Wednesday, December 19, 2007

लाइलाज बीमारी बासिज्म



जर्मन शैपर्ड पिल्लू सिंह मुन्नालाल के परिवार का एक प्रमुख सदस्य है। मुन्नालाल दरअसल जीव प्रेमी है। श्रीमती मेनका गांधी उसकी प्रेरणा स्त्रोत हैं। पिल्लू सिंह को उसने कुत्ते के रूप में पाला था। मगर व्यवहार व सदगुणों के कारण मुन्नालाल के परिवार के आदम सदस्य आज उसे कुत्ता कहना अपनी हिमाकत समझते हैं। क्योंकि उसे कुत्ता कह कर संबोधित करना उसका अपमान मानते हैं।
पिल्लू सिंह वास्तव में एक पारिवारिक जीव है। वह स्वयं भी उसी प्रकार व्यवहार करता है, जिस प्रकार परिवार के अन्य सदस्य। हां, कभी-कभी आदम सदस्य अवश्य परिवार विरोधी हरकतें कर बैठते हैं, यह उनकी आदमीय कमजोरी है। उसे आदम प्रकृति भी कहा जा सकता है, मगर मजाल कि पिल्लू सिंह कभी किसी तरह की ओछी हरकत करते देखा गया हो! इसकी वजह उसका परा-आदम स्वभाव है और यही स्वभाव आदम व जीवों में अंतर करता है।
मनुष्यों के समान उसकी भी अपनी इच्छाएं हैं और उन्हें व्यक्त भी करता है। मगर शालीनता के साथ। जब कभी उसे लघु या दीर्घ किसी शंका के निवारण की आवश्यकता महसूस होती है तो वह अपनी पीठ परिवार के आदम सदस्यों के शरीर से रगड़ने लगता है। भूख-प्यास परेशान करने लगे तो चेहरे पर तरह-तरह की आकर्षक मुद्राएं उतारने लगता हैं, दुम हिलाने लगता है। दुम हिलाने का यह सदगुण मनुष्य ने शायद पिल्लू सिंह की प्रजाति के जीवों से ही ग्रहण किया है।
सदगुण किसी से भी ग्रहण किया जाए, हर्ज की बात नहीं है। मगर उसका दुरुपयोग गलत है और मनुष्य दुम हिलाने के इस सद्ंगुण का खुला दुरुपयोग कर रहा है,यह घातक है। गनीमत है कि दुम हिलाने संबंधी इस सदगुण का पेटेंट करने का फितूर अभी तक मनुष्य के दिमाग में नहीं उठा है। वरन् बेचारे पिल्लू सिंह के भाई-बिरादर बस दुम लटकाए ही घूमते। दुम का भार वे सहन करते और हिलाया करता मनुष्य। मनुष्य यदि पेटेंट करा लेता है तो यह संपूर्ण जीव जगत के अधिकारों पर कुठाराघात होगा। मेनका जी को अभी से इसके प्रति सचेत रहना चाहिए।
पिल्लू सिंह न केवल अपनी इच्छाएं व्यक्त करने में शालीनता का निर्वाह करता है, अपितु आदेश-निर्देश देते समय भी शालीनता का पालन करना उसकी प्रकृति में शामिल है। सुबह जब हॉकर अखबार डालकर चलने लगता है, तब पिल्लू कुंई-कुंई कर मेरे तलवे चाट कर मुझे जगाता है तब मुझ लगता कि जैसे मधुर स्वर में कह रहा है 'बीती विभावरी जाग री अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी। तू अब तक सोया है, मतवाले! अखबार फेंक गए अखबार वाले।'
आदम-जात ने तलवे चाटने का गुण भी उसी की पारिवारिक विरासत से चुराया है, मगर वह उसका भी दुरुपयोग कर रहा है।
