Friday, October 26, 2007

बांस को राजदण्ड घोषित किया जाए

राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय पुष्प के समान राजदण्ड भी घोषित किया जाना चाहिए। इसके लिए बांस सर्वोत्तम दण्ड है, क्योंकि उसकी लादेनी मारक क्षमता बेजोड़ है। म्यूनिसपैलटी की सीवर लाइन से लेकर दिमाग की एंजिओप्लास्टिंग करने तक में बांस का उपयोग सर्वसिद्ध है। अंगुलियां टेड़ी हा जाएं तो घी निकल आता है और अंगुलियों में फंसा बांस यदि टेड़ा हो जाए तो..! मेरा यह आग्रह किसी कोमल भावना के वशीभूत नहीं, तथ्य-परक है। गहन शोध के उपरांत प्राप्त निष्कर्षो पर आधारित है।
मेरा यह सुझाव मनुष्य-योनी में बांस की उपयोगिता पर आधारित है। दरअसल मनुष्य-जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक बांस समान भाव से उपयोगी है। शिशु के लिए पालना है, युवक के लिए यौवन और बूढ़े की लाठी है, बांस और मृत के लिए शव-वाहन। तभी तो कहा गया है, ''लाठी में गुन बहुत हैं, सदा राखिए संग।'' 'सांप मर जाना चाहिए पर लाठी नहीं टूटनी चाहिए' यह उक्ति भी बांस के महत्व को दर्शाती है।
बांस विशुध्‍द रूप में धर्म-निरपेक्ष है। बांस न तो किसी धर्म विशेष की आस्था का ही प्रतीक है और न ही किसी संप्रदाय विशेष से संबद्ध है। वह विभिन्न संप्रदायों के मध्य सभी संप्रदायों के लिए संप्रदाय-निरपेक्ष भाव से चलायमान है, समान रूप से उपयोगी है और सभी के मध्य समान रूप से सम्मानित है। वह विशुद्ध रूप से धर्मनिरपेक्ष है, छद्म-धर्मनिरपेक्ष के आरोप से मुक्त है। राजदण्ड-सम्मान से यदि उसे सम्मानित किया जाता है, तो न किसी की कोमल संप्रदायिक- भावनाएं आहत होंगी और न ही वोट बैंक खिसक ने का भय है।
बांस क्षेत्रवाद से भी मुक्त है, क्षेत्रवाद की सीमाओं से परे है। देश के सभी प्रांतों में पाया जाता है, बिना किसी भेदभाव के उपयोग में लाया जाता है, अत: उसे राजदण्ड घोषित •रने में क्षेत्रवाद भी आड़े नहीं आता है। हकीकत में बांस जन-गण का अधिनायक है।
बांस के महत्व से अंग्रेज भली-भंति परिचित थे। उनके राज में बांस को राजदण्ड का सम्मान प्राप्त था। उनका स्पष्ट मत था की बांस के बिना रूल नहीं किया जा सकता। रूल करना है, तो बांस हाथ में होना चाहिए। उनके लिए बांस रूल का प्रतीक बन गया था। बांस के डेढ़ फुटे टुकडे को उन्होंने सम्मानार्थ 'रूल' नाम दिया और उसी एक रूल के सहारे वे हिंदुस्तान पर डेढ़ सौ वर्ष रूल कर गए। अपेक्षाकृत सशक्त 'रूल' जब हिंदुस्तानियों ने हाथ में उठाया, तब जाकर अंग्रेजों ने हिंदुस्तान का रूल हिंदुस्तानियों के हाथ में थमाया। इस प्रकार यह कहना भी अतिशयोक्ति न होगा कि आजादी के संघर्ष में भी बांस का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हकीकत में आजादी का संघर्ष अंग्रेजी व हिंदुस्तानी बांस के अस्तित्व का ही संघर्ष था। हिंदुस्तानी बांस सशक्त निकला और वह विजयी हुआ।
आजादी प्राप्त होने के बाद भी बांस को उठा कर नहीं रख दिया गया। भारतीय राजनीति बांस का वर्चस्व आतंकी-गति से वृद्धि को प्राप्त हुआ है। दलीय और व्यक्तिगत दोनों ही राजनीति बांस के सहारे चलती हैं। जिसका बांस जितना जानदार है, राजनीति में वही उतना बड़ा अलम-बरदार है। दल हो या नेता, बांस जिसका कमजोर पड़ा नहीं कि वह कोने से लगा नहीं। राजनीति नटनी है, सत्ता की पतली डोर पर बांस ही के सहारे संतुलन कायम कर रही है।
बांस प्रत्येक भेदभाव से परे है। वह निर्गुट है, क्योंकि जिसके हाथ में होता है, बिना किसी भेदभाव के उसी के हित में इस्तेमाल होता है। इसीलिए पक्ष व विपक्ष दोनों के लिए समान रूप से वंदनीय है। हिंदुस्तान की राजनीति में यद्यपि बांस का उपयोग बढ़ा है, किंतु यथोचित सम्मान उसे अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। राजनीति अंतर्राष्ट्रीय हो या राष्ट्रीय दोनों ही में बांस की महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्लोबल राजनीति भी बांस पर टीकी है, यह कहना भी अनुचित न होगा।
बांस दण्ड का पर्यायवाची है। राजशाही हो या तानाशाही अथवा हो लोकशाही दण्ड प्रत्येक व्यवस्था में आवश्यक है। बिना दण्ड के शासन नहीं चलता, प्रजा उद्दण्ड हो जाती है। महाभारत में उसी राजा को उत्तम बताया गया है, जिसके हाथ में दण्ड है। उद्दण्ड समुद्र का अहम् चूर करने के लिए भी भगवान राम को दण्ड धारण करना पड़ा था। बांस के महत्व को नकारा नहीं जा सकता वह युगातीत है। अत: भारत सरकार आम-जन की भावना को समझेगी और बांस को राजदण्ड घोषित करने में संकोच नहीं करेगी।
संपर्क - 9868113044