Tuesday, October 23, 2007

लक्ष्मण को लंकेश की दीक्षा


(बलॉगर दोस्‍तों के नाम)

भगवान राम लंकेश के ऊपर लगातार बाणों की बौछार कर रहे थे, किंतु उसका राम नाम सत्य नहीं हो पा रहा था। हताश श्रीराम ने लंकेश-अनुज विभीषण के समक्ष अपनी व्यथा रखी। विभीषण मुस्करा कर बोले, ''हे, राम! मैं तुम्हारी व्यथा समझता हूं। धारा 144 के कारण आप अग्नि-बाणों का प्रयोग करने में असमर्थ हैं और बांस निर्मित बाणों से रावण-वध असंभव है। श्रद्धेय एक अन्य उपाय बताता हूं, ध्यान से सुनों- विद्वान स्वभाव से स्वाभिमानी होते हैं। स्वाभिमानी व्यक्ति प्रत्येक आपदा सहन कर सकता है, मगर अपमान नहीं। तनिक सा अपमान भी उसे आहत कर देता है। विद्वान होने के कारण लंकेश स्वाभिमानी है। अत: व्यंग्य-बाणों से उसके स्वाभिमान पर आक्रमण कीजिए।''
विभीषण के वचन सुन श्रीराम की सेना ने लंकेश के ऊपर व्यंग्य-बाणों की बौछार शुरू कर दी। स्वाभिमानी लंकेश व्यंग्य-बाणों की मार ज्यादा देर न झेल सका और शीघ्र ही धराशाई हो गया।
लंकेश के धराशाई होते ही श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण से कहा, 'वत्स लंकेश के पास जाओ, वह राजनीति का प्रकांड पंडित है, उससे राजनीति के कुछ गुर सीख लो।' भगवान राम के आदेश का पालन करते हुए लक्ष्मण लंकेश के नजदीक गए, चरण स्पर्श कर उन्हें प्रणाम किया और राजनीति का पाठ पढ़ाने का आग्रह किया, मगर लंकेश मौन रहा।
निराश लिए लक्ष्मण भगवान राम के पास आए और अपनी व्यथा से अवगत कराया, 'भ्राता, त्रेता में तो लंकेश इसलिए मौन था कि मैं चरणों की ओर नहीं उसके शीश की तरफ जा कर खड़ा हो गया था, मगर इस बार तो न केवल चरणों की ओर खड़ा हुआ हूं, अपितु चरण वंदना भी की है। फिर लंकेश मौन क्यों?'
राम ने लक्ष्मण से पूछा, 'लंकेश के लिए गिफ्ट क्या लेकर गए थे।' गिफ्ट के नाम पर लक्ष्मण मौन थे।
लक्ष्मण की तरफ देख राम बोले, 'हे वत्स, कलियुग में त्रेतायुग का व्यवहार, अव्यवहारिक है। कुछ नहीं है तो पुष्प-पत्र लेकर ही सही, लंकेश के पास पुन: जाओ।' लक्ष्मण ने भ्राता राम के आदेश का पालन किया। लंकेश ने लक्ष्मण का प्रणाम स्वीकार किया और आने का कारण पूछा।
लक्ष्मण बोले, 'हे, राजनीति के प्रकांड पंडित दशानन! मुझे राजनीति के कखग की दीक्षा प्रदान कर अनुग्रहीत करें।'
लंकेश बोला, 'वत्स लक्ष्मण! कलियु" में सफलता प्राप्त करने के लिए चरणवंदना परम आवश्यक है। राजनीति का यह प्रथम सूत्र तो तुम्हें कंठस्थ है ही। गिफ्ट-महिमा का दूसरा सूत्र तुम्हें भगवान राम ने सिखा दिया और उसका अनुसरण तुमने किया ही है। इसके अतिरिक्त राजनीति के कुछ और प्रमुख गुर तुम्हें बताता हूं। तुम्हारे व्यक्तित्व-विकास में भी सहायक होंगे। वत्स, 'संकट काले मर्यादानास्ति' अत: संकट काल में गधे को भी बाप बना कर समझौता कर लेना ही सर्वमान्य व सफलतम् आदर्श है।'
'इनसान को छोड़ कर अन्य सभी जीव विश्वास के योग्य हैं। इनसान पर विश्वास कदापि नहीं करना चाहिए, क्योंकि विभीषण इनसानों में ही होते हैं, अन्य जीवों में नहीं। वत्स लक्ष्मण! धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में केवल अर्थ श्रेष्ठं है, क्योंकि अर्थ से शेष तीनों पुरुषार्थ भी सहज ही प्राप्त किए जा सकते हैं। अत: राज कोष को अपनी निज संपत्ति मान कर चलना चाहिए और उसे विदेशी बैंकों में जमा कराना ही श्रेयष्कर है। ताकि संकट काल में काम आ सके।'
लक्ष्मण ने पूछा, 'हे लंकेश, लोकतंत्र में सफलता का राज क्या है?'
रावण बोला, 'वत्स! लोकतंत्र में वही सफल होता है, विचार-समाचार-प्रचार जिसकी मुठ्ठी में होते हैं। विचार से तात्पर्य बुद्धिजीवी से है और समाचार का अर्थ मीडिया। जिसकी जेब में ये दोनों ताकते हैं, वही सफल राजनीतिज्ञ कह लाया जाता है, क्योंकि युग प्रचार का है। प्रचार के महत्व को समझना चाहिए।'
लक्ष्मण का अगला सवाल था, 'अहंकार व्यक्ति को किस प्रकार नष्ट करता है?' रावण बोला, 'नहीं वत्स, अहंकार नहीं स्वाभिमान! व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु स्वाभिमान ही है। अहंकार सफलता में अड़े नहीं आता, वत्स, क्योंकि वह अस्थाई भाव है और सफलता के बाद ही उत्पन्न होता है। लेकिन स्वाभिमान वंशानुगत होता है, जन्मजात होता है और सफलता के रास्ते में हमेशा ही अवरोध उत्पन्न करता है।'
लक्ष्मण ने अंतिम प्रश्न पूछने का प्रयास किया, मगर रावण बीच ही में बोला, 'वत्स बस और नहीं, शेष आगामी विजयादशमी पर!'
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