Wednesday, April 30, 2008

बापू कैद में (व्यंग्य नाटक) –अंतिम

गतांक से आगे...
दृश्य-छह
(मंच पर पुन: छाया प्रकट होती है। फ्लैश लाइट उसी पर फोकस।)
छाया :
बापू कहीं फिर सुबह-सुबह ही न निकल जाएं, इसलिए अगले दिन मैं सूरज निकलने से पहले ही राजघाट पहुंच गया। बापू को प्रणाम किया। बापू उस दिन काफी उद्विग्न नजर आ रहे थे। उन्होंने मुझे समाधि के अंदर नहीं बुलाया, स्वयं ही बाहर आगए।
बापू (सहज भाव से) : चल पुत्र किसी वृक्ष के नीचे खुली हवा में बैठते हैं।
(पेड़ के नीचे बैठ कर बापू कल की कथा सुनाने लगे। कथा अभी आधूरी ही हुई थी)
हवलदार (बट मारते हुए कड़क आवाज में) :
कौन है बे, स्साले, खड़ा हो...!
(बट की मार से मुन्नालाल बिलबिला गया। बापू भी धोती संवरते हुए सावधान की मुद्रा में आगए)
बापू (गिड़गिड़ाते हुए) :
नहीं-नहीं, कोई ऐसा-वैसा नहीं। यह तो मेरा शिष्य मुन्नालाल है, श्रीमान...। (गले में आया खकार सटकते हुए) मुझ से दो बातें करने आया था।
हवलदार (मूंछों पर हाथ फेरते हुए उसी आवाज में) : अछाऽऽऽ, एक नहीं दो-द्दो। तू कौण है, ब्बे।
बापू (गिड़गिड़ाते हुए) : मैं-मैंऽऽऽ, जनाब पहचाना नहीं?
हवलदार (व्यंग्य भाव से) : हां, तुझे ना पिछान्ना ...चूक है गई ...माफ करना साब ...गांध्धी के भतिज्जो कू ना पिछान्ना,धत्त तेरे की! (रायफल और पांव एक साथ जमीन पर पटकते हुए) ...चलो सोहरो, थाणें चलों। दरोग्गाजी आप्पों पहचान लेंग्गे।
बापू (विनय भाव से) : नहीं-नहीं जनाब, मैं महात्मा गांधी ही हूँ और यह मेरा शिष्य मुन्नालाल...!
हवलदार (व्यंग्य भाव से) : हां स्साला! इस देस का हर तिज्जा आदमी गांध्धी ही हो वै या फिर गांध्धी का चेल्ला। अर बिचारे असल गांध्धी ए को ना पूच्छे! ( दोनों की कलाई थाम थाने की तरफ ले जाते हुए) एक रात हवालात में काटेग्गा, बस गांध्धीगरदी का सारा भूत उतर जावेग्गा (धक्का देते हुए) आग्गे नू जल्दी-जल्दी पांव बढ़ा।
(दोनों के हाथ थामें हवलदार थाने में प्रवेश करता है)
पहरेदार (व्यंग्य भाव से) : साब, कभी ढंग के आदमियों कू भी पकड़ लाया करो! ...किन्हें पकड़ लाए, इनके बदन पै तो जूं भी बिचारी भूख्खी मरै हैं। (माथे पर हाथ मार कर) आज तो भोनी भी ना हुई, लगै पूरा दिन ही खराब जावेगा!
(पहरेदार की बात सुन हवलदार हँस दिया और दोनों को धकेलते हुए थानेदार के कमरे में प्रवेश कर सलाम ठोका। थानेदार की नोट गिनती ऊंगलियों रुकी)
थानेदार (क्रोध का इजहार करते हुए) :
...अबे ओ भूतनी के किन कंगालों कू पकड़ लाया?
हवलदार (दांत निपोरते हुए) : सऽऽर, दोन्नों को गांध्धी समाधि से पकड़ा है। पेड़ के निच्चे बैठ्ठें साजिस रचरे थे।
थानेदार (ग्लानि भाव से) : ...स्साले! गांध्धीजी की समाधीय नुकसान पौंचाने आए होंग्गे!
बापू (गिड़गिड़ाते हुए) : नहीं, जनाब नहीं! जनाब ...मैं ही तो...!
