Thursday, November 8, 2007

प्रकाश से अंधकार की ओर ले चल, माँ!

दुनिया-जहान के सभी पुण्य कार्य अंधेरे में संपन्न किए जाते हैं। दिन के उजाले में नहीं! लक्ष्मी भी अमावस्या की अंधेरी रात में विचरण करती है। पूर्णिमा की उजली रात में नहीं। फिर न जाने क्यों आदमी ''तमसो माँ ज्योतिर्गमय'' अंधेरे से उजाले की ओर जाने की कामना करता है? न जाने क्यों द्वार पर दीपक जलाकर लक्ष्मी के आने की आशा करता है?
कुछ लोगों की साजिश लगती है, यह! जब कभी कोई तीज-त्योहार आता है, साजिशन कुछ घिसे-पिटे जुमले बरसात में मेंढकों की तरह हवा में उछले जाते हैं। मसलन, पूरे वर्ष असत्य से मात खाते रहने वाला सत्य, दशहरा आते ही असत्य पर जीत का दावा करने लगता है। वेंटिलेटर पर अंतिम सांसें गिनती-गिनती अच्छाई अचानक बुराई पर विजय प्राप्त करने का दम भरने लगती है। जैसे-जैसे दीपावली नजदीक आती है, अंधकार के सहारे जीवन-यापन करने वाला प्रकाश उसी अंधकार पर विजय प्राप्त करने का दावा करने लगता है। गुमनाम जिंदगी बसर करने वाले ऐसे कथित मूल्यों का वर्ष में एक बार उछलना, पितरों का श्राद्ध मनाने जैसा लगता है।
मृत जुमले उछालने वाले लोगों से मुझे सख्त नफरत है, उनकी साजिश से नफरत है, मुझे! ..चालू किस्म के लोग, कथित मूल्यों से चिपके ऐसे बेदम जुमले उछाल कर अन्य लोगों को गुमराह करते हैं। ऐसा करने में ही उनका हित है। मेरी प्रार्थना है कि चालू किस्म के ऐसे लोगों की बातों में न आना। बुराई के पीछे छिपी अच्छाई को पहचानना। सकारात्मक सोच का इस्तेमाल कर उन अच्छाईओं को खोजना और उन्हीं का अनुसरण करना।
''तमसो माँ ज्योतिर्गमय'' अव्यवहारिक प्रार्थना है। सफल कोई भी व्यक्ति शायद ही अंधकार से प्रकाश में आने की ऐसी अव्यवहारिक कामना करता होगा, क्योंकि प्रकाशित होने पर पुण्य कार्य भी पाप में तब्दील हो जाते हैं! कौन व्यक्ति पुण्य नहीं कमाना चाहेगा? प्रकाश में आकर क्यों बदनाम होना चाहेगा? अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की प्रार्थना केवल गुमराह करने के उद्देश्य से दुहराई जाती है, ताकि अन्य के पुण्य कार्य प्रकाशित हो कर पाप में तब्दील होते रहें और खुद वे अंधेरे में मस्ती काटते रहें।
अब आप ही बताएं, जिसका आधार ही अंधियारा है, क्या वह प्रकाश कभी अंधकार पर विजय प्राप्त कर पाएगा? क्यों भूल जाते हो, टिमटिमाते जिस दीपक के सहारे अंधकार पर प्रकाश की विजय की असत्य घोषणा कर रहे हो, वह दीपक खुद ही अंधकार में विराजमान है।
''दिए तले अंधेरा'' किसने नहीं देखा! कुछ देर टिमटिमाने के बाद दिया बुझ जाएगा और अंधकार फिर सारे वातावरण में छा जाएगा। अंधकार ही स्थायी है, प्रकाश अस्थायी। माँ से केवल यही प्रार्थना करो- मुझे प्रकाश से अंधकार की ओर ले चल, माँ! ..मुझे स्थायित्व प्रदान कर, माँ! ..लोग मूर्ख हैं, द्वार पर दीपक जलाकर लक्ष्मी का स्वागत रखने की इच्छा रखते हैं और लक्ष्मी अमावस्या के काले साये में स्याह दिलों को धन-धान्य से पूर्ण कर लौट जाती है। अंधकार विजयी हो जाता है और कुछ देर के बाद पराजित योद्धा की तरह प्रकाश भी अंधकार में विलीन हो जाता है!
दुनिया के सारे कारोबार असत्य के ही सहारे तो चलते हैं! असत्य ही प्रगति पथ का निर्धारक है, व्यवहारिक है और सत्य अव्यवहारिक है, प्रगति में बाधक है। चारों ओर असत्य ही का गुणगान हो रहा है! अत: असत्य ही सत्य है!
प्रत्येक व्यवहारिक व्यक्ति जब-जब असत्य न बोलने का दावा करता है, तब-तब वह असत्य ही का तो पालन करता है। जो व्यक्ति सदैव सत्य बोलता है, उसे सफाई देने की आवश्यकता क्या है? सत्य का इस्तेमाल केवल असत्य स्थापित करने के लिए किया जाता है। अत: वर्णमाला के प्रथम अक्षर के साथ चिपके सत्य को पहचानों। अकेले सत्य का त्याग कर 'अ' के चिपके सत्य का अनुसरण करो, प्रगति पथ पर बढ़ो! सत्य कभी का पराजित हो चुका है। असत्य ही की जय-जय कार है, इसलिए प्रकाश नहीं अंधेरों से दोस्ती करना सीखो!
संपर्क : 9868113044