Saturday, December 29, 2007

कहानी जंगल की

व्यंग्य निठारी काण्ड पर लिखा था। निठारी काण्ड जिसमें एक-एक कर लगभग 32 बच्चे लापता हो गए थे। एक वर्ष पूर्व आज ही के दिन 29 दिसंबर 2006 को इस काण्ड का खुलासा हुआ था। नोएडा-निठारी गांव के सेक्टर 31 स्थित नाले से लगभग 19 मासूम बच्चों के कंकाल मिले थे। पता चला कि मासूमों को हवस का शिकार बना कर नर-पिशाच उनकी हत्या कर देते थे और शव के टुकड़े-टुकड़े कर नाले के हवाले कर दिए। ये सभी अमानवीय कर्म इसी सेक्टर की डी-5 कोठी में हुए। कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र सिंह कोहली पर गाजियाबाद की एक अदालत में इस काण्ड से संबद्ध लगभग 19 मुकदमे चल रहे हैं। आरोप है कि सुरेंद्र बच्चों को बहका-फुसला कर कोठी के अंदर लाता था और हत्या करने के बाद शव के साथ दुष्कर्म करता था। इस पूरे मामले में कोठी मालिक पंढेर का भी हाथ बताया जाता है।

जंगल का राजा उदार हृदय था। यह उसके उदारता का ही परिचायक था कि बंदर उसके राजनैतिक सलाहकार व कार्यकत्र्ता थे और लकड़बग्घे व जंगली कुत्ते उसके राज्य में कानून-व्यवस्था कायम रखने का काम संभाले हुए थे। उसके राज में भेड़ियों की गिनती प्रभावशाली जीवों में होती थी, यह भी राज के उदार हृदय होने की जीवंत उदाहरण है। उस जंगल का एक हिस्सा काफी संपन्न व धन-धन्य से परिपूर्ण था। भेड़िये, लकड़बग्घे, कुत्ते और तेजतर्रार बंदर वहाँ अपनी-अपनी नियुक्ति कराने व बसने की जुगत में लगे रहते थे।
रोजी-रोटी की तलाश में जंगल के दूसरे हिस्सों से भेड़-बकरियों के कुछ परिवार भी वहाँ आकर बस गए। वे दिन भर मेहनत-मजदूरी करते और अपने परिवार को पालते। रोजगार के साधन उपलब्ध होने के कारण भेड़-बकरियों के दिन चैन से कटने लगे। मगर दुर्भाग्य की उनका सुख-चैन ज्यादा दिन तक कायम न रह सका।
दरअसल जंगल में भेड़िये तो पहले ही से प्रभावी थे। ऐसे ही प्रभावशाली एक भेड़िये की निगाह निरीह भेड़-बकरियों के मेमनों पर पड़ गई। मेमने की लजीज मांस और वह भी सहज रूप से मिल जाए, भेड़िये के लिए इससे सुखद बात और क्या हो सकती थी। अत: भेड़िये ने मेमनों पर हाथ साफ करना शुरू कर दिया।
एक मेमना गायब हो गया, उसके माता-पिता को चिंता हुई, किंतु सोच कर शांत बैठ गए कि इधर-उधर कहीं चरने चला गया होगा, आ जाएगा। मेमना जीवित होता, तो अवश्य आता, किंतु उसे तो भेड़िया अपना भोजन बना चुका था।
मेमना वापस नहीं लोटा, उसकी माँ रोने लगी, उसकी आवाज जंगल में सुनाई दी। रोने की आवाज कानून के रखवाले लकड़बग्घों के कान तक पहुंची, किंतु कुछ हुआ नहीं, क्योंकि भेड़-बकरियों का रोने से लकड़बग्घों की संवेदना जागृत नहीं होती है। कहते हैं कि यह प्रकृति का नियम है।
पहले दिन एक परिवार के रोने की आवाज जंगल में गूंजी, धीरे-धीरे एक-एक कर रोने की बहुत सारी आवाजें उसमें शामिल होने लगी। दरअसल भेड़िया एक-एक कर 25-30 मेमने खा गया था।
जब भी किसी का बच्चा गायब होता, उसके माता-पिता कानून के रखवाले लकड़बग्घों के पास जाते, लकड़बग्घे उन्हें टला देते। टाल देना उचित भी था, क्योंकि जंगल के विशिष्ट जीवों की सुरक्षा उनकी प्राथमिकता थी, उसी का भार उनके ऊपर काफी था। वैसे भी कानून-व्यवस्था का भेड़-बकरियों से कोई खास सरोकार होता भी नहीं है। एक-दो मेमने यदि कहीं गुम हो भी गए तो जंगल की सुरक्षा को कौन खतरा पैदा हो गया!
रोने की आवाज धीरे-धीरे जोर पकड़ने लगी, आवाज राजा के राजनैतिक कार्यकर्ता बंदरों के कानों तक पहुंची। कुछ कान खड़े हुए, किंतु व्यर्थ। पता किया, अरे यह तो भेड़- बकरियों के रोने की आवाज है! उनका दर्द सुना जाए, मगर क्यों, बंदर-बांट के लिए उनके पास कुछ भी तो नहीं है!
बंदरों का सरदार बोला, छोड़ो अभी चुनाव भी तो आस-पास नहीं हैं, हों भी तो क्या है, बाहर से आए हुए हैं, उनके वोट भी कितने हैं! भेड़-बकरियों का दुख भूल सभी बंदर अपने आकाओं की सेवा-सुश्रुसा में लग गए।
भेड़-बकरियों के परिवार रोते रहे, भेड़िया निर्भय पूर्वक उनके बच्चों का शिकार करता रहा। पीड़ित परिवार के रोने की आवाज से आजिज कानून-व्यवस्था के रखवाले लकड़बग्घों ने भेड़िये को गिरफ्तार किया भी, किंतु भेड़िये के सामने लकड़बग्घे की क्या औकात और उस पर भी भेड़िया रुसूख वाला हो। भेड़िया मुक्त कर दिया गया और मेमने निगलने का उसका क्रम जारी रहा।
रोने वालों की तादाद बढ़ती चली गई और रोने की आवाज चीख में तब्दील होने लगी। उनकी श्रेणी के भयभीत अन्य जीव भी उनकी आवाज में आवाज मिलाने लगे। आस-पास के जंगलों के जीवों का ध्यान आकर्षित हुआ। उसी दौरान जंगल के चुनाव भी नजदीक आ गए। जंगल का समूचा तंत्र सक्रिय हो गया, राजा को चुनाव में फिर विजयी बनाना था।
सुना गया है, हत्यारे भेड़िया पुन: गिरफ्तार कर लिया गया है। पीड़ित परिवारों के सामने हरी घास के कुछ तिनके भी डाल दिए गए हैं। यह कहानी निठारी के जंगल की है।
अब देखना यह है कि आगे क्या होता है। आगे कुछ होगा, तभी कहानी आगे बढ़ेगी, वरन् कहानी यहीं समाप्त समझो।
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