राजनीति का खिचड़ी दर्शन
राजेंद्र त्यागी
कभी-कभी आप असमंजस की स्थिति में होते होंगे। मन में एक विचार आया, उससे निपट भी न पाए कि दूसरा विचार आ टपक। इतना ही नहीं, प्रत्येक विचार अपने ढाई चावल अलग गलाने की चेष्टा में मशगूल रहता होगा। मन में उत्पन्न यही विक्षोभ असमंजस का कारण बनता है। ऐसी स्थिति में विचारों की खिचड़ी पकाना ही श्रेयष्कर है। आप न भी चाहें तो भी ऐसा होना स्वाभाविक है, क्योंकि कब्ज की स्थिति में हाजमा दुरुस्त रखने के लिए खिचड़ी का ही एक विकल्प शेष रह जाता है। वैसे भी जब विचार अपने अपने-अपने ढाई चावल अलग-अलग पकाने की चेष्टा करने लगते हैं तो उनमेंअसमंजस की दाल मिलकर खिचड़ी का पकना स्वाभाविक ही है।
असमंजस की ऐसी खिचड़ी स्थिति अक्सर तब पैदा होती है, जब राजनीति में विक्षोभ पैदा होता है। उत्पन्न विक्षोभ के कारण सुनामी लोग परस्पर टकराने लगते हैं और यह टकराव इतना जबरदस्त होता है कि उनके मस्तिष्क में अनायास ही चुंबकीय तरंगें उत्पन्न होने लगती हैं और जिसका परिणाम होता है, सूनामी लहरें।
सूनामी लहरें अनामी लोगों को उद्वेलित करती हैं और उनके मन में खिचड़ी बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। यह खिचड़ी न केवल अनामी लोगों के मन में पकती है, वरन् समूचा राजनैतिक वातावरण ही खिचड़ीमय हो जाता है। जहां देखों वहीं खिचड़ी फदकने से उत्पन्न संगीत सुनाई पड़ने लगता है, क्योंकि प्रत्येक सुनामी अपनी-अपनी खिचड़ी पकाने में मशगूल हो जाते हैं। जिनके पास ढाई चावल हैं वे भी और जिनके पास ढाई भी नहीं हैं, वे भी हांड़ियों के तले चिंगारियों को हवा देने लगते हैं। हांडी मिट्टी की है या काठ की उनके लिए ऐसा सोचना समय की बरबादी है।
जब-जब चुनाव आते हैं, तब-तब खिचड़ी-प्रक्रिया कुछ ज्यादा तेज हो जाती है। खिचड़ी का महत्व और उसकी मांग कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। अपने खिचड़ी बालों को संवारते-संवारते मुन्नालाल बोले, ऐसा होना स्वाभाविक है। खिचड़ी राजनीति, खिचड़ी तंत्र, खिचड़ी दल, खिचड़ी सरकार, हर तरफ खिचड़ी-खिचड़ी। फिर खिचड़ी नहीं पकेगी तो और क्या पकेगा?
मुन्नालाल जी आगे बोले, देखो भइया, सुनामियों के लिए चुनाव संकट की घड़ी होती है। उनके लिए यह घड़ी संकट चतुर्थी के समान होती है और संकट चतुर्थी के दिन खिचड़ी का भक्षण पुण्यकारी है। एक बार खिचड़ी पक गई तो बस समझो पूरे पांच साल बिरयानी उड़ाने के शुभ अवसर प्रदान हो गए। अत: प्रत्येक सुनामी खिचड़ी पकाने में व्यस्त हो जाता है और वह भी तेरे ढाई चावल मेरे दाल के दाने, नहीं होंगे तो भी चलेगा, कोई तो ऐसा मिलेगा जिसका दाल-दलिया कर दाल हासिल की जा सकती है। कुल मिलाकर खिचड़ी पकानी है, परमाणु समझोते की आंच पर पके अथवा रामसेतु के किनारे, बस खिचड़ी पकानी है।
हम बोले, 'खिचड़ी तंत्र में खिचड़ी-खिचड़ी यह तो ठीक है, मगर सुनामी लोगों से उत्पन्न सूनामी लहरें! यह नहीं समझे?' मुन्नालाल बोले, 'सीधी सी बात है। सुनामी हैं तो उनके विचार भी सूनामी होंगे ही। विचार सूनामी होंगे तो उनसे चुंबकी-तरंग भी सूनामी ही उत्पन्न होंगी और सूनामी-तरंगों से उत्पन्न सूनामी-लहरें स्रोत को नहीं सामने वाले को प्रभावित करती हैं। अनामी प्रभावित होते हैं।' हम बोले, 'तो क्या अनामी प्रभावित होने के लिए ही हैं? तो क्या खिचड़ी भी सुनामियों के लिए और बिरयानी भी?' मुन्नालाल बोले, 'नहीं, नहीं! सुनामी उनके लिए भी खिचड़ी पकाते हैं, मगर मजबूरी है, उनके लिए खिचड़ी बीरबल-स्टाइल में पकती है। चुनाव के समय उसे आंच दिखलाई जाती है। कहीं जाकर अगले चुनाव आने तक पक पाती है, मगर क्या करें बांटने में कठिनाई होती है, तब चुनाव-आचार संहिता आड़े आ जाती है। अत: बेचारे सुनामियों को खिचड़ी भी खुद ही खानी पड़ती है और बिरयानी भी। अनामियों के लिए बस सूनामी लहरें ही शेष रह जाती है। यही उनकी नियति है। '
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