Friday, December 28, 2007

तसलीमा : अतिथि देवो भव!

तसलीमाऽऽऽ! .. अतिथि देवो भव! यह पूरा देश तुम्हारा है, तसलीमा! तुम बंगाल से आंध्र तक श्रीनगर से कन्या कुमारी तक दिल्ली से झूमरीतलैया तक जहां चाहो रह सकती हो। हमें कोई एतराज नहीं। मगर तसलीमा तुम्हारी सुरक्षा भी तो आवश्यक है, ना! तुम्हारे जैसे बहुमूल्य रत्न को हम खोना नहीं चाहते, अत: तिहाड़ सहित किसी भी प्रदेश की जेल चुन सकती हो। वहां कोई कट्टरपंथी तुम्हें टेढ़ी नजर से देखने की भी जुर्रत नहीं कर पाएगा और एकांत में तुम्हारी लिखाई-पढ़ाई भी ठीक तरह से चलती रहेगी। ठीक है, ना तसलीमा !
तसलीमाऽऽऽ! ..क्या कहा तुमने? धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में बिना किसी अपराध के कैद! अरे, नहीं, नहीं! .. मन से नकारात्मक विचारों का त्याग करो! हां! ..हमारा राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष है। हम सभी धर्मो को एक निगाह से देखते हैं, अर्थात 'सर्वधर्म समभाव'। अत: खुदा के बंदों की भावनाओं का खयाल तो करना ही पड़ेगा ना, तसलीमा! वरन् लोग कहेंगे कि भारत सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत से विचलित हो गया!
वैसे भी तसलीमा तुम जानती ही हो, 'खुदा महरबान तो गधा पहलवान!' तुमने खुदा के बंदों को ख्वाहमख्वाह नाराज कर दिया। अब देखना! खुदा के बंदे नाराज होंगे, तो भला खुद नाराज क्यों नहीं होगा!
तुम्ही बताओ तसलीमा, क्या जरूरत थी खुदा और उसके बंदों को नाराज करनी की! खुदा जब नाराज है, तो भला तुम पहलवान कैसे हो सकती हो। हमारी बात मानो और एकांतवास में चली जाओ, वहां रह कर खुदा की इबादत करना। खुदा को महरबान करना, खुदा के बंदों को खुश करना। फिर जब खुदा की महरबानियों से गधा पहलवान हो सकता है, तुम तो नेक इनसान हो, तुम्हें पहलवान बनने से कौन रोक सकता है।
तसलीमाऽऽऽ! ..नहीं, तुम उदास न हो! चेहरे पर खिंची इन उदास रेखाओं को सूखे रेत में खिंची लकीरों की तरह झाड़ दो।
हाँ! ..अवश्य! हमने कब मना किया? इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है! तभी तो..! तुम्हारी स्वतंत्रता तनिक बाधित हो गई! अब देखो! तुम्हारी अभिव्यक्ति पर उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति दे मारी! अब उनकी अभिव्यक्ति की अनदेखी कर देते तो जाहिर सी बात है, हम पर अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के हनन का आरोप लग जाता! सरकार किसी की भी हो, इतना संगीन इलजाम अपने ऊपर कैसे ले सकती है!
हां! अभिव्यक्ति तुम्हारी भी है! हम इससे कब इनकार करते हैं! किंतु, तसलीमा! तुम्हारी अभिव्यक्ति बांग्लादेश से जुड़ी है और उनकी अभिव्यक्ति इसी देश से। उनकी अभिव्यक्ति तुम्हारी अभिव्यक्ति पर तनिकभारी पड़ती है। वैसे भी तुम्हारी अभिव्यक्ति को यदि हम तरजीह देते तो हमारे मित्र बांग्लादेश की सरकार हम पर आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की तोहमत जड़ देती। कूटनीतिक संबंध भी तो कोई चीज होते हैं, न तसलीमा!
हां, तसलीमाऽऽऽ! ..तुमने सत्य कहा! हम स्वीकारते हैं, हमारी अदालत स्वीकारती है, हाजिर-नाजिर जान कर तुमने जो भी कहा सत्य कहा! परंतु तुमसे किसने कहा था, सत्य उच्चारण के लिए!
सुनो, तसलीमा! सत्य हमेशा ही अप्रिय होता है और भारतीय संस्कृति में अप्रिय सत्य वाचन निषेध है। हम भी तो इसीलिए कभी सत्य-उच्चारण नहीं करते। असत्य बोलना हमारी प्रकृति नहीं है। सांस्कृतिक-मजबूरी है! अब तुम्ही बताओ तुम्हारा सत्य झुठला कर हमने कौन जुर्म किया? अरे, भाई! अपनी संस्कृति का ही तो अनुसरण किया! कौन नहीं चाहेगा अपनी संस्कृति का पोषण करना?
तसलीमाऽऽऽ! ..तुम नहीं जानती कि धर्म कोई भी हो सभी भावनाओं की खोखली जड़ों पर टिकें हैं। जरा सी आहट होती है, तो भावनाएं आहत हो जाती हैं, धर्म खतरे में पड़ जाते हैं। तुम्हारा सत्य आहत नहीं, भावनाओं को हताहत करने वाला है! हिंसा के लिए हमारी संस्कृति में कोई स्थान नहीं है। हम और हमारी संस्कृति अहिंसावादी है, मगर हमारे दिल में तुम्‍हारे लिए स्‍थान है। तुम जहां चाहो वहीं रहो, मगर----!
संपर्क : 9868113044