हवलदार (मध्य ही में बनावटी हंसी हसते हुए) : ...सऽऽर, ये बूढ़ा अपने को महात्मा गांध्धी ही बतावै!
थानेदार (आसमान की तरफ मुंह उठा जंभाई लेकर खीजते हुए) : अच्छाऽऽऽ, स्सालो पै देस्सी कट्टा धर कै हवालात में डाल दै। ...सुबै देख्खेंगे।
बापू (विनीत भाव से) : जनाब जरूर कोई गलतफहमी हुई है, मैं गांधी ही हूं, मोहन दास वल्द करम चंद गांधी (कुछ देर रुकने के बाद) वही गांधी जिसकी हत्या गोड़से ने की थी, श्रीमान।
थानेदार (हँसते हुए) : कैसे मानलूं ..मिलान करने कू कुछ है तेरे पै?
बापू (पूर्व भाव से) : ...दीवार पर टंगे चित्र से मिलान कर के देखलो, जनाब...!
थानेदार (हंसते हुए) : ...चल, है गिया मिलान! मान लेवें हैं , तू गांध्धी ही सही। पर तुझे किसने सलाह दी, दिवाल सै उतर कै जमीन पै आन्ने की। तै उतरने की हिमाकत की है, तो सजा भी भुगत!
बापू (पूर्व भाव से) : नहीं-नहीं, श्रीमान यह तो अन्याय होगा...।
थानेदार (मुस्कराते हुए) : ...अच्छा! नियाय चहिए, तो कीमत चुका। ...अपना वादा पूरा कर!
बापू (आश्चर्य से) : सरकार कीमत! ...वायदा?
थानेदार (खीजते हुए) : घना भोला न बन। सेतमेत में नियाय ना मिलै ...जे थाना सै, थाना! मुकद्दमा ठोक दिया तो रोज कचैरी के चक्कर काटेगा, वकील कू फीस दे वेगा। सेंत मैं वहां से भी ना छूटै। अर दिकै सुन, पैसा खर्च करकै भी छूटवे की गारंटी ना। (कानून की किताब खोलते हुए) मै कम से कम पैसे लैकर छोड़वे की गारंटी तो लेरा हूं।
बापू (पूर्व भाव से) : जनाब, यह तो रिश्वत है, ...भ्रष्टाचार जनाब!
थानेदार (दीवार पर टंगे चित्र को ओर इशारा करते हुए) : ...देख, तेरा ई फोट्टो है, ना जे।
बापू (चित्र निहारते हुए) : ...हां, जनाब मेरा ही है।
थानेदार : ...फिर तो पंजा भी तेरा ई होग्गा।
बापू : जी जनाब!
थानेदार (बापू की ओर हाथ फैलाते हुए) : ...जी जनाब! तो फिर ला, अपने फोट्टो वाले नोट हाथ पै रख। ...तेरा वादा भी पूरा हो जागा अर दिके, जेब में तेरे नोट रहंगे तो तेरी सकल भी याद रहगी।
बापू (मजबूरी जाहिर करते हुए) : ...मगर जनाब! मैने तो जीते जी भी कभी रुपए-पैसे के हाथ नहीं लगाया। अब तो बात ही अलग है।
थानेदार (धिक्कारते हुए) : या ई तेरी भूल थी। अपने भगतों की तरह तू भी रास्टर सेवा कैस करता तो कोई गौडसे तेरा मडर ना करता। ...मरने के बाद तेरी आतमा निलाम न होत्ती और आज रात हवालात में ना काटनी पड़ती। ...पकड़ा जात्ता तो नोट दे कै छूट जात्ता। अपने भगतों की तरै घोटाल्ले पै घोटाल्ले कर कै भी इमानदार कहलात्ता...! (चेहरे पर व्यंग्य भाव लाते हुए) चल कौ ना! नोट ना हैं तो एक रात तो हवालात मैं रह। उंघह कोई गौडसे मडर तो क्या तुझै घायल भी न कर पावै! ...सेफ रहवेगा! (हवलदार को आवाज लगाते हुए) चलरे, बंद कर दोन्नो को। ...सुबै देखेंगे!
