Saturday, December 22, 2007

देश पै घोड़े-गधे राज करैं सै

बाबा की बारात रथ में गई थी। साथ में रौनक बढ़ाने के लिए हाथी, घोड़े और सुंदर-सुंदर बैल और मनोरंजन के लिए नाचने वाली रण्डियां। जमाना बदला बाप की बारात रथ में नहीं बैलगाड़ी में गई। हाथी तो नहीं मगर बैल व घोड़ों ने अवश्य बारात की शोभा चकाचक की। मनोरंजन के लिए नौटंकी कंपनी साथ ले जाई गई थी। जमाने ने फिर करवट ली खुद की बारात में न हाथी थे, न बैल, न घोड़े। मनोरंजन के परंपरागत साधन भी नहीं थे, किंतु इनके स्थान पर नेता व नेतानियों की फौज अवश्य बारात की शोभा में एक दर्जन चांद जड़ रही थी। बैलगाड़ी व रथ के स्थान पर बारात के आवागमन के लिए हैलीकॉपटर का सदुपयोग किया गया था।
लड़के का बाबा तो पूर्व में ही पुत्रों को अंतिम-संस्कार संपन्न करने का सुअवसर प्रदान कर मोक्ष को प्राप्त हो गया था, किंतु लड़की के बाबा परिवार वालों को इस पुण्य कर्म का अवसर प्रदान करने में कोताही बरत रहा था। उसके पुत्र-पौत्र तीक्ष्ण इच्छा के साथ उस दिन के इंतजार में थे, जिस दिन बुढ़ऊ का क्लांत हृदय शांत हो और उन्हें भी अपने पूजनीय के कपाल पर वार करने का पवित्र अवसर प्रदान हो जाए। खैर ऐसा अवसर प्रदान करना न बुढ़ऊ के हाथ में था और न ही उसके शुभचिंतकों के। यह सभी विधि के हाथ में है। हो सकता है कि क्लांत हृदय को शांति प्रदान करने का पुण्य कार्य भी विधाता शुभचिंतकों से ही करा दे। कहा जाता है कि शुभचिंतकों के हाथों मृत्यु का पुण्य कर्म संपन्न होने से स्वर्ग-संसद के लिए मृतक का चुनाव तो निर्विरोध हो ही जाता है। पुण्यकर्म संपन्न करने वाले शुभचिंतकों को भी कई जन्मों के पुण्य अग्रिम रूप में एक मुश्त प्राप्त हो जाते हैं।
बहरहाल लड़की का बाबा अभी तक इसी नश्वर संसार का बाशिंदा है। लड़की के बाबा ने पौत्री की बारात देखी और माथा पकड़ कर बैठ गया। उसने मन ही मन लड़की के ससुर को कोसा और बिरादरी से मुंह छिपाने के लिए कोठे में मुंह देकर बैठ गया। शोक की उस अवस्था में भी बुढ़ऊ आखिर कब तक रहता। उसे पता था कि उसका भाग्य कैकेयी के समान नहीं है कि कोई दशरथ आएगा और कोप भवन में विश्राम करने का कारण उससे पूछेगा। फिर उसके वचन-पूर्ण करेगा और कोप भवन के कोप से उसे निजात दिला देगा।
क्रोध में रंग-बिरंगा बुढ़ऊ कोठे से बाहर आया और लड़की के बाप को टेरने लगा- ओ राम्मे, राम्मे ओ-ओ राम्मे! भुनभुनाता राम्मे बुढ़ऊ के पास आया और बोला- के आफत आग्गी बाप्पू? चों मक्का के खेत के तोत्ते से उड़ा रा सै? दीख ना रहा दरवाज्जे पै छोरी की बरात खड़ी सै!
बुढ़ऊ बापत्वाधिकार के साथ बोला- मैं तोत्ते ना उड़ारा! म्हारे ही तोत्ते तो तेरे समधी नै उड़ दिए। तोते की तरह आंख घुमाकर राम्मो बोला- के बिध बाप्पू? समधी नै के खता कर दी तेरी साण मै? बुढ़ऊ झुंझलाया- तेरी चारो ही फूट री कै, दिक्ख ना?
