Monday, December 17, 2007

कॉलगर्ल संस्कृति और उदारीकरण


आजकल समाचारों में बाजारों में, सत्ता के गलियारों में कॉलगर्ल छाई हुई हैं। उन्मुक्त रूप से टपक रहीं हैं, जैसे चमन के अंगूर, इलाहाबाद के अमरूद, कंधार के अनार, देहरादून की लीची और मलिहाबाद के आम। मांग भी भरपूर, आमद भी चकाचक। दलाल स्ट्रीट में रौनक, सेंसेक्स का ग्राफ आसमान की ओर, आखिर माजरा क्या है?
कॉलगर्ल शब्द कानों में पड़ते ही मुन्नालाल ने मुंह ऐसे बनाया मानो दशहरी आम चूस रहा हो। प्राकृतिक रूप से मुंह में उत्पन्न रस को पेट के अंदर धकेलते हुए वह बोला, ' इसमें आश्चर्य की क्या बात है, यह तो मांग व आपूर्ति का सिद्धांत है। आपूर्ति के नए-नए क्षेत्र तलाश करो, बाजार में माल फेंकों तो मांग खुद-ब-खुद बढ़ जाएगी। देख नहीं रहे हो कॉलगर्ल का बाजार अब पहले की तरह सीमित नहीं रहा है। सत्ता के गलियारों में इस प्रोडक्ट को एक नया बाजार मिला है। नेता से अफसरशाह तक, वार्ताकार से पत्रकार तक अर्थात सत्ता से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति अब इसका मुरीद हो गया है। संभ्रांतों की भीड़ में शामिल होने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह प्रोडक्ट स्टेटस सिंबल हो गया है।'
मुन्नालाल का यह दृष्टिंकोण बाजारवादी था अर्थात व्यावसायिक था, मगर समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उनके बढ़ते इस वर्चस्व का आखिर कारण क्या है, हमारे चिंतन का यही विषय था। हमारे चिंतन के विषय पर गौर फरमाते हुए चिंतनधर्मी मुसद्दीलाल बोले कुछ खास कारण नहीं, बस संस्कृति करवट बदल रही है। कालगर्ल और संस्कृति, मुसद्दीलाल का यह गठजोड़ी समीकरण सुन हमारा मुंह चील के घोंसले की तरह फटा रह गया। कालगर्ल और संस्कृति का यह गठजोड़ हमें वामपंथी व दक्षिणपंथियों के बीच गांठ लगे गठबंधन सा लगा। संस्कृति की करवट बदल सलवटें सुलझाने का असफल प्रयास करते-करते हमने पूछा, 'क्यों चचा, यह संस्कृति का करवट बदलना कैसे?'
करवट बदल चचा ने जवाब दिया, 'सांस्कृतिक विरासत का इतना भी ज्ञान नहीं, बरखुरदार! अरे भइया, देव-युग में इंद्र की अप्सराओं के चर्चे क्या नहीं सुनी? मध्ययुगीन विष कन्याओं के किस्से-कहानी भूल गए, देव-दासियां, नगरवधू कुछ तो याद होगा? इतिहास का थोड़ा-बहुत तो ज्ञान होगा? कॉलगर्ल उसी विरासत का आधुनिक स्वरूप है। मुन्ना! धरा पर इंद्रलोक अर्थात स्वर्ग उतर रहा है। देवकाल का अवतरण हो रहा है।'
चचा के देव-विचार हमारे जहन में कॉलगर्ल की मुस्कान से छा गए और संस्कृति के साथ-साथ हम भी करवट बदल गए। हमने महसूस किया कॉलगर्ल के सामाजिक-धार्मिक धंधे में कानून के बैरिकेड स्वर्ग अवतरण में बाधा डाल रहे हैं। संस्कृति के विकास में रोड़े अटका रहें हैं और आर्थिक विकास का मार्ग का अवरुद्ध कर रहे हैं। बैरिकेड हटा दिए जाने चाहिए। संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के तहत लाइसेंस प्रदान कर दिए जाने चाहिए।
वे तुच्छ मानसिकता के लोग हैं, जो कॉलगर्ल संस्कृति को अपसंस्कृति बताकर उसकी आलोचना करते हैं। कॉलगर्ल को 'कालगर्ल' कहना उनके प्रति अन्याय है। कॉलगर्ल काल रूप नहीं, जीवन हैं, जीवन की ऊर्जा हैं। चाणक्य काल में भी इन अप्सराओं के साथ ज्यादती हुई। अमृत कन्याओं को विषकन्या नाम देकर उनके साथ अन्याय किया गया। ये काल-गरल नहीं, मधु-कन्याएं हैं।
राष्ट्र के विकास में उनके योगदान को नकारा नहीं, सराहा जाना चाहिए। जहां राजनीति फेल हो जाती है, कूटनीति चूक जाती है और 'अर्थ' अर्थहीन हो जाता है, वहां ये संस्कृति-महिलाएं ही तो चुटकी बजाकर चुटकी में कार्य पूर्ण कराती हैं। न जाने कितने नेता उनकी पूंछ पकड़ कर राजनीति के एवरेस्ट पर ध्वज फहरा रहें हैं और न जाने कितने नेता उन्हीं की पूंछ के सहारे फतह की आश में सांस रोके मंजिल की ओर गतिमान हैं।
संस्कृति के प्रवाह को कौन रोक पाया है, भला। संस्कृति को सीमाओं में कौन बंध पाया है। वे लोग प्रतिक्रियावादी हैं जो कालगर्ल संस्कृति को वेश्याकरण का नाम देते हैं। वेश्याकरण नहीं, यह उदारीकरण के दौर में संस्कृति का वैश्वीकरण है। नगरवधू की सीमाओं के बंधन लांघ यह राष्ट्रवधू और अंतरराष्ट्रीय-वधू का युग है। संस्कृति की प्रगति की राह से बैरिकेड हटाओ वसुधैव कुटुंबकम् के सिद्धांत को चरितार्थ होने दो। अ‌र्द्धवस्त्रा को निर्वस्त्रा होने दो 'नारी की पूजा-देवताओं का वास' का आदर्श साकार होने दो। संस्कृति करवट बदल रही है, उसे करवट बदलने दो।
फोन- 9868113044