Thursday, February 21, 2008

कटी नाक का सवा हाथ बढ़ना

मुझे ऐसे लोगों पर तरस आता है, जो छोटी-छोटी बात को भी नाक का सवाल बना लेते हैं। बात कैसी भी हो, छोटी हो या बड़ी, नाक का सवाल नहीं बनाया जाना चाहिए। हकीकत में 'नाक' नाक का सवाल है ही नहीं! मेरी नजर में नाक को तरजीह देने वाले लोग अव्यवहारिक होते हैं। नाक बचाने में व्यर्थ ही अपना पूरा जीवन गंवा देते हैं!
वास्तव में नाक बचाने की वस्तु नहीं है, क्योंकि नाक बॉस की नाक का बाल बनने में बाधक है! प्रगति में बाधक है! नाक बचाऊ लोगों की जिंदगी 'जहां है, जैसी है' की स्थिति में ही व्यतीत हो जाती है। मौल-भाव से वंचित रह जाती है।
नाक होने का जिन्हें अहसास तक नहीं होता, ऐसे लोग व्यवहारिक होते हैं। अहसास नहीं होता, इसलिए नाक कटना उनके लिए कोई घटना नहीं है। प्रगति मार्ग पर बेखौफ बिना किसी बाधा के स्केटिंग करते चले जाते हैं। नाक कटे लोग ही सम्मानित व्यक्ति कहलाए जाते हैं। ता-उम्र पूजे जाते हैं। बाद मरने के उनके बुत भी पूजनीय हो जाते हैं। ऐसे लोग ही बाद मरने के भी अमर कह लाए जाते हैं।
नाक दरअसल शरीर का ही एक अंग है, मगर भिन्न प्रकृति का। क्योंकि यह जितनी कटती है, उससे कहीं ज्यादा बढ़ती है, अत: नाक कटने से शारीरिक हानि भी नहीं है। 'नाक कटते ही सवा हाथ बढ़ जाती है' यह शोध सदियों पुराना है। नाक वास्तव में गुलाब के झाड़ के समान है, क्योंकि नाक भी कांट-छांट के बाद ही बढ़ती है, उसके बाद ही फलती-फूलती है। बिना कटी नाक छोटी होती है, कटने के बाद ही बड़ी होती है।
नाक कुत्ते की पूंछ के समान है। सुरक्षित रहेगी, तो कुत्ते की पूंछ की तरह टेढ़ी ही रहेगी, अर्थात प्रगति में बाधक बनी रहेगी। टेढ़ी पूंछ क्योंकि आसानी से हिलती नहीं है, इसलिए टेढ़ी पूंछ का कुत्ता किसी को भाता नहीं है। कुत्ता वही वफादार कहलाया जाता है, जो बात-बात पर पूंछ हिलाता है। पूंछ हिलाने वाला कुत्ता ही अपने पालक की नाक का बाल बनता है।
टेढ़ी पूंछ तो वक्त पड़ने पर हिलाई भी जा सकती है, मगर नाक तो स्वभाव से ही स्थिर है, हिलती ही नहीं है। इस मामले में कुत्ते की पूंछ से भी बदतर है। यही कारण है कि नाकदार व्यक्ति भाग्यविधाता की नाक का बाल बनने से वंचित रह जाता है। ऐसी नाक का क्या लाभ, जो नाक का बाल बनने में बाधक हो। अत: उचित यही होगा कि नाक कटा कर प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया जाए।
जिन कुत्तों की पूंछ सीधी नहीं हो पाती अर्थात हिल नहीं पाती, ऐसे नस्ल के कुत्तों की पूंछ बचपन में ही काट दी जाती है। पूंछ कटी नस्ल के ऐसे कुत्ते अपेक्षाकृत ज्यादा उपयोगी होते हैं, ज्यादा कीमती होते हैं। इसी प्रकार नाक कटे इंसान अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावशाली होते हैं, ज्यादा प्रगतिशील होते हैं।
दरअसल नाक और पूंछ कटने के बाद शरीर में कुछ जैविक परिवर्तन होने लगते हैं। कुछ अतिरिक्त हारमोंस बनने लगते हैं। जिनके कारण नाक कटे इंसान और पूंछ कटे कुत्ते उम्दा किस्म के कहलाए जाते हैं।
ऐसे अनेक महानुभाव कुकुरमुत्ते की तरह समाज में पनप रहें हैं, जो कभी साधारण जीव की तरह विचरते थे। आज विशिष्ट जनों की पंक्ति में भी आगे खड़े हैं। जाने-अनजाने या कहा जाए दुर्घटनावश कभी उनकी नाक कटी थी। प्रारंभ में तो शर्म के कारण बेचारों ने मुंह दिखाना बंद कर दिया था। कुरूप होने का अनुभव करने लगे थे। परंतु जैसे-जैसे उनके शरीर में जैविक परिवर्तन और हारमोंस विकसित हुए, वे अपने-आप को पूर्व की स्थिति से ज्यादा तरोताजा महसूस करने लगे और मुंह से नकाब हटाने लगे।
नाक कटे वे महानुभाव आज नाकदार ही नहीं अपने-अपने स्थान पर समाज व राष्ट्र की नाक कहलाए जा रहे हैं। उनमें से अनेक सत्ता में अपना अपूर्व योगदान देकर इस राष्ट्र को गौरव प्रदान कर रहें हैं।
अब आप पूछेंगे, तो क्या इस देश का जुगाड़ ऐसे ही महानुभाव धकेल रहें हैं? इस सवाल के जवाब में मैं कुछ नहीं बोलूंगा, चुप रहूंगा। बस इतना ही कहूंगा आप भी अपनी-अपनी नाक कलम करा लीजिए। कलमी वृक्षों पर लगे फल ज्यादा मीठे होते हैं, उम्दा कहलाए जाते हैं, महंगे भाव बिकते हैं। बाकी आप खुद समझदार हैं।
संपर्क- 9868113044