Monday, April 2, 2012

डकारने का दर्शन



स्कूल के वार्षिक समारोह में
मंत्री जी को बुलाया
मुख्य अतिथि बनाया
मंत्रीजी ने बच्चों की सेहत निहारी
खुल्ला खाने की नसीहत बघारी
मंत्रीजी बोले-
''देश धर्म का नाता है, खाना हमको भाता है।''
डाइटिंग हटाओ, देश बचाओ।
डाइटिंग सेहत के लिए घातक है,
देश की प्रगति में बाधक है।
इसलिए खाने में कभी नखारा नहीं दिखाया,
जो भी मिला उसे खुशी-खुशी  पचाया।
तुम भी खाने में नखरा न दिखाना,
जो भी मिल जाए उसी को पचाना।
छुप कर खाना, खुल कर खाना,
जैसा मौका मिले वैसे ही खाना।
छुप कर खाओगे, छुपे रुस्तम कहलाओगे,
पोल खुल गई तो रुस्तम-ए-हिंद बन जाओगे
देर-सबेर मंत्री भी  बन जाओगे।
मंत्रीजी बोले-
''गिरते हैं स-सवार ही मैदाने में जंग में,
वो क्या खाक गिरेंगे, जो घुटनो के बल चलते हैं।''
खाना तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है,
अत: खाते रहना, बस खाते रहना।
अधिकार समझ कर खाते रहना,
कर्तव्य समझ कर खाते रहना।
बस खाते रहना, खाते रहना,
जैसे भी हो बस खाते रहना।
मंत्रीजी बोले-
''जिसने की सरम, उसके फूटे करम,
जिसने की बेसरमाई, उसने खाई दूध मलाई।
तुम  लोहा खाना, सीमेंट खाना,
कुछ न मिले तो चारा ही खाना।
खाना तुम्हारा अधिकार है,
दूध-मलाई समझ कर खाना।
 मंत्रीजी बोले ,
तुम देस का भविष्य हो,
डकारना सीखो
डकारना तुम्हारा नैतिक दायित्व है,
इस देश के प्रति उत्तरदायित्व है। 
अत: जो भी मिले उसे ही डकारो ,
तोप डाकारो, तमंचे डकारो।
कुछ न मिले तो ताबूत ही डकारो,
देश के प्रति उत्तरदायित्व मान कर डकारो।
मगर शर्त यह है,
डकारना, मगर डकार न लेना,
बिना डकार के ही डकार लेना।
डकार कर, डकार लेना दु:चरित्र है,
डकार कर भी डकार न लेना राष्ट्रीय चरित्र है,
अत: डकार लेना- डकार लेना, पर डकार न लेना। 
डकारो, चाहे कुछ भी डकारो, मगर
इस देश को डाइटिंगवादियों से बचालो।
मंत्रीजी भावुक होकर गाने लगे-
मेरे देश को बचालो, चाहे चारा खालो रे,
चारा खालो रे चाहे, ताबूत चबालो रे,
मेरे देश को बचालो, चाहे कफन खालो रे
मेरे देश को बचालो---।