Monday, February 16, 2009

ग़ज़ल



सुहाने चाँद-से मुख पर तुम्हारे क्यों उदासी है?
तुम्हारी हर अदा पर तो फ़जा करवट बदलती है।।

पुरानी इन किताबों में, किसी के प्यार की गाथा।
ज़रा पढ़कर इसे देखो, कुँआरी ये कहानी है।।

न रोको आँसुओं को तुम, इन्हें बहने ही दो थोड़ा।
तुम्हारे ज़हन पर काली घटा सदमों की छाई है।।

हवाओं से कहा जाए, न छेड़े सुर यहाँ अपना।
व़फा की मौत से पैदा, यहाँ गहरी उदासी है।।

ज़रा देखो सितारों को, ये' कहना तुमसे कुछ चाहें।
मगर कहने से डरते हैं, तुम्हारी माँग सूनी है।।

व़फा के नाम पर क़समें, न खाओ बेव़फा तुम हो।
फरेबों-मक्र की चादर, तुम्हारे दिल ने ओढ़ी है।।

घटा 'अंबर' पे घिर आई, बुझाए प्यास वो किसकी।
किसी का जिस्म प्यासा है, किसी की रूह प्यासी है।।
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