Friday, November 9, 2007

दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं


ज्योतिपर्व दीपावली पर मुन्नालाल की ओर से आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं, बिंदास शुभकामनाएं। प्रथम और विशेष शुभकामनाएं उन रहनुमाओं को जिन्होंने दिए की रोशनी भी महंगी की है। अपना घर जगमग कर, हमें अंधेरों से दोस्ती करने की नसीहत दी है। उन्हें बधाई, उन्‍हें उनके त्याग के लिए बधाई! दूसरी बधाई उन मिलावटखोर महानुभावों को जिन्‍होंने सिंथेटिक दूध का आविष्‍कार कर, हमें नश्‍वर शरीर का बोध कराया है। आदमी को मृत्‍युलोक मुक्‍त कर, स्‍वर्ग का रास्‍ता दिखाया है।
बधाई बिंदास संस्कृति के वाहकों को भी। नई संस्कृति के जन्मदाताओं को, प्रचारकों को। यह उनके अथक प्रयास और विश्वास का ही परिणाम है कि बच्चों के आत्मविश्वास में वृद्धि हो रही है, हीनभावना का क्षय हो रहा है। सौंदर्य-बोध वृद्धि को प्राप्त हो रहा है! बच्चे बिंदास बोल रहे हैं, कंडोम-कंडोम खेल रहे हैं। सेक्सी-सेक्सी खेल रहे हैं, सेक्सी पहन रहे हैं, सेक्सी खा रहे हैं। समूचे वातावरण को सेक्सी-सेक्सी कर रह हैं।
शुभकामनाएं ऐसे धर्माचार्यो के लिए भी, जिन्होंने 'धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष' पुरुषार्थ-चतुष्टय की नए संदर्भ में व्याख्या की है। धर्म मार्ग भी अर्थ की ओर जाता है, इस नए सिद्धांत का प्रतिपादन किया। धर्म को अर्थ से जोड़ा और अर्थ को काम से। जिसके पास अर्थ है, काम है, मोक्ष उसे स्वमेव प्राप्त हो जाता है। शुभकामनाएं उन महान संतों को जिन्होंने राजनीति में धर्म के साथ-साथ अर्थ और काम का भी प्रवेश दिला कर उसे संपूर्णता प्रदान की। ऐसे ऋषियों को मुन्नालाल का शत्-शत् प्रणाम।
शुभकामना राष्ट्र के उन कर्णधारों को भी जिन्होंने धर्माचार्यो के वचन जीवन में उतारे और राजनीति का नवीन संस्करण प्रस्तुत किया। राजनीति को आर्थिक आधार प्रदान किया, उसका सेक्सिकरण किया। सेक्स-सेंस को नई ऊंचाईयाँ प्रदान की। सत्ता, सेक्स और अपराध तीनों के अंत:संबंध जनता के सामने प्रस्तुत किए। पौरुष की नई गाथा लिखी। दुर्योधन, दु:शासन प्रवृत्ति का विकास किया। द्रौपदी चीरहरण को नए आयाम दिए।
शत्-शत् नमन और विशेष शुभकामनाएं उन कामिनियों को भी जिन्होंने चीर की पीर को समझा और कमनीय काया को चीर के बोझ से कुछ तो मुक्त किया। न चीर होगा, न चीरहरण की त्रासदी और न चीर की पीर होगी! फिर न किसी दु:शासन और दुर्योधन पर चीर हरण का आरोप लगेगा। अपना पानी उतार पारदर्शिता सिद्धांत को सींचने वाली ऐसे पारदर्शी बालाएं, धन्य हैं! चाल- चरित्र और चेहरे में समानता का इससे उत्तम उदाहरण और क्या होगा? ये सभी महान विभूतियां बिंदास संस्कृति के प्रकाश स्तंभ हैं। सभी को मुन्नालाल कोटि-कोटि नमन करता है।
अंतिम शुभकामना उन भद्रजनों को जो भीष्म पितामह की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। धर्म के गीत गाते हैं, किंतु चीरहरण के समय शीश झुका लेते हैं। लज्जा की प्रतिज्ञा से प्रतिज्ञाबद्ध हैं। संपूर्ण निष्ठा के साथ प्रतिज्ञा का पालन कर रहे हैं। धर्म उनका जीवन है, आदर्श है, किंतु अवसर जब धर्म और अधर्म के मध्य संघर्ष का आता है, तो सेनानायक पद अधर्म पक्ष का स्वीकारते हैं। वचन से धर्म, का और कर्म से अधर्म का निर्वाह करने वाले ऐसे भद्रजन, धन्य हैं।
राष्ट्र के लिए समर्पित जनता को कैसी शुभकामना, कैसा संदेश? बस, मुन्नालाल यही कह सकता है, अर्जुन की तरह गाण्डीव का बोझ कंधों पर उठाए रखना। भील गोपियां लूटते रहे, बस तुम देखते रहना। बृहन्नला का अभिनय करते रहना।
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