Thursday, December 20, 2007

धर्म मार्ग ही उत्‍तम अर्थ मार्ग

प्रभाव :- मेरे यह व्यंग्य पढ़ कर न जान कितने सज्जनों ने अर्थ की खातिर धर्म मार्ग अपनाया होगा। कांग्रेस के एक नेता तो मेरे संज्ञान में हैं। व्यंग्य पढ़ कर उन्होंने मुझे फोन पर बधाई दी थी। उसके बाद पता चला कि कुर्ता-पायजामे का त्याग कर नाम के आगे आचार्यश्री लगाया और साधुओं का बाना धारण कर प्रवचन देना शुरू कर दिया है। आज उनके पास दौलत भी है और शौहरत भी। अब बड़े-बड़े नेता आचार्यश्री के पांव छू कर आशीर्वाद लेते हैं। धर्म भी चकाचक, अर्थ भी चकाचक और नेतागीरी भी।

उसने कहां-कहां धक्के नहीं खाए। कौन-कौन से ब्रांड के पापड़ नहीं बेले, मगर अर्थ प्राप्ति का सुगम व सुरक्षित मार्ग प्राप्त करने में वह असफल ही रहा। दरअसल वह कोई सस्ता, सुंदर और टिकाऊ रास्ता चाहता था। ऐसा रास्ता जिसमें अर्थ तो बरसे मगर छप्पर सुरक्षित रहे। काजल की कोठरी से काजल तो समेटे मगर कुर्ता चमकता रहे। इसके लिए उसने सत्यनारायण की कथा भी नियमित रूप से कराई। लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उद्देश्य से उल्लुओं को भी खूब चबेना चबाया। अर्थ प्राप्ति हुई भी हुई, मगर दाग ने पीछा नहीं छोड़ा।
अर्थ प्राप्ति के सुगम व सुरक्षित रास्ते के रूप में उसने पत्रकारिता के पेशे में भाग्य अजमाया। नेताओं की परिक्रमा की उनके लिए दलाली की। अर्थ भी खूब बटोरा, मगर संतोष की प्राप्ति नहीं हुई। एक अज्ञात भय से भयभीत रहा। दलाली करते-करते पत्रकारिता का त्याग कर समाज सेवकी का पेशा अख्तियार किया। वहां भी सेवा की मेवा खूब बटोरी, मगर अज्ञात भय ने वहीं भी पीछा नहीं छोड़ा।
समाज सेवकी से उसने राजनीति के बाजार में प्रवेश किया और नेता बन बैठा। अर्थ की धारा उसकी तरफ और भी तीव्र गति से प्रवाहित होने लगी। मगर कभी पक्ष तो कभी विपक्ष और कभी स्टिंग ऑपरेशन तो, कभी सीबीआई उसे पीछा करते दिखलाई देते रहे।
दाग से कैसे पीछा छुड़ाए, यह प्रश्न बराबर उसे विचलित करता रहा। एक के बाद एक असफलता से हताश कभी-कभी वह सोचता, 'पता नहीं अंधे के हाथ बटेर कैसे लग जाती है? लगती भी है या बिना लगे ही मार्केटिंग कर दी जाती है। मार्केटिंग का फण्डा है ही कुछ ऐसा अपने-अपने अंधों के हाथ बटेर थमा कर उपलब्धि रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी जाती हैं।'
हैरान-परेशान, परेशान मुन्नालाल ने एक दिन एक ही झटके में कुर्ता-पयजामा उतार खूंटी पर टांग दिया और राजनीति के बाजार से अपना कारोबार समेट सुरक्षित किसी नए व्यवसाय की तलाश में लेफ्ट-राइट शुरू कर दी। दोस्तों के सामने अपनी पीड़ा रखी, जन-परिवारजनों के साथ सलाह-मश्विरा किया और अंतत: स्वामी अभेदानंद की शरण में जाने का निश्चय किया। अध्यात्म में उसकी रुचि बालकाल से ही थी, इसलिए उसने सोचा अर्थ प्राप्ति का न सही धर्म मार्ग ही सही। उसका ऐसा फैसला करना स्वाभाविक भी था, क्योंकि एक सीमा तक चूहों का भक्षण करने के बाद परलोक सुधारने के मंशा से बिल्लियां अक्सर तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़ती हैं।
