेकी करोगे तो 'भाई लोगों' की तरह खुद-ब-खुद हाईलाइट हो जाओगे।मगर, क्या कहा जाए? सभी की अपनी-अपनी समझ है, अपनी-अपनी सोच। दरअसल हर आदमी की बुद्धि किसी न किसी लक्ष्मण रेखा के दायरे में कैद है। उससे बाहर न सोचने के लिए बेचारा मजबूर है। फिर भी मेरी सलाह, व्यावहारिक सलाह! नेकी तज, अनेकी कर, एक नहीं अनेक बार कर, बार-बार कर।

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