(थानेदार के इशारे पर हवलदार ने दोनों को हवालात में बंद कर दिया)
दृश्य-सात
(सुबह का समय, मंच पर थाने का दृश्य। हवालात में बापू और मुन्नालाल को निहारता थानेदार)
थानेदार (चोंक कर हवालदार की ओर संकेत कर) :
...अबे ओ भूतनी के ये के कर दिया तून्नै, गांध्धी जी को हवालात में डाल दिया। ...ये तो सच्च में ई गांध्धीजी हैं। ...अबे तू नै इतना भी ना दिख्खे। ...आंख्खन पै कतई पट्टी बांध रख्खी के।
हवलदार (गिड़गिड़ाते हुए) : सऽऽऽ र! सर कल बताया तो था। बूढ़ा अपने को गांध्धी बतावै है। ...इब छोड़ दूं, सर।
थानेदार (दांत पीसते हुए) : ऐसे ही बतावैं हैं, के (कुछ सोचने के बाद, मुंह चिड़ाते हुए) इब छोड़ दूं! छोड़वे की चौक्खी सलाह दी! ...चोक्खी सलाह देरा, छोड़ देवें। मरवा दे स्साले! उलटा मुकद्दमा ठोक दिया तो लेने के देने पड़ जावेंगे...। (इधर-उधर देखते हुए) चल एक काम कर भूतनी के दोनों कू वीआईपी रूम में सिफट कर दे, अर निलहाने-धुलाने का इंतजाम कर, नास्ता-पानी करा। मैं अभी आया। ...अर दिके जब तक लौट कै ना आंऊ किसी कू भनक तक ना पड़ै, बाप्पू हवालात मै। ...ना तो बैठ्ठें-बिठाए जान मुसीबत में पड़ जावेग्गी!
(हवलदार दोनों को थाने के अतिथि कक्ष में ले जाता है और बापू से क्षमा मांगते हुए उनकी सेवा-भाव में लग जाता है। घबराया थानेदार दौड़ा-दौड़ा गृहमंत्री जी के आवास पर। गृहमंत्री जनता की शिकायतें सुनने में व्यस्त हैं)
थानेदार (भय की मुद्रा में) :
...जयहिंद जनाब!
गृहमंत्री (उपेक्षा भाव से) : ...चेहरे पर बारह क्यों? ...विजीलेंस का छापा पड़ गया क्या?
थानेदार (रिरयाते हुए) : ...बैठे-बिठाए आफत आगी सरकार! ...इंघह कू तो अवो!
(गृहमंत्री थानेदार के साथ दूसरे कक्ष में चले जाते हैं)
गृहमंत्री (पूर्व भाव से) :
...बोल, क्या आफत है?
थानेदार (हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए) : ...नौकरी बचालो माई-बाप, गजब ढै गिया, जनाब। ...गलती है गई, गलती।
गृहमंत्री (झिड़कते हुए) : रिश्वत लेते समय तो बाप को पूछते नहीं, फंस जाने पर माँई-बाप याद आते हैं!
थानेदार (पूर्व भाव से) : नहीं, जनाब! ...इस बार रिश्वत का मामला ना है!
गृहमंत्री (झिड़कते हुए) : ...फिर? ...अबे कुछ बकेगा भी या बापू की बकरी की तरह मिम्याता ही रहेगा।
थानेदार (पूर्व भाव से) : सरकार वचन दो इस बार बचालोग्गे, नौकरी ना जान दोग्गे। ...बाल-बच्चे बिरान हो जावेंगे, सरकार।
गृहमंत्री (चेहरे पर सख्ती लाते हुए) : अबे बक तो सही किसका फर्जी एनकाऊंटर कर दिया?
थानाध्यक्ष (चेहरे पर घबराहट के भाव लाते हुए) : सरकार वो है ना कमबख्त हवलदार रामसिंग, बाप्पू अर उनके चेल्ले कू पकड़ लाया।
गृहमंत्री (थानाध्यक्ष की नकल उतारते हुए) : अबे कौन बाप्पू, किसका, तेरा के मेरा?...पूरी बात बताना।
थानेदार (पूर्व भाव से) : सरकार, वही बाप्पू! ...महात्मा गांध्धी। ...राजघाट तै पकड़ लाया।
गृहमंत्री (घबराहट के भाव से) : अबे, क्या साले, बापू का एनकाऊंटर...?
थानेदार (पूर्व भाव से) : एनकाऊंटर ना सरकार...!