मेरे साथ ही नहीं, अपनी मम्मी यानी के मेरी पत्‍‌नी व पुत्रों के साथ भी उसका व्यवहार सद्ंभावना से परिपूर्ण ही रहता है। पड़ोस में गप्पें करते-करते पत्‍‌नी यदि कभी समय सीमाओं का उल्लंघन कर देती है तो वह मेरी तरह नहीं चिल्लाता 'अजी कहां हो, मुन्ना जाग गया है। देखों दूध में उबाल आ गया है, जल्दी आओ नहीं तो पतीली से बाहर आ जाएगा।'
मुन्ना सोया ही कब था, जो जागेगा। दूध तो मदर डेयरी से घर तक आया ही नहीं, फिर उबाल क्या रीते पतीले में आएगा। मगर ऐसा ही होता है। मुन्ना बिना सोए ही जाग जाता है और दिल में उठा उबाल रीते पतीले के दूध में उठने लगता है। यह भी आदम स्वभाव है।
इसके विपरीत पिल्लू भाई, शालीनता के साथ अपनी मम्मी का पल्लू पकड़ घर ले आता है। शायद इस भाव के साथ, 'बहुत देर हो गई है, घर चलो, नहीं तो पापा के रीते पतीले में उबाल व तूफान दोनों एक साथ उठने लगेंगे'
चीखने-चिल्लाने से शायद उसे नफरत है, इसलिए वह कभी नहीं चिल्लाता। घर का कोई आदम सदस्य कभी चिल्लाता भी है, तो उसकी आंखें आंसुओं से भर जाती हैं और चिल्लाने वाले सदस्य के पैरों में लेट जाता है, शायद इस भाव के साथ, 'अरे, भाई! चिल्लाओ मत, मेरा सिर फटता है। आदम जात में यही सबसे बड़ा दोष है कि चिल्लाते बहुत हैं। पता नहीं सहज भाव से अपनी बात कहना हमसे कब सीखेंगे। अरे, बरखुरदार! चीखने-चिल्लाने की अपेक्षा अपनी बात सहज-भाव से ज्यादा अच्छी तरह समझाई जा सकती है।'
पिल्लू सिंह को लेकर मुन्नालाल आज-कल काफी चिंतित है। चिंता का कारण है, उसके व्यवहार में आदम-जात गुणों की घुसपैठ। उसके स्वभाव में यह परिवर्तन अचानक दृश्यमान होने लगा है। शालीनता उसके स्वभाव से इस तरह गायब होती जा रही है, जिस तरह सरकारी दफ्तरों से ईमानदारी। अपनी इच्छा-अनिच्छा अब वह सहज भाव से नहीं, चिल्ला-चिल्ला कर व्यक्त करने लगा है। पड़ोसी कहने लगे हैं, अब तो आपका पिल्लू भी भौंकने लगा है। भौंकने-चिल्लाने में भी पिल्लू सिंह की मंशा वही पुरानी है, बस लहजे में बदलाव आया है।
चिंतित मुन्नालाल ने उसके बारे में जाने माने मनोविश्लेषक से परामर्श ली, तो उसकी चिंता महंगाई की तरह विस्तार को प्राप्त हो गई। परीक्षण के बाद मनोविश्लेषक ने बताया, 'पिल्लू सिंह आदम स्वभाव से संक्रमित है, मगर उसका चिल्लाना और भी ज्यादा घातक बीमारी 'बासि़जम' का लक्षण है। बासि़जम के लक्षण जब जीव की प्रकृति बन जाते हैं, तब किसी भी तरह के प्रशिक्षण से इलाज असंभव हो जाता है। मुन्नालाल जी, आपके परिवार के बीच रहते-रहते चिल्लाना उसका स्वभाव नहीं प्रकृति बन गई है। किसी भी जीव का स्वभाव तो बदला जा सकता है, प्रकृति नहीं।'
मनोविश्लेषक से मिलने के बाद मुन्नालाल किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया है। आखिर वह करे भी तो क्या करे। पहले आफिस में बॉस और घर में पत्नी की ही कर्कश आवाज झेलनी पड़ती थी अब कमबख्त पिल्लू सिंह के डायलॉग भी उसी तर्ज पर सुनने पड़ रहे हैं। मुन्नालाल आखिर जाए तो कहां जाए? आप कोई सुझाव सुझा सकें तो अति कृपा होगी।
फोन-9868113044