Monday, November 5, 2007

बॉस बनाम बांस

प्रश्न, बॉस किसे कहते हैं? उत्तर, जिसके हाथ में बांस हो, उसे बॉस कहते हैं। अगला प्रश्न बांस किसे कहते हैं? जिसे देख कर भूत भागते हैं, जिसके इशारे पर शेर नाचते हैं। जिससे बंद सीवर खोले जाते हैं। छोटा दीखता है, कुछ चिकना होता है, किंतु मारक होता है। वार कहीं करता है, घाव कहीं होता है।
सच बात है, बांस बिन बॉस की गरिमा नहीं, बांस बिना बॉस, बॉस नहीं। बॉस के हाथ में यदि बांस न हो तो वह न कभी अपनी और न ही दूसरों की बांसुरी बजा पाएगा। बांस रखना और बांसुरी बजाना बॉस का धर्म है। घनिष्ठ इस संबंध के अतिरिक्त बॉस और बांस के मध्य कुछ समानता भी हैं। मसलन, बॉस और बांस दोनों गांठ -गठीले होते है। प्रत्येक गांठ कुछ शंका, कुछ आशंकाओं, कुछ प्रश्न और कुछ रहस्यों से भरी होती हैं। एक गांठ का रहस्य सुलझाने का प्रयास करोगे, दूसरी गांठ पहली से ज्यादा मजबूत नजर आएगी। गांठें कच्चे धागे की गांठ के समान होती हैं, जो कभी खुलती ही नहीं हैं, प्रयास करने पर उलझती ही चली जाती हैं।
बॉस का और बांस का मुसकराना यदा-कदा ही होता है। सदियों में जाकर कभी बांस पर फूल खिलते हैं और जब खिलते हैं, तो अकाल साथ लेकर आते हैं। बॉस कभी मुस्कराते नहीं है और जब कभी मुस्कराते हैं तो किसी के लिए संकट के बादल लेकर आते हैं। ऐसी ही कुछ समानताओं के कारण बॉस और बांस कभी-कभी एक दूसरे के पर्यायवाची से लगते हैं।
अंग्रेज बॉस और बांस के पारस्परिक संबंधों से भीलीभांति परिचित थे, इसलिए वे और उनके अधिकारी हाथ में सदैव बांस रखते थे। उनके लिए बांस बॉसिज्म का प्रतीक था, जिसे वे रूल कहते थे। उस रूल के ही सहारे रूलिंग चलती थी। रूल के सामने शेष सभी 'रूल' व्यर्थ थे। बांस के सहारे ही वे 150 वर्ष तक भारत के शानदार बॉस बने रहे। बांस रूपी रूल का ही कमाल था कि उनके राज्य में कभी सूरज डूबा ही नहीं। बांस कमजोर हुआ तो सूरज ऐसा डूबा की अब ब्रिटेन में भी उगने का नाम भी नहीं ले रहा है।
विश्व की समूची राजनीति के दो ही आधार हैं, बॉसिज्म और बांसिज्म। नटनी के समान विश्व राजनीति भी बांस के सहारे ही तो पतली रस्सी पर चल कर अपना सफर पूरा करती है। हो भी क्यों ना राजनीति और नटनी सगी बहने ही तो हैं। ऊंट किस करवट बैठेगा, प्रयास करने पर पता किया जा सकता है, मगर राजनीति और नटनी कब किस करवट लुढ़क जाए किसे पता है।
''उसका बांस मेरे बांस से लंबा क्यों?'' बांसिज्म के इसी दर्शन पर विश्व की राजनीति टिकी है। समस्या कश्मीर की हो या अफगान की अथवा इराक की, जड़ में सभी के बांस है। अमेरिका आज अमेरिका न होता यदि उसके हाथ में बांस न होता। पाकिस्तान में आपातकाल लगाकर मुशर्रफ साहब ने अपने बांस को ही कुछ सशक्त, कुछ लंबा करने का प्रयास किया है। झगड़ा बांस का ही है। मेरे बांस से उसका बांस लंबा क्यों?
विकासशील सभी देश महाशक्ति बनने के लिए आज लंबे और मजबूत बांस की तलाश में हैं। हमारा मानना है कि तृतीय विश्वयुद्ध यदि कभी होगा भी तो, न तेल के लिए होगा और न ही पानी के लिए। होगा तो केवल बांस के लिए होगा, क्योंकि युद्ध जब कभी भी हुए हैं, बॉसिज्म और बांसिज्म को लेकर ही हुए हैं। मजबूत बांस वाला ही युद्ध में विजयी होगा और वही विश्व-बॉस कहलाएगा।
संपर्क : 9868113044

2 comments:

  1. मजबूत बांस वाला ही युद्ध में विजयी होगा और वही विश्व-बॉस कहलाएगा।
    --सत्य वचन, महाराज!!!

    बांस बिन बॉस नहीं
    बॉस बिन बांस नहीं
    बॉस और बांस की आपस में यारी है
    आप बॉस पर लिखें
    या कि बांस पर लिखें
    आपकी हर अदा हमको तो प्यारी है..

    पढ़कर आनन्द आया. याराना तो दिखता था किन्तु इतना कभी कम्पेयर करके नहीं देखा था बांस और बॉस को. बधाई.

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  2. बॉस ही बांस पर लिखेगा
    व्यंग्य का या हास्य का
    बांस देख चढ़ जाए सांस
    उतरने की नहीं बंधे आस

    बांस कितना है करामाती
    भूले देख तू खाना चपाती
    भागे हैं नाचते हुए बराती
    सीना ताने खड़ा है घराती

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