धैर्य धर मतदाता
राजेंद्र त्यागी
काम का बोझ और बॉस के बांस का दर्द लिए हम घर पहुंचे। चेहरे पर विरह-संताप का ताप लिए श्रीमतीजी द्वार पर ही प्राप्त हो गई। उनके विरह-संवेग के कारण हम नहीं थे, क्योंकि कृष्ण-गोपिका-विरह की स्थिति अब हमारे लिए अतीत का हिस्सा बन चुकी हैं। रीतिकाल की नायिका की तरह द्वार पर खड़ी श्रीमती जी हमारी बाट नहीं जोह रही थी। वे खंभों पर लटके बिजली के तार निहार रही थी। दरअसल पिछले तीन दिन से बिजली नहीं आई थी। श्रीमतीजी का संतापित चेहरा देख हमारे मुख से निकला, ''अभी तक नहीं आई़!'' पूर्व में जब-कभी पत्नी मायके चली जाया करती थी, तब भी ऐसे ही व्यग्रभाव से हम मन ही मन कहा करते थे, ''आज भी नहीं आई!'' वक्त और जमाने की दुश्वारियों ने पत्नी का रूप परिवर्तन श्रीमती के रूप में कर दिया है। जंग खाए लोहे की तरह धीरे-धीरे पत्नी-भाव का क्षरण हो गया है। जिज्ञासा युक्त हमारा प्रश्न सुनकर विरह-भाव से श्रीमतीजी बस इतना बोली, ''बिहारी की नायिका के समान नखरे दिखाती है। आती है और मुखड़ा दिखाकर चली जाती है।'' बिजली नहीं तो पानी भी नहीं। पानी उतरे नेताई चेहरों की तरह नल भी कई दिन से सूखे पड़े हैं। महाराजाधिराज के आगमन की पूर्व-सूचना की तरह सुबह-शाम सूखी टोंटी वायु-वेग से बिगुल सा बजाती है। तृष्णा-तृप्त बिगुल की आवाज सुन कर ही तन-मन भीग-भीग सा जाता है। दुर्भाग्य हमारा कि आगमन का सूचनात्मक बिगुल हमारे घर बजता है और महाराजाधिराज पड़ोस ही में टपक कर लोट जाते हैं। पिछले कई दिन से वाटरबॉथ का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है। सनबॉथ से ही गुजारा हो रहा है। इसे स्वेट्बॉथ भी कहा जा सकता है, जिसका सौभाग्य घर और दफ्तर दोनों स्थानों पर प्राप्त है। मोमबत्ती के तन में आग लगाकर श्रीमतीजी ने कैंडल-लाइट डिनर का प्रबंध किया। हमने दाल के पानी में रोटी का टुकड़ा भीगोकर पेट की आग पर पानी डालने का प्रयास किया। ईश्वर को धन्यवाद दिया। बिजली-पानी न सही महंगाई के इस युग में दाल-रोटी तो मिल रही है। लगभग यह सुनिश्चित हो चुका था कि बिजली का सहवास आज भी प्राप्त नहीं होगा। बिजली के बिना रात तनहा ही गुजारनी पड़ेगी। हम चारपाई शरणम् गच्छामि हो गए। नींद को आना ही था, वह आ गई। आम आदमी के लिए नींद का आना न आना समाचार नहीं है। प्रसंग-विवशता के कारण इस व्यथा-कथा में जिक्र करना आवश्यक हो गया था, अत: कर दिया। नींद के आगोश में जाते ही हम स्वप्न-लोक में विचरण करने लगे। शुक्र है कि वित्तमंत्रालय का ध्यान अभी इस ओर नहीं गया है, अत: स्वप्न देखना अभी तक सेवाकर से मुक्त है और आम आदमी भी स्वप्न-लोक में विचरण करने का साहस कर सकता है। झर-झर करते झरने की सी आवाज हमारी श्रवणेंदियों में उतरी और साथ ही तेज प्रकाश का सा आभास हुआ। दरअसल इंद्र-लोक की परी के समान सरकार हमारे सपने में उतरी थी। अवतरित होते ही सरकार ने हम से पूछा, ''प्रिय मतदाता! आँखों में जलन दिल में तूफान सा क्यों है?'' अनायास ही सरकार के अवतरण से हम हतप्रभ भी थे और भयभीत भी, अत: अतिथि-औपचारिकता का निर्वाह करते हुए हम बोले, ''कुछ नहीं, बस यों ही!'' हमारा संकोच हमारा औपचारिक व्यवहार का अहसास कर सरकार बोली, ''नहीं-नहीं! नि:संकोच बोलो, निर्भय होकर बोलो, औपचारिकता का त्याग कर बोलो! हम तुम्हारी सरकार हैं, तुम्हारी प्रत्येक समस्या का निवारण, तुम्हारे प्रत्येक कष्ट का हरण करना हमारा धर्म है।'' ''अरे! सरकार भी अहसास करती है! मतदाता के प्रति इतना स्नेह भाव रखती है!'' सरकार का ऐसा व्यवहार देख हम आश्चर्यचकित थे। सरकार की अहसास-शक्ति और स्नेहभाव देख हमने अपनी व्यथा उसके सामने उगल दी। सरकार मुसकरा दी और बोली, ''विद्युत और जल विभाग धैर्य धारण करने की शिक्षा दे रहे हैं। मतदाता उसे संकट समझ रहे हैं। धैर्य धारण करो, प्रिय मतदाता! पॉजेटिव बनो!''
