Friday, November 2, 2018


यू-टू से मी-टू तक


ब्रह्म मुहूर्त था। हम युवावस्था की मधुर स्मृतियों के चर्वण में तल्ली़न थे। सहसा ही श्रवणेंद्रियों में मी-टू, मी-टूकी मधुर ध्वनि गूंजने लगी। विचार करने लगा संभवतया अतीत की पर्त के नीचे दबी कोई स्मृति कह रही है, ‘मैं भी, मैं भी। सुखद आश्चर्य के साथ श्वान मुद्रा में दोनों कान इधर -उधर घुमाए। तत्पश्चात उठकर बैठ गया, कक्ष के चारों कोनों का अवलोकन किया, कोई नहीं था। बिस्तर से खड़ा हुआ। किवाड़ों की बिवाइयों से बाहर की ओर झांका। बाहर भी कोई नहीं था, लेकिन मी-टू, मी-टूकी मधुर ध्‍वनि बारबार गुदगुदी-सी कर रही थी। 
भोर हुई, पत्नी चाय लेकर प्रस्तुत हुईं और बोली, ‘ पामेरियन पिल्ले के समान आंखें लाल-लाल! क्या रात भर जागते रहे? होले- होले आंखें सहलाई, मगर लज्जा की मारी आंखें पत्नी की आंखों के साथ दो-चार करने की स्थि‍ति में नहीं आई। झुकी-झुकी गरदन, हमने कहा- नहीं-नहीं, हम तो निद्रालीन थे, इस मी-टू, मी-टूकी ध्वनि ने सोने नहीं दिया। आश्चर्य के साथ पत्नी जी ने मी-टू, मी-टूदोहराया और इसके साथ ही कद्दू-से उनके मुखमंडल पर चिंता की लकीरें उतर आईं। पत्नी जी की दशा देख प्रेम और सहानुभति से पगी वाणी में हमने कहा- अरे! आपके मुखमंडल पर सूखे रेत पर पानी की-सी लकीरें! …चिंता का कारण,  प्रिय? धिक्कारने के लहजे में पत्नी बोली- कितना समझाया था, शदीशुदा हो, बाज आ जाओ बचकाना हरकतों से! मगर, बाज नहीं आए, अब भुगतो! इतना कहकर समृद्ध वृक्ष के तने-सी कमर को झटका देकर पत्नी जी खड़ी हुईं और बड़बड़ाती हुई चली गईं। चाय की चुस्की  के साथ हम विचार मुद्रा में चले गए। विचार करने लगे- इस मी-टू, मी-टूका अतीत की हमारी हरकतों से क्या संबंध?  अतीत में यू-टू, यू-टू  तो सुना था। वर्तमान में न जाने उल्‍का की भांति यह नया शब्‍द मी-टू, मी-टू कहां से टपक आया। कमज़र्फ़ ने पत्‍नी जी को परेशान कर दिया, हमारे अतीत का स्‍मरण करा दिया। राख में दबी चिंगारियां पुन: सुलगा गया!     
विचारों की गठरी लादे हम रसोई घर में पहुंचे। पत्‍नी जी को मक्‍खन लगाया और मी-टू रहस्‍य के प्रति जिज्ञासा व्‍यक्‍त की। चिकित्‍सक की मुद्रा में पत्‍नी जी ने कहना शुरू किया, सुनों जी! यह एक भयानक वायरस है। भयानक इतनी कि अच्‍छे-अच्‍छे अक्‍बर भी इससे नहीं बच पाए। विशेष रूप से जीवन के अंतिम पड़ाव में विचरण करने वाले तुम्‍हारे जैसे पुरुषों को अधिक लपेटती है। इसका काटा पानी भी नहीं मांगता, जी। श्रीमती जी के वचन सुन मस्‍तिष्‍क कुल्‍फी-सा जम गया। तन तुषार पीड़ित लता के समान कांपने लगा। तन-मन पर नियंत्रण कर हमने जिज्ञासा व्‍यक्‍त की- ऊर्जा दायक यू-टू, यू-टू तो सुना था। मी-टू, मी-टू कहां से प्रकट हो गया कमबख्‍त? पत्‍नी जी बोली- धैर्य धारण करो स्‍वामी। वही बताने जा रही हूं। युवावस्‍था में जिन पुरुषों ने यू-टू- यू-टू का खेल खेला था, उन्‍हीं को अपनी चपेट में ले रही है, मी-टू, मी-टू वायरस। तुम तो काम से गए स्‍वामी। पत्‍नी जी तो हमारे अतीत और वर्तमान को झकझोर कर अपने काम में व्‍यस्‍त हो गईं। और, हम अतीत पर जमी काई की एक-एक पर्त उखाड़ कर संभावित अपने वर्तमान की दलदल से उबरने की चेष्‍टा में व्‍यस्‍त हो गए।
संपर्क- 9717095225




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