Thursday, January 17, 2008

भारतरत्न के बारे में बौद्धिक सुझाव

भारतरत्न न हुआ आलू-प्याज हो गया। जिसे देखो वही सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर लाइन लगाए खड़ा है। बेचारी यूपीए सरकार को मुसीबत में डाल रहा है। अभी तक तो परमाणु डील मसले पर सरकार गिराने की धमकी से निजात नहीं मिल पाई थी। कल से भारतरत्न के मुद्दे पर भी सरकार गिराने की धमकियां मिलना शुरू हो जाएंगी। सरकार न हुई गरीब की जोरू हो गई। जिसे देखो वही भाभी बनाने पर आमादा है। एक अनार सौ बीमार। भाभी बेचारी क्या करे? भारतरत्न आवंटन के बारे में हमारे कुछ सुझाव हैं। इन सुझावों के सहारे हम किसी भी झोला छाप डाक्टर की तर्ज पर शर्तिया इलाज की गारंटी देते हैं। सरकार एक बार आजमा कर तो देखे। फिर बताए, इलाज से पहले और इलाज के बाद का हाल!
हमारा पहला सुझाव है कि भारतरत्न नेताओं को न देकर किसी बुद्धिजीवी को दिया जाए। बुद्धिजीवियों में फिलहाल नटरवरलाल से बड़ा और निर्विवाद दूसरन नाम नहीं है। नटवरलाल से हमारा आशय माननीय नटवरसिंह से नहीं है। हम ठग सम्राट नटवारलाल के नाम की पैरवी कर रहे हैं। यह वह नाम है, जो पूरी जिंदगी बुद्धि चातुर्य की ही कमाई खाता रहा। बुद्धि के बल पर अच्छे-अच्छे तीसमारखांओं को चूना लगाता रहा। अर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के नए-नए फार्मूले इजाद करता रहा। देश-विदेश में भारत का नाम रौशन करता रहा। हमारा तो यहां तक मानना है कि यदि माननीय नटवरलाल को विदेशमंत्री बना दिया जाता, तो वे पाकिस्तान की तो हैसियत क्या है, नकली दस्तावेजों के सहारे अमेरिका को भी भारत का उपनिवेश बनाने की क्षमता रखते हैं। अब आप ही बताइए कि नटवरलाल जी के नाम का सुझाव देकर मैंने कोई गलत तो नहीं की।
मुझे रेलमंत्री लालू प्रसाद की सूझबूझ पर भी तरस आता है। पता नहीं, क्यों उन्होंने अभी तक भारतरत्न के लिए नटवरलाल जी के नाम का प्रस्तावित नहीं किया। भारतरत्न यदि नटवरलाल जी को मिल जाता है, तो सर्वाधिक लाभ उन्हें ही होगा। संपूर्ण बिहार उनकी जै-जै कार करेगा। राबड़ी देवी जी को पुन: सिंहासन पर विराजमान करने का रास्त सुगम हो जाएगा।
लाभ कांग्रेस को भी कम नहीं होगा। पूर्वाचल से जुड़ी देश भर की तमाम वोट कांग्रेस के खाते में आने के आसार बढ़ जाएंगे, विवाद से मुक्ति मिल जाएगी। यदि दक्षिण भारत को मक्खन लगाना है, तो तेलगी भाई और हर्षद मेहता के नाम पर विचार करने में भी कोई हर्ज नहीं है। वे दोनो भी बुद्धिजीवियों की श्रेणी में अग्रिम पंक्ति दबाए हुए हैं। हर्षद मेहता से बड़ा अर्थशास्त्री मैं न मानमोहन सिंह जी को मानता हूं और न ही वित्त मंत्री चिदंबरम साहब को। जो, शेयर बाजार को मुठ्ठी में कर ले, दुनियां-जहान के बैंकों की रकम अपने नाम से शेयर बाजार मे लगवा दे। आर्थिक क्षेत्र में ऐसा धमाकेदार कार्य हर्षद भाई की खोपड़ी के अलावा और किसके बूते की बात है!
तेलगी भाई को मैं उद्योग जगत का सरताज मानता हूं। पूरे देश में उन्हीं के तो टिकट चलते थे। इन दोनों महानुभावों के लिए किसी सबूत की आवश्यकता नहीं है। इन तीनों महानुभावों में से यदि किसी को भारतरत्न से सम्मानित किया जाता है, तो भारत की अरबी-जनसंख्या यूपीए व कांग्रेस के गुनगान करना न भूलेगी। भारतरत्न के सम्मान में भी वृद्धि होगी!
आलू-प्याज और गाड़ियों के वीआईपी नंबर की तरह भारतरत्न की बढ़ती मांग को देखते हुए, सरकार को चाहिए कि उसकी सार्वजनिक नीलामी का प्रावधान कर दे। मेज के नीचे अन्य पुरष्कारों का तो

कारोबार सा चलता ही है। भारत रत्न का भी शुरू हो जाए तो हर्ज क्या है? विकल्प के रूप में यह मेरा दूसरा सुझाव है। सरकार यदि इस सुझाव को स्वीकारती है, तो सारे टंटे ही समाप्त हो जाएगें। 'लेना एक न देना दो' जिसकी जेब में दम होगा, वही अपने सीने पर भारतरत्न चस्पा करने का हकदार हो जाएगा। देखो न जब से भारत की राजधानी दिल्ली में बीआईपी नंबर की बोली लगने का प्रावधान हुआ है, मारामारी समाप्त हो गई है। वरना मेरे जैसा टटपूंजिया भी अपने स्कूटर पर वाआईपी नंबर का जुगाड़ करने की हसरत रखता था। 'सरकार उरला हलवाई, परला पंसारी' की तर्ज पर बैठे-बैठे बस तमाशा देखे। कोई माई का लाल अपने लाल को भारतरत्न दिलाने के लिए सरकार को गरीब की जोरू समझ कर आंख न दिख लाएगा। सुझाव विपत्तिकारक हैं ना, आपकी क्या राय है?
संपर्क : 9868113044