गृहमंत्री (पूर्व भाव से) : ...अबे, फिर?

थानेदार (पूर्व भाव से) : सरकार मेरी आंख पै पट्टी बंधी थी, मै न्नै दोनों कू हवालात मै डाल दिया। ...सरकार गलती है गई... बचालो सरकार।
गृहमंत्री (पूर्व भाव से) : अब कहां हैं, वें?
थानेदार (पूर्व भाव से) : सरकार दोन्नो कू हवालात सै रैस्टरूम में सिफट कर दिया।
गृहमंत्री ( होठों पर अंगुली रख कर) : चोंच बंद कर थोड़ी देर बाहर बैठ। ...किसी से कुछ मत बोलना, अपने आप से भी नहीं... समझा... जा बाहर बैठ! (पार्टी अध्यक्ष से फोन पर, हर्ष व्यक्त करते हुए) : ...हैलो, सऽऽऽ र! ...सर, खुशखबरी!
अध्यक्ष (गंभीर भाव से) : क्याऽऽऽ..?
गृहमंत्री (भावावेश में ) : आपके आदेश का पालन हो गया, सर! ...गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया ..!
अध्यक्ष (आश्चर्य व घबराहट के मिश्रित भाव से) : क्याऽऽऽ! सच...!
गृहमंत्री (विजय भाव से) : ...जी जनाब!
अधक्ष (कृत्रिम क्रोध के साथ) : किसने कहा था, इतनी फुर्ती दिखाने के लिए?
गृहमंत्री (विनय भाव से) : हम तो हुकुम के गुलाम हैं, जनाब। आप हुकुम करें और तामील न हो यह कैसे हो सकता है, सर...!
अध्यक्ष (उपेक्षा भाव से) : चल कोई बात नहीं! ...किंतु ऐसा करना, जिसने गिरफ्तार किया है, उसे तरक्की दे दे देना और देखो...!
गृहमंत्री (मुसकराते हुए) : ...ठीक, सर! ऐसा ही होगा। हवलदार को तरक्की दे दूंगा...!
अध्यक्ष : ...और सुनो! ...थानेदार का नाम राष्ट्रपति पदक के लिए प्रस्तावित कर देना!
गृहमंत्री (आश्चर्य व्यक्त करते हुए) : ...क्या, सर! राष्ट्रपति पदक...!
अध्यक्ष (हँसते हुए) : राष्ट्रपिता की गिरफ्तारी और राष्ट्रपति पदक भी नहीं? तुम नहीं समझोगे! ...अरे भई! .. खेल अभी खत्म थोड़ा ही हुआ है, थानेदार अभी और भी काम लेना है (कुछ देर रुकने के बाए) उसका मुँह भी तो बंद रहना चाहिए, समझे या नहीं!
गृहमंत्री (विनीत भाव से) : समझ गया सर, समझ गया! ...मगर सर, इस गुलाम के बारे में भी...!
अध्यक्ष (मध्य ही में झिड़कते हुए) : ...तुम्हे तो बस अपनी चिंता लगी रहती है। खैर, तुम्हारे बारे में कुछ न कुछ विचार अवश्य करेंगे...!
गृहमंत्री (दांत निकालते हुए) : ...काम तो उपप्रधानमंत्री पद के काबिल किया है, जनाब!
अध्यक्ष (उपेक्षा भाव से) : ठीक है, भाई! प्रधानमंत्री से तुम्हारे नाम की सिफारिश करूंगा! ...और सुनो, ध्यान से सुन, बापू को रिहा मत करना। बापू रिहा हो गया तो सत्ता खतरे में पड़ जाएगी! ...बापू हमारे पूजनीय हैं, उनका ख्याल रखना! ...कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए! ...समझ गए ना!
गृहमंत्री (उत्साह के साथ) : समझ गया जनाब, समझ गया! .. सर बापू तो हमारे भी पूजनीय हैं, पूरा ख्याल रखूंगा। प्रणाम सऽऽऽर!
(गृहमंत्री थानेदार को अंदर बुला कर उसकी पीठ थपथपाते हैं। मगर उसके चेहरे पर घबराहट के भाव अभी भी काबिज हैं)
गृहमंत्री (हर्ष व्यक्त करते हुए) :
दरोगा जी, कमाल कर दिया। तुम्हारा तो मुंह चूमने को मन करता है...!
