Tuesday, March 18, 2008

भारत रत्‍न गिल साहब!

भारतीय हॉकी टीम बीजिंग ओलंपिक में खेलने से वंचित रह गई। हॉकी टीम यदि 'टीम' होती तो बीजिंग में सैर-सपाटा करने से वंचित न रहती। पराजय को राष्ट्रीय शर्म का विषय बताया जा रहा है। समूचा राष्ट्र शरमसार है। केवल गिल साहब के अतिरिक्त! दरअसल गिल साहब प्रोफेशनल व्यक्ति हैं। प्रैक्टिकल अप्रोच वाले इनसान हैं। मेरा मानना है कि हॉकी को मोक्ष प्रदान करने के लिए वे कतई दोषी नहीं हैं। जो व्यक्ति गिल साहब की आलोचना कर रहे हैं, उनसे पूछना चाहूंगा कि संहारकर्ता को पुनर्जीवन का कार्य क्या सोच कर सौंप गया? मेरे दूसरा सवाल है- गिल साहब को हॉकी की बागडोर थमाते हुए क्या उन्हें बताया गया था कि आतंकवाद की तरह हॉकी को गडडी नहीं, चढ़ाना है, उसे पुनर्जीवित करना है?
राष्ट्रीय-चरित्र में 'शर्म' नाम का यह तत्व अचानक कहां से घुसपैंठ कर गया? मैं आश्चर्यचकित हूं! हकीकत में हॉकी टीम का ओलंपिक से वंचित रहना नहीं, राष्ट्रीय-चरित्र में 'शर्म' तत्व की घुसपैंठ शर्म का विषय है! गिल साहब की अध्यक्षता में चुनिंदा प्रोफेश्नल नेताओं की एक कमैटी गठित कर इस घुसपैंठ की जांच होनी चाहिए।
हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा प्रदान करना, मेरे लिए आश्चर्य का पहला कारण है। पता नहीं किसने और क्यों अंग्रेजों के इस खेल को राष्ट्रीय-सम्मान से विभूषित करने की जुर्रत कर दी? भारत का राष्ट्रीय खेल कबड्डी होना चाहिए था। गूल्ली-डंडा हो सकता है। इनके अतिरिक्त कंचे-गोली को राष्ट्रीय खेल घोषित किया जा सकता था। ये सभी ऐसे खेल हैं, जो क्षेत्रवाद से ऊपर उठ कर गली-गली खेले जाते हैं। कंचे-गोली का तो जवाब नहीं! हमारी समूची राजनीति ही गोली बाजी पर आधारित है। ऐसा कौन सा दल और कौन से नेता है जो 'गोली' देने में माहिर नहीं है! यदि अंग्रेजों के खेल को ही राष्ट्रीय खेल का दर्जा देना है, तो क्रिकेट को दिया जा सकता है। ऊपर वाले की दुआ से आजकल क्रिकेट का झण्डा भी बुलंद है और खिलाडि़यों की बिकावली का बाजार भी गर्म है।
शरमसार होने का वैसे भी कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि नाक ऊंची रखने के लिए हमारे पास एक नहीं अनेक विकल्प मौजूद हैं। हुड़दंगी-राजनैतिक संस्कृति क्या गर्व करने के लिए नाकाफी है? संसद से लेकर सड़क तक क्या हुड़दंग के खेल में हम किसी से पीछे हैं? भ्रष्टाचार में नित-निरंतर प्रगति क्या हमारे लिए राष्ट्रीय-गौरव का विषय नहीं हो सकता? राजनीति में भ्रष्टाचार की तरह वृद्धि को प्राप्त महंगाई पर क्या सिर ऊंचा नहीं कर सकते? ऐसी अनेकों उपलब्धि्यां राष्ट्रीय-कोष में जमा हैं, जिनपर गर्व किया जा सकता है। अत: राष्ट्रवासियों शर्म का त्याग करो। गिल साहब को भारतरत्‍न से सम्‍मानित करने की मांग करो!