कथित बुद्धिजीवी की तरह सरकार ने नाक, होंठ और गालों पर अंगुलियां घुमाई और फिर गंभीर-भाव से बोली, ''बाह्य-प्रकाश की चिंता में कब तक डूबे रहोगे, प्रिय मतदाता? गीता का अनुसरण कर अंतर्मन प्रकाशित करो! ..तृष्णा कैसी भी हो, मनुष्य के पतन का कारण है! सांसारिक तृष्णा का त्याग कर गीता-उपदेश से अंतर्मन की तृष्णा शांत करो! गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत:। अर्थात असत् का भाव नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। गीता के इस श्लोक को हमारे दोनों विभाग नीति-वाक्य बनाने की तैयारी में जुटे हैं।'' सरकारी प्रवचन हमारे स्थूल व शुक्ष्म शरीर को संयुक्त रूप से प्रभावित कर गए, अत: हमने सोचा की अवसर हाथ से नहीं जाना चाहिए। सरकार कब-कब हाथ आती है। लगे हाथ ब्ल्यू लाइन-वाइट लाइन के कारनामों के बारे में भी कुछ ज्ञान ले लिया जाए। हमारी जिज्ञासा का खुलासा होते ही सरकार फिर कृष्ण-भाव में आ कर बोली, ''नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारूत:।। जिसे शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकता। उस आत्मा को ब्ल्यू-वाइट लाइन भला क्या खा कर मारेंगी। आत्मा अमर है। ..हे मतदाता! बस के नीचे जिस शरीर को तुम देख रहे हो, वह नश्वर है। नश्वर पदार्थ के लिए शोक कैसा? बसों पर गीता का यह अमर वाक्य अंकित करने के आदेश कर दिए गए हैं।'' सरकार के कृष्ण-वचन हमारे अर्जुन-मन बिना बिजली के ही प्रकाशित हो गया। आत्मा बिना जल के ही भीग गई। हमें अहसास हुआ बिजली-पानी दोनों असत् है और असत् का भाव नहीं है। बसे आत्मा की अमरता का ज्ञान दे रही हैं। समूची दिल्ली में गीता-ज्ञान का रस बरस रहा है। सरकार अंतध्र्यान हो गई। हमने करवट ली, आँखें खोली। चारोओर अंधकार ही अंधकार पाया। जल-देवता के दर्शनार्थ श्रीमतीजी को ध्यानावस्था में नल के पास खड़ा पाया। पड़ोस से विलाप की आवाज आ रही थी। पड़ोसी सिंह साहब चिथड़ा नश्वर शरीर फर्श पर पड़ा आत्मा की अमरता का संदेश प्रसारित कर रहा था। *******
APKA SWAGAT HAI
ReplyDeleteकैसे सम्पर्क करें राजेंद्र त्यागी जी से फोन पर बात करना चाहता हूँ. मेरा फोन नम्बर 9868166586 है. वेटिंग . .....
ReplyDeleteअविनाश वाचस्पति