Monday, January 26, 2009

शहर

गणतंत्र िदवस पर हािर्दक शुभकामनाएं

ग़ज़ल

हमें भी अपने' शहर पर गुमान है।
पर आदमी की मुश्किलों में जान है।।

तड़प-तड़प के मर गया जो आदमी।
सुना है उसका लाड़ला जवान है।।

बहुत सी' हसरतें थी अपने' शहर से।
अजीब शोर बंद हर जुबान है।।

कदम-कदम पे आहटें' हैं मौत की।
वजूद का ये कैसा' इम्तिहान है।।

मुझे ही क्या सभी को जिस पे नाज था।
वो' घर नहीं है आजकल मकान है।।

जो धज्जियां उड़ा रहा है अम्न की।
उसे ही हमने सौंप दी कमान है।।

सुना रहा जो' वक्त 'अम्बर' आजकल।
रँगी हुई वो' खूं में' दास्तान है।।

संपर्क : 9717095225

7 comments:

  1. मुझे ही क्या सभी को जिस पे नाज था।
    वो' घर नहीं है आजकल मकान है।।

    -बहुत गहरी बात!! बधाई.

    आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  2. badhiya rachana
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना ..... जय हिंद वंदे मातरम
    महेन्द्र मिश्र
    जबलपुर.

    ReplyDelete
  3. गणतंत्र की जय हो . आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    ReplyDelete
  4. achchee kavita.. vastvik sthiti ka sahi chitran kiy hai

    आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर बधाई एवं शुभकामनाऐं

    ReplyDelete
  5. वाह, दुष्यन्त कुमार की याद आ गयी! घर नहीं, मकान हैं!

    ReplyDelete
  6. बहुत सी' हसरतें थी अपने' शहर से।
    अजीब शोर बंद हर जुबान है।।
    एकदम सही कहा है । बहुत बढिया गज़ल ।

    ReplyDelete