शतुरमुर्ग की तरह बुढ़ऊ ने गरदन ऊंची की और बारात की ओर देख कर बोला- राम्मो पहलै तै जे बता कि छोरी की सगाई कित कर आया? तै नै वाके खेत-खलिहान भी ना देखा के? बला टालने के लहजे में राम्मो प्यार से बोला- बाप्पू! फिर वा ई बकबक ..अर बता तै समधी ने के तेरी खाट के निच्चे आग रख दी?
बुढ़ऊ की आंखें भर आई। राम्मो भी समझ गया कि बापू का मरम कुछ ज्यादा ही दरदीला हो रहा है। बापू को ढांढस बंधाते हुए वह बोला- तू तो खम्मोखां आंसू टपका रा सै। बतात्ता तो है नी के बात हुई, बता चल बता!
राम्मू तू देखना रिया इस उजड़ी-उजड़ी बरात नै। बरात मै एक भी तो हाथी, घोड़ा, बैल ना! बुढ़ऊ ने नथनों से टपकते पानी को रोकने के लिए नाक हाथ से रगड़ी और फिर बोला- अर हाथ, बैल घोड़े लावे की हैसियत ना थी तो गधा ही ले आता! बुढ़ऊ ने नाक से सुड़क-सुड़क की आवाज की और आगे बोला- गधा भी ना ला सकै था तो गधे की मरी पूंछ ही ले आत्ता! अर दिके कम सै कम बिरादरी में हंसाई तै ना होत्ती। बुढ़ऊ का दर्द केवल इतना ही नहीं था। उसे इस बात का भी रंज था कि मनोरंजन के लिए भी बारात के साथ कोई प्रबंध नहीं है। अत: वह उसने आगे कहा- राम्मो! मैनै अपनी जिंदगानी में ऐसी उजड़ी बरात पहलै कभी ना देक्खी। अरै हम तेरी बरात मै रण्डी ना ले जा सके तो नौटंकी वाले कंपनी तै ले गिए थे। वा तो कुछ भी ना लाया। बैरंग ही बरात ले आया सै! वा कै बिलकुल ही टोट्टा ब्यारा सै तो नाच वे के लाईया अपनी मां नै ई ले आत्ता।
राम्मू बुढ़ऊ के दर्द से वाकिफ हो गया। उसका मन हंसने को किया पर हंसी होठों पर आने से पहले ही रोक ली और बोला- बाप्पू तू चिंता ना कर। समधी अ अभी बुला के तेरे सामने ही जुत्ते मारूं! राम्मो नै समधी को बुलवाया और आंख मार कर उसे बापू के मर्म की कथा सुनाई। कथा सुन कर समधी हंसी नहीं रोक पाया और वह सहज भाव से बोला- चौं रे छोरी के बाब्बा, हमने के बिध तरी जग हंसाई करा दी। देख रिया नी, इबजा हाथी-घोड़न का जमाना ना रिहा! ना अब बरात मै रण्डी-भड़वे चलै सै। बाब्बा इबजा नेता-नेतानियों का जमाना सै। सो तेरी पोत्ती की बरात मै एक दर्जन नेता-नेत्तानी आई सै!
छोरी के ससुर की बात सुन अचंभे से बुढ़ऊ का मुंह फटा रह गया। फिर फटे मुंह और रुंधे गले से वह बोला- के! तेरे कहवे का मतलब जै है तै, इबजा हाथी, बैल घोड़े-गधों की जगह बरात में नेता चलन लगे अर नाचने वालियों की जगह नेतानी! मुस्कराते हुए लड़की का ससुर बोला- हाँ ताऊ! बुढ़ऊ की हंसी छूट गई और हंसते-हंसते बोला- ठीक कहवै है छोरा! या ई लईयां देस का भट्टा बैठ रि या सै! देस पै घोड़े-गधे अर नचनियां जो राज करैं सै।
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