Saturday, January 26, 2008

गणतंत्र का नारको

'सुबह राजपथ जाऊंगा और गणतंत्र की परेड देखकर देशभक्ति का परिचय दूंगा', ऐसा विचार कर मुन्नालाल लिहाफ ओढ़कर लेट गया। धीरे-धीरे नींद ने उसे आगोश में ले लिया। वह नारको टेस्ट की स्थिति में पहुंच गया। उसका अवचेतन जागृत होने लगा और इसके साथ नारको एनालिसिस भी शुरू हो गया।
वह राजपथ पर खड़ा है। विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र की झांकियां एक-एक कर उसके सामने से गुजर रही हैं। वह भावविभोर है। बबूल के पेड़ से रिसते चिपचिपे गोंद की माफिक उसके शरीर के एक-एक रोएं से राष्ट्रवाद फूट-फूटकर बाहर आ रहा है।
परेड का आंखों-देखा हाल बयान करने वाले उद्घोषक की आवाज उसके कानों में पड़ी, 'इस समय सलामी मंच के सामने है मनोहर झांकी 'गणतंत्र की सुरक्षा'। राष्ट्रभक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करती, इस झांकी में देश के कर्णधारों को गणतंत्र की सुरक्षा में जी-जान से जुटे देखा जा सकता है।'ं
झांकी के आगे-आगे 'हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल कर, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल कर' राष्ट्रीय धुन के साथ राजपथ पर एक बैंड प्रकट होता है और उसके पीछे -पीछे रेंगती झांकी। मुन्नालाल के सामने भारत महान का विशाल नक्शा है। उसमें देश की संपन्नता दर्शाई गई है और सुरक्षा के लिए श्वेत वस्त्रधारी चील, कौए और कुछ गिद्ध उसके चारों ओर मंडरा रहे हैं। सुरक्षा झांकी सलामी मंच के सामने से गुजरती हुई आगे बढ़ जाती है।
मुन्नालाल के कानों में 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' की धुन गूंजती है और इसी के साथ सलामी मंच के सामने लोकतांत्रिक परंपरा की झांकी का आगमन होता है। झांकी का नाम भी 'लोकतांत्रिक परंपरा' ही है। झांकी में मरियल-से दो बैल एक जीर्ण-शीर्ण छकड़ा खींच रहे हैं। उस पर मलिन-सा मानव तन खड़ा है, जिसके पेट के अंदर स्प्रिंग जैसा गुच्छा-सा दिखाई पड़ रहा है, शायद उसकी आंतें हैं।
इसके अलावा, उसके पेट में और कुछ भी नहीं है। उसके हाथ में झुनझुना-सा एक खिलौना है, जिससे वह विभिन्न चित्र अंकित कागजों पर बार-बार ठप्पा लगा रहा है। उसी छकड़े पर दो नेता भी हैं। दोनों नेता उस व्यक्ति को अपनी-अपनी ओर खींच रहे हैं। इस खींचतान में व्यक्ति न रो पा रहा है और न ही हंस पा रहा है।
गुमसुम-सा खड़ा वह व्यक्ति कभी हाथ के झुनझुने की ओर देख लेता है तो कभी-कभी निरीह भाव से नेताओं की ओर। इसी छकड़े पर टंगे एक बैनर पर लिखा है, 'पहले हम पर-अधीन थे, अब स्व-अधीन हैं। हम पहले भी अधीन थे, अब भी अधीन हैं।'
उद्घोषक घोषणा करता है, 'अब आप जिगर थाम के बैठिए'। मुन्नालाल जिगर पर हाथ रखता है, किंतु निराश होकर वह तुरंत जिगर के स्थान से हाथ हटा लेता है। उसे याद आता है, पत्नी के इलाज के एवज में जिगर तो डॉक्टर को दे दिया था।
'जय जवान-जय किसान' की धुन निकालता बैंड सलामी मंच के सामने से गुजरता है। उसके पीछे-पीछे विकास पथ पर अग्रसर देश की तस्वीर प्रस्तुत करती झांकी मंच के सामने आती है। झांकी में उजडे़ खेत हैं। खेतों में 'सेज' बिछी है। उन पर विराजमान संपन्न लोग खा-पी रहे हैं, जश्न मना रहे हैं।
उसके पीछे विशाल ठूंठ खड़ा है। उसका खंडहर बता रहा है कि कभी यह भी हराभरा विशाल वृक्ष था। उस पर दो मानव शरीर लटके हैं, जिनके गले में रस्सी के फंदे पड़े हैं। जुबान अपनी हद का अतिक्रमण कर मुंह से बाहर लटक रही है, हाथ की मुट्ठियां भींची हैं। फटी धोती के टुकड़ों से उनके शरीर के गोपनीय भाग ढके हैं, शेष शरीर वस्त्र विहीन हैं। पास ही में एक हल उलटा पड़ा है।
'जय जवान-जय किसान' की धुन के साथ हरित क्रांति की प्रतीक यह झांकी भी परंपरा का निर्वाह करते हुए मंच के सामने से गुजर गई। प्रतीक गान 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता' की धुन के साथ मंच के समक्ष नई झांकी का आगमन हुआ। सुसज्जित एक वाहन पर सिर झुकाए एक नारी विलाप कर रही है। उसके दोनों हाथ वक्षस्थल को ढकने का असफल प्रयास कर रहे हैं। दो व्यक्ति शरीर पर लिपटा उसका चीर खींच रहे हैं। पास ही अ‌र्द्धवस्त्रा दो सुंदरियां उसकी ओर देखकर मुस्करा रही हैं। पा‌र्श्व में टंगे बैनर पर लिखा है, 'नारी सम्मान'।
उद्घोषक की आवाज में सहसा ही उत्साह का संचार होता है, 'बच्चे राष्ट्र की धरोहर हैं'। इस उद्घोषणा के साथ ही वातावरण में 'बच्चे देश का भविष्य हैं' की धुन गूंजने लगती है और धुन के साथ ही वाहन पर बने मंच पर भविष्य का निर्जीव तन पड़ा दिखाई देता है। वीभत्स से दिखने वाले एक व्यक्ति के हाथ में छुरा है। छुरे का इस्तेमाल वह 'भारत के भविष्य' का भविष्य संवारने में कर रहा है। ऐसे ही कुछ और तन भी इधर-उधर बिखरे पड़े हैं।
सबसे अंत में 'मेरी दिल्ली मेरी शान' झांकी झलक मुन्नालाल के जहन में अवतरित होती है। दिल्ली पुलिस का बैण्ड 'दिल्ली पुलिस सदैव आपके साथ' की मातमी धुन के साथ झांकी की अगवानी कर रहा है। झांकी पर एक बैनर टंगा है। जिस पर लिखा है, 'जनसंख्या नियंत्रण में अव्वल प्रदेश, दिल्ली प्रदेश' एक बड़े से खुल ट्रक पर सजी-संवरी एक ब्लू-लाइन बस शोभायमान है। उसके टायरों के तले रिटायर शरीर पड़े हैं।
धुन धीरे-धीरे चीत्कार में बदलने लगती है। उसी चीत्कार के मध्य से मुन्नालाल के कान में एक मर्मस्पर्शी आवाज गूंजती है, 'चल खुसरो घर आपने सांझ भई चंहु ओर'। एक झटके के साथ मुन्नालाल चारपाई से खड़ा हो गया। आंखें मली, सूरज का चेहरा मलिन था, सुबह उदास थी।