Monday, December 24, 2007

मौत का सौदागर






गुजरात में मोदी भइया जीत गए! ..बधाई!! मोदी भइया को नहीं, सोनिया मइया और राहुल भइया को! दोनों ने जी तोड़ मेहनत की थी! मेहनत रंग लाई, मोदी भइया ने विजय पाई! सोनिया-परिवार यदि मेहनत न करता तो इस बार मोदी भइया के गले में हार का हार ही पड़ने की संभावना थी। मोदी जी को भी सोनिया -परिवार का शुक्रगुजार होना चाहिए और उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए!
केवल मोदी भइया को विजयी बनाने का श्रेय ही सोनिया मइया के खाते में नहीं जाता, संसदीय शब्दकोष को शब्द-संपन्न करने का श्रेय भी इस बार उन्हीं के खाते में जाता है! सोनिया मइया ने सदियों से उपेक्षित शब्दों को संसदीय सम्मान दिया है। मसलन बेईमान, झूठा और मौत का सौदागर आदि आदि। ये ऐसे बदकिस्मत शब्द थे, जिन्हें अभी तक संसदीय शब्दकोष में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था। बस बेचारे गली-मोहल्लों में ही भटकते फिर रहे थे। सोनिया मइया के प्रयास से उपेक्षित इन शब्दों को तो सम्मान प्राप्त हुआ ही है। संसदीय शब्दकोष की भी गरिमा बढ़ी है। इससे पूर्व ऐतिहासिक और सामाजिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले शिखण्डी, दलाल व मसखरा जैसे शब्दों को संसदीय शब्दकोष में प्रवेश दिलाकर उसकी गरिमा में चार नहीं दर्जनों चांद जड़े गए थे।
प्रचार नकारात्मक और सकारात्मक प्रचार-प्रचार होता है। नकारात्मक प्रचार सकारात्मक कहीं ज्यादा प्रभावी होता है। 'बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा!' नकारात्मक प्रचार का यह मूलमंत्र है। जो व्यक्ति नकारात्मक प्रचार के इस मूलमंत्र को मोदी भइया की तरह आत्मसात कर लेता है, मजबूरन ही सही विजय श्री उसी का वरण करती है। मैदान चुनाव का हो या युद्ध का येन केन प्रकारेण विजय प्राप्त होनी चाहिए। गुजरात चुनाव में वही हुआ भी। हो सकता है, जब सोनिया मइया ने 'मौत का सौदागर' जैसे मुहावरों का प्रयोग किया था, तब मोदी भइया को उसका स्वाद नीम चढ़े करेले सा लगा होगा, मगर अब..! और अब मधुमेह की व्याधि से मुक्ति मिल गई ना। मधु-वर्ष संपन्न करने के लिए पूरे पांच वर्ष की अनुमति मिल गई ना! सोनिया मइया मौत के सौदागर का रहस्य सार्वजनिक न करती तो गुजरात की जनता मौत के सौदागर को पूरे पांच वर्ष राज्य करने का लाइसेंस न देती।
इस बार संसदीय शब्दकोष को शब्द-संपन्न करने से मोदी भइया तनिक चूक गए और सोनिया मइया सफल हो गई। सोनिया जी इस देश की सफलतम् नेत्रियों में से एक हैं! मोदी जी इस बार गच्चा क्यों खा गए? यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। दरअसल मोदी जी कमल के समान कोमल भावना से संपन्न भाजपा-नेता हैं। भाजपाई भावनाएं छुईमुई के पौधे से भी ज्यादा छुईमुई होती हैं, संवेदनशील होती हैं। छुईमुई के पौधे की भावनाएं तर्जनी देखकर आहत होती हैं, किंतु भाजपा की कोमल भावनाएं तर्जनी के विचार-मात्र से आहत हो जाती हैं। सूरज बादलों के साथ लुकाछिपी का खेल खेलता है और कमल यह सोचकर मुरझा जाता है कि सूरज डूब गया। ऐसा ही हुआ मोदी जी के साथ।
मोदी भइया अब तो उदासी का त्याग करो। मुरझाए कमल को सूरज के दर्शन कराओ। देश तुम्हें याद रखेगा, मान जाओ! हम जानते हैं, 'देश मुझे याद न रखे' मोदी भइया का यह कहना भी कोमल भावना आहत होने की ओर संकेत करता है। मेरे जैसा टटपूंजिया भी जब ऐसी सद्इच्छा रखता है कि यह देश मुझे याद करे, तब यह कैसे संभव है कि मोदी जी इसके इच्छुक न हों। भावनाएं जब आहत हो जाती हैं तो कमजोर मन की इच्छाएं भी निराशा के वशीभूत अनिच्छा में तबदील हो जाती हैं। मोदी जी की आहत भावनाओं पर मरहम लगाने के उद्देश्य से मैं कहना चाहूंगा, निराश न हों, क्योंकि देश कृतघ्न प्रकृति के नहीं हुआ करते हैं। यह देश गांधी को याद करता है तो गौडसे को भी नहीं भूला है। उसे राम याद है तो रावण भी उसकी स्मृति में शेष है। देश कृष्ण का स्मरण करता है तो कंस को भी नहीं भूला है। हिटलर अभी तक विश्व-स्मृति में है। नेपोलियन को कौन भूला है। मुसोलिन को भी उसके देशवासी याद करते हैं। यह बात अलग है कि इन महानुभावों का स्मरण कर देश के तंत्रिकातंत्र में कंपन उत्पन्न हो जाता है, किंतु देश की स्मृति में आज भी वे शेष हैं। व्यक्ति अपने सद्कर्मो के कारण याद किये जाते हैं और सद्कर्मो का खाता आपका भी चकाचक है। अत: मोदी जी चिंता का त्याग करो, देश तुम्हें याद रखेगा। यह देश कृतघ्न नहीं है! तुम भी कृतघ्नता का त्याग करो और सोनिया मइया के नाम बधाई संदेश ई मेल कर दो!
फोन-9868113044

2 comments:

  1. राजेन्द्रजी , सोनिया-कुल ने मोदी को कैसे जिताया , आपने उचित ढंग से गौर किया है। 'देश की सीमा आप के घर तक न आ जाए' इस थीम के साथ रिडिफ़्यूजन से प्रचार याद होगा- राहुल के पिता प्रचण्ड बहुमत से जीते थे और 'संघ' ने भी हिन्दू हित की पार्टी कांग्रेस को माना था-नतीजतन पूरे देश में भाजपा के दो सांसद लोकसभा में चुन कर आए थे।

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