स्वामी अभेदानंद के समक्ष वह चरणागत् हुआ और उद्देश्य निवेदन किया। राजनीति को धर्ममय बनाए रखने के लिए धर्म गुरु व राजनीतिज्ञों के बीच सांठगांठ आवश्यक है। इसी धर्म का निर्वाह करते हुए स्वामीजी ने मुन्नालाल को शिष्य के रूप में ग्रहण कर पवित्र आशीर्वाद से धन्य किया। मुन्नालाल भी पूर्ण समर्पण भाव से उनकी सेवा में लग गया।
उसकी सेवा से प्रसन्न हो कर एक दिन स्वामीजी बोले, 'पुत्र मुन्नालाल! तुम्हारे प्रश्न, तुम्हारी शंकाएं ऐसे छद्ंम ज्ञानियों के समान हैं, जो ज्ञान विहीन होते हुए भी ज्ञानी कहलाए जाते हैं, परंतु तुम्हारे अंतर्मन में धर्म व अर्थ दोनों के बीज सुषुप्त अवस्था में विद्यमान हैं। मैं तुम्हारे बुद्धि चातुर्य और सेवा दोनों से प्रसन्न हूं, अत: तुम्हें अर्थ प्राप्ति का सुगम व सुरक्षित मार्ग बतलाता हूं। पुत्र! अर्थ प्राप्ति का केवल मात्र एक ही सुगम व सुरक्षित मार्ग है और वह है, धर्म मार्ग। केवल धर्म मार्ग ही बिना किसी अवरोध के सीधा कुबेर के आश्रम की ओर जाता है।
स्वामीजी के ऐसे वचन सुन मुन्नालाल हैरान था, उसे लगा कि वह आसमान से गिरकर खजूर पर लटक गया है और स्वामीजी उसे खजूर के पत्ते पर ही दंड-बैठक करने की सलाह दे रहें हैं। वह आश्चर्य व्यक्त करते हुए बोला, ''स्वामीजी, धर्म मार्ग और अर्थ! धर्म मार्ग तो मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति की ओर ले जाता है। अर्थ तो धर्म मार्ग में अवरोध उत्पन्न करता है। पुरुषार्थ चतुष्टय सिद्धांत भी कुछ ऐसा ही कहता है।''
मुन्नालाल के वचन सुन स्वामीजी मुस्करा दिए और बोले, ''वत्स! अभी तक तुम किसी योग्य गुरु के पल्ले नहीं पड़े हो, तभी ऐसे तुच्छ विचार रखते हो। मोक्ष की ओर नहीं पुत्र! धर्म मार्ग अर्थ की ही ओर जाता है। पुरुषार्थ चतुष्टय का सिद्धांत भी यही प्रतिपादित करता है। अपने मस्तिष्क के साफ्टवेयर को तनिक एक्टिवेट करो और सोचो पुरुषार्थ चतुष्टय सिद्धांत (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में धर्म के बाद क्या अर्थ नहीं आता? अरे, मूर्ख मोक्ष तो उपरांत में आता है। पुरुषार्थ चतुष्टय सिद्धांत भी यही कहता है, धर्म मार्ग अपना कर अर्थ प्राप्त करो और अर्थ तुम्हें काम व मोक्ष प्रदान करेगा।''
मुन्नालाल बोला, ''मगर गुरुजी! धर्म मार्ग अर्थ प्राप्ति का सुगम व सुरक्षित मार्ग कैसे है?''
स्वामीजी बोले, '' आभामंडल! पुत्र आभामंडल, इसी आभामंडल के कारण कुबेर हमारे यहां पानी भरता है और उसी
के प्रभाव से समूचा जनतंत्र हमारे समक्ष नतमस्तक है। बडे़-बडे़ पूर्व, भूतपूर्व व अभूतपूर्व मंत्रियों से लेकर संतरी तक हमारे समक्ष चरणागत्ं हैं। फिर असुरक्षा का प्रश्न कहां? आभामंडल लक्ष्मण रेखा है, कोई भी दाग उसे लांघ नहीं पाएगा। न आयकर, न सेवाकर, न व्यवसाय कर। बस धर्म मार्ग पर चल और दोनों कर से अर्थ एकत्रित कर। जाओ पुत्र धर्म मार्ग का अनुसरण करो, उसे ही अपना व्यवसाय बनाओ और इस व्यवसाय में 'कॉर्परेट कल्चर' का समावेश करते हुए कुबेर के खजाने का निर्भय पूर्वक उपभोग करो।'
संपर्क – 9868113044