Tuesday, October 9, 2007

हाए! भ्रष्टाचार के खेल में पिट गए!





हाए! भ्रष्टाचार के खेल में पिट गए!


राजेंद्र त्यागी
मन खिन्न है। भविष्य के प्रति चिंतित है। पानी उतरा हमारा चेहरा शर्म से पानी-पानी है। उम्मीद थी कि भ्रष्टाचार के क्षेत्र में एक दिन हम विश्व के सिरमौर हो जाएंगे। अब उसमें भी हम पिछड़ते जा रहे हैं, सत्तर वे पायदान से खिसक कर बहत्तर वे पायदान पर आ गए हैं। इस खेल में हम म्यानमार और सोमालिया जैसे टटपूंजिए देशों के हाथ पिट गए, इसलिए मेरा मन शर्मसार है। इतना भी होता तो गनीमत थी। ट्वेंटी-ट्वेंटी में मात खाए पाकिस्तान और बांग्लादेश से फिफटी- फिफिटी के गेम में पिछड़ गए, इसी वजह से मेरा मन उदास है। रफ्तार यदि यही रही तो सौवें पायदान की गति को भी शीघ्र ही प्राप्त हो जाएंगे, विश्व में फिसड्डी कह लाएंगे!
अफसोस यह नहीं है कि भ्रष्टाचार उतार पर है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो चलते ही रहते हैं। अफसोस तो यह है कि अब हम गर्व से कैसे कह पाएंगे कि हमारे हुक्मरानों के स्नानागारों में स्वर्ण-जड़ित नल की टोंटियां हैं। भ्रष्टाचार यदि पूर्णरूपेण समाप्त हो गया तो फिर राष्ट्रीय शिष्टाचार का क्या होगा? याद रखो जिस राष्ट्र का अपना का कोई शिष्टाचार नहीं है, जिस राष्ट्र का कई राष्ट्रीय-चरित्र नहीं है, वह राष्ट्र कहलाने के काबिल नहीं है।
जब मुझे कोई उलाहना देता था कि तुम्हारे देश का कोई राष्ट्रीय-चरित्र नहीं है, तब मेरा राष्ट्रवादी मन गर्व से कह उठता था, ''मूर्ख हो तुम! भ्रष्टाचार मेरे भारत-महान का राष्ट्रीय-चरित्र है!'' अब राष्ट्र-संस्‍कृतिवाद का यह सुनहरा पन्ना फटता नजर आ रहा है। यही कारण है कि मेरा राष्ट्रवादी मन आज खिन्न है। शुष्क चेहरा भी शर्म से पानी-पानी है।
भ्रष्टाचार का शिष्टाचार समाप्ति की और है, कोई बात नहीं। सांसकृतिक-मूल्य समय के अनुरूप बदलते रहते हैं। नए मूल्य पुराने मूल्यों का स्थान ले लेते हैं। वैकल्पिक मूल्य रिक्त-स्थान की पूर्ति कर देगें। मगर अफसोस तो यह है कि मेरा भारत-महान ईमानदारी के सैकड़े की ओर कदमताल कर रहा है। मैं इसे आत्मघाती कदम मानता हूं।
क्‍योंकि 'ऊपर-वाला' और 'बेईमानी' मनुष्य की जिंदगी में ये ही तो दो दैविक आसरे हैं। मगर ऊपर-वाले की कृपा से केवल परलोक सुधारता होगा, पता नहीं। किंतु सर्वविदित है, इहलोक तो बेईमानी के आशीर्वाद से ही फलता-फूलता है। ऊपर-वाला ऊपर की कमाई में रत्ती भर भी सहायक नहीं है। ऊपर की कमाई बेईमानी-देवी के ही आशीर्वाद से प्राप्त होती है। ऊपर की कमाई ही आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान करती है। मनुष्य ऊपर-वाले का स्मरण केवल कष्ट में करता है और मनुष्य कष्ट में तब होता है, जब वह ईमानदार हो जाता है। अत: दोनों में से बेईमानी ही मनुष्य के सुखद जीवन के लिए महत्वपूर्ण दैविक आसरा है। बड़े-बुजुर्गो ने भी कहा है, ''बेईमानी तेरा ही आसरा''! मेरा भारत-महान प्रगतिशील मार्ग का त्याग कर ईमानदारी के आत्मघाती मार्ग का अनुसरण कर रहा है, मेरा पवित्र मन इसीलिए उदास है।
हे, भारत-महान के कर्णधारों! भ्रष्टाचार प्रगति मार्ग है, बेईमानी उसका आधार है। इस देश का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है, राष्ट्र की आर्थिक प्रगति का प्रतीक है, सुदृढ़ अर्थव्यवस्था का आधार है। देश में समाजवाद लाना है तो ईमानदारी जैसे घातक मार्ग का त्याग कर, बेईमानी की पूजा-अर्चाना करो। भ्रष्टाचार को सींचों, देश को आगे बढ़ाओ।
संपर्क – 9868113044