Thursday, October 18, 2007

डॉन संस्कृति- सार्वभौम संस्कृति!


मित्र मुन्नालाल के साथ सुबह सैर पर निकला था। तभी लंबी-लंबी गाड़ियों का लंबा काफिल धूल उड़ाता वहां से गुजरा। देख उसे हमारी बुद्धि करने लगी मुजरा। हमने जिज्ञासा व्यक्त की मित्र मुन्नालाल, यह कौन सज्जन हमारे मुंह पर खाक डाल गया। हमें सुपुर्दे खाक कर गया? मुन्नालाल बोला, डॉन।

मैने पूछा, बिग बी या किंग खान? मुन्नालाल बोला, डॉन, डॉन के मध्य अंतर कैसा? केवल डॉन, न बिग बी न किंग खान, बस रीयल डॉन।
इतना सुनते ही मेरी वेदना, संवेदना अर्थात संपूर्ण चेतना डॉन नामक जीव पर केंद्रित हो गई। डॉन के उद्भव, विकास और समाज के लिए उसकी उपयोगिता से संबद्ध प्रश्न मेरे जहन में न्यूज चैनल की हैड लाइन की तरह एक-एक कर टपकने लगे।
हमारी जिज्ञासा भांप मुन्नालाल बोला, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी और ताकत का नाम डॉन। जिस प्रकर धातुओं के विकल्प के रूप में प्लास्टिक का उद्भव हुआ, उसी प्रकार नेताओं के विकल्प के रूप में डॉन का विकास हुआ। प्लास्टिक की तरह डॉन भी अग्नि, जल, पावक तीनों से अप्रभावित है। जल में वह गलता नहीं है, इसलिए चुल्लू भर पानी भी उसके लिए निरर्थक है। अग्नि में भस्म नहीं होता, इसलिए प्रत्येक ताप-संताप में वह समान भाव रखता है। वायु भी उसके रासायनिक गुणों में परिवर्तन करने में असमर्थ है, क्योंकि वह हमेशा ही अपनी हवा में रहता है। वह मृत्युंजय है। वह मरता नहीं, केवल रूप परिवर्तन करता है।
हमने पूछा, डॉन के उद्भव-विकास का इतिहास क्या है? मुन्नालाल बोला, प्लास्टिक पेट्रोलियम पदार्थ से प्राप्त अंतिम तत्व है और डॉन समाज का सार-तत्व। हमने पूछा, इसका मतलब समाज का प्रथम व्यक्ति? हमारी जिज्ञासा पर मुन्नालाल ने आश्चर्य व्यक्त किया, प्रथम व्यक्ति! बोला, न प्रथम, न द्वितीय, न तृतीय और न ही अंतिम व्यक्ति! डॉन व्यक्ति वाचक संज्ञा से परिभाषित नहीं होते हैं, व्यक्ति उनसे परिभाषित होते हैं, उनसे प्रभावित होते हैं। हमने जिज्ञासा व्यक्त की तो क्या यह कोई नया उत्पाद है? मुन्नालाल बोला, नहीं, परंपरागत वाद है। आदि काल में कबीले का मुखिया कहलाता था। राजशाही का जन्म हुआ तो राजा कहलाने लगा। लोकतंत्र आया तो नेता कहलाया जाने लगा। नेताओं का परिष्कृत स्वरूप है, डॉन।
प्लास्टिक की तरह डॉन की दखल भी हमारे जीवन में प्रसूति गृह से लेकर शमशान घाट तक समान है। राजनीति में डॉन, आर्थिक क्षेत्र में डॉन, शिक्षा के क्षेत्र में डॉन, धर्म के क्षेत्र में डॉन, समाज सेवा के क्षेत्र में डॉन, सर्वव्यापी है डॉन, न जाने किस भेष में बाबा मिल जाए डॉन रे। मैने कहा फिर तो लोकतंत्र का पाँचवां स्तंभ हुआ डॉन! मुन्नालाल बोला, नहीं! लोकतंत्र का ऊर्जा स्तंभ। उसने स्पष्ट किया, लोकतंत्र के स्तंभ निर्धारित क्षेत्र में ही लोकतंत्र को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। डॉन समूचे लोकतंत्र को एक मुश्त ऊर्जा प्रदान कर रहा है। डॉन को राजनीति का प्रकाश पुंज भी कहा जा सकता है, क्योंकि उसके प्रकाश में ही राजनीति अपनी मंजिल तलाश रही है, दिशा निर्धारित कर रही है। दशा का आकलन कर रही है।
सभी क्षेत्रों के अलग-अलग डॉन, फिर भी॥? मुन्नालाल बोला, कहा न डॉन व्यक्ति नहीं समष्टिं है, विविधता में एकता की संस्कृति है। न पूरब, न पश्चिम का भेद, न वामपंथी न दक्षिण पंथी, सार्वभौमिक संस्कृति है, डॉन। अरे रे रे, समझ गया, माफिया का दूसरा नाम है, डॉन! मुन्नालाल ने भूल सुधार की, नहीं-नहीं, माफिया संस्कृति का परिष्कृत स्वरूप है, डॉन। इस प्रकार मित्र मुन्नालाल ने हमें डॉन के विराट स्वरूप के दर्शन कराए। हमने मन ही मन डॉन को प्रणाम किया और सुरक्षित घर लौट आए।
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