थानेदार (भय के भाव के साथ) : सर-सर-सर...!
गृहमंत्री (थनाध्यक्ष के चेहरे के भाव पढ़ते हुए) : ...घबराने की जरूरत नहीं है, दरोगा जी। तुमने वास्तव में काबिल-ए-तारीफ काम किया है। हवलदार को तरक्की और तुझे राष्ट्रपति पदक दिलाने की सिफारिश करूंगा। (कुछ विचार करने के बाद) मगर एक काम करना, अगले आदेश तक बापू को रिहा मत करना! ...बापू का हम सम्मान करते हैं, वें सुरक्षित रहने चाहिएं! ...देख उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ न हो। खातिर-दारी में भी कोई कसर न रखना। ...चाहे कितना भी पैसा खर्च हो जाए।
थानेदार (आश्चर्य से गृहमंत्री की तरफ देखते हुए) : जी ईईई, जी सर!
गृहमंत्री (तसल्ली देते हुए) : ...बकरी की तरह मिमयाने की आदत गई नहीं! ...ध्यान से सुन, बापू को रिहा मत करना! बापू रिहा हो गया तो हमारी (बात बदलते हुए) तेरा राष्ट्रपति पदक खतरे में पड़ जाएगा ...और कुछ भी हो सकता है!
थानेदार (असमंजस के भाव से) : जी ईईई, जी सर!
गृहमंत्री (पूर्व भाव से) : बावले, घबरा क्यों रहा है! बापू कैद में हैं ना, कैद ही में रहने दे। इससे सुरक्षित जगह उनके लिए और कौन सी होगी! ...अब तू जा, बापू की सेवा में लग जा। अर देख, किसी को कानों-कान खबर नहीं लगनी चाहिए कि बापू कैद में हैं। ...सबूत कोई हो तो खंत्म कर देना।
थानेदार (जिज्ञासा व्यक्त करते हुए) : ...मगर सर बापू का शिष्य भी तो उनके साथ है। ...उसका क्या करूं?
गृहमंत्री (झिड़कते हुए) : ...पुलिस का दरोगा है या म्यूनिसपैल्टी का! (एक क्षण रुकने के बाद) आजकल बदमाशों के एनकाउंटर नहीं हो रहे? कानून-व्यवस्था काफी खराब हाती जो रही है! (थानेदार की आंखों में आंखें डालकर) अच्छा, जा अब तू जा, देख बापू की सेवा में कोई कमी न रह जाए!
(थानेदार ने गृहमंत्री को सलाम ठोका और सीधा थाने पहुंचा, मंच पर पुन: छाया प्रकट। लाइट उस पर फोकस कर दी गई)
छाया (आहत स्वर में) :
...और आधी रात के बाद मुझे बापू से अलग कर राजघाट यमुना के किनारे झाड़ियों के पास ले जाया गया। वहां जाकर मुझ से कहा, चल तुझे रिहा करते हैं, ...जा भाग। लंबे-लंबे डिग भरते हुए मैं राजघाट से बाहर जाने लगा तभी मेरी पीठ से कई गोलियां टकराई और मैं वहीं गिर पड़ा। ...सुबह के समाचार पत्रों की सुर्खियों में से एक सुर्खी थी, 'अंतरराजीय एक गिरोह के साथ मुठभेड़ में दो सिपाही मामूली रूप से घायल, एक बदमाश वहीं ढेर और उसके दो साथी भागने में सफल...।'
(सिसकी भरते हुए छाया अंतरध्यान हो जाती है और नेपथ्य से गृहमंत्री जी का भाषण सुनाई पड़ता है)
गृहमंत्री (गंभीर आवाज में) :
...हमारी सरकार ने भ्रष्टाचार दूर करने का संकल्प लिया है, सामाजिक न्याय प्रदान करना हमारा उद्देश्य है। सामाजिक व आर्थिक समानता लाने के लिए हम कटिबद्ध हैं, क्योंकि हमने भारत को बापू के सपनों का देश बनाना है। उनके सपने साकार करने हैं...। क्योंकि बापू हमारे लिए पूजनीय हैं, आज भी प्रासंगिक हैं!

संपर्क- 9868113044
(प्रकाशक – किताबघर प्रकाशन, दरियागंज, नईदिल्‍ली)