Sunday, April 27, 2008

बापू कैद में (व्यंग्य नाटक) -पांच


गतांक से आगे...
दृश्य दो
(मंच पर छाया प्रकट, फ्लैश लाइट उस पर केंद्रित)
छाया :
बापू को आराम करने की सलाह दे कर मैं घर लौट आया, मगर रात भर सौ न सका। यह सोच-सोच कर करवट बदलता रहा, बापू आखिर किस हाल में होंगे। बापू रात भर सौ न पाए होंगे। वे लोकतंत्र और लोकतंत्र के वाहक नेताओं को लेकर रात भर चिंतित रहे होंगे और मैं बापू की चिंता को लेकर चिंतित रहा। भोर हुई और मैं फिर बापू के चरणों में जा बैठा। बापू को प्रणाम किया हाल-चाल पूछा और उनके कहने पर उन्हें लोकतंत्र और उसके कथित शिष्यों की हकीकत से रू-ब-रू कराने एक पार्टी के कार्यालय ले गया।
(छाया मंच से अंतर्धान। बापू और मुन्नालाल रास्ते में)
बापू (उत्सुकता के साथ) :
पुत्र, यह क्या! ये लोग क्यों चिल्ला रहे हैं? क्या कष्ट है, इन्हें?
मुन्नालाल ( सहज भाव से) : बापू, यह लोकतंत्र का जुलूस है।
बापू (क्षुब्ध भाव से) : ...फिर वही, लफ्फाजी! ...अवश्य सत्याग्रही होंगे!
मुन्नालाल (बात पर बल देते हुए) : सत्याग्रही नहीं बापू! ...जुलूस ही है।
बापू (आश्चर्य से) : ...लोकतंत्र का जुलूस, पुत्र! ...अभी से! क्या लोकतंत्र ऐसी स्थिति में आ गया है?
मुन्नालाल (मुसकराते हुए) : ...अभी से नहीं बापू! तेरे समाधिस्थ होने के तुरंत बाद से ही।
बापू (पूर्व भाव से) : ...किंतु पुत्र..!
मुन्नालाल (बापू का हाथ पकड़) : ...किंतु-परंतु छोड़ बापू। अभी जुलूस देखा है, अब लोकतंत्र का तमाशा दिखलाता हूं!
(मुन्नालाल व बापू दोनो पार्टी कार्यालय परिसर में। पार्टी कार्यालय परिसर में टिक्टार्थियों की भीड़ है। अलग-अलग समूह में एकत्रित लोग आपस में बातें कर रहे हैं। वरिष्ठं किस्म के नेता पार्टी कार्यालय के अंदर-बाहर आ-जा रहे हैं। कार्यकर्ता अपने-अपने नेताओं के समर्थन में रुक-रुक कर नारे लगा रहें हैं।)
बापू (उत्सुकता से) :
...और यह भीड़, पुत्र!
मुन्नालाल (सहज भाव से) : ...टिकट लेने वालों की भीड़ है, बापू।
बापू (फिर उत्सुकता से) : कैसा टिकट? ..किसका टिकट, किसी सरकस का?
मुन्नालाल (मुस्कराते हुए) : ...हाँ, सरकस का!
बापू (पूर्व भाव से) : ...मगर मुझे, यहाँ क्यों लाया पुत्र?
मुन्नालाल (व्यंग्य भाव से) : सरकस दिखलाने...!
बापू (मध्य ही में) : ...मजाक न कर, पुत्र! साफ-साफ बता!
मुन्नालाल : ...बता तो रहा हूँ। सरकस दिखलाने, लोकतंत्र कासरकस!
बापू : समझा नहीं, पुत्र। ...लोकतंत्र ..लोकतंत्र का सरकस ...टिकट? ..क्या झमेला है?
मुन्नालाल ( मुसकराते हुए) : समझने की कोशिश कर। ...ये सभी राष्ट्रभक्त हैं, आज के भामाशाह, बापू। राष्ट्रसेवा करने के लिए टिकट मांग रहें हैं।
बापू (आश्चर्य से) : राष्ट्रसेवा के लिए भी टिकट, पुत्र! ...राष्ट्रसेवा के लिए भी टिकट की आवश्यकता?
मुन्नालाल (व्यंग्य से) : हां, बापू! आवश्यकता है! ...मांग जब आपूर्ति से ज्यादा हो जाए तो टिकट लगाना लाजिम हो ही जाता है और जब उससे भी काम न चले तो टिकट की नीलामी करनी पड़ती है।
बापू (हर्ष व्यक्त करते हुए) : राष्ट्रसेवा का ऐसा जज्बा तो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी देखने को नहीं मिला! ..धन्य है, भारत माँ तू और तेरे ये सपुत्र। ..मगर पुत्र तू उन्हें भामाशाह क्यों कह रहा है?
मुन्नालाल (बापू के अंदाज में) : यह बता दिया तो फिर कहेगा, 'धन्य है, भारत माँ तू और तेरे ये सपुत्र। ऐसे भामाशाह तो महाराणा प्रताप के समय भी नहीं थे।'
बापू (उत्सुकता व्यक्त करते हुए) : ...मगर क्यों पुत्र?
मुन्नालाल : ...क्योंकि ये तेरे राष्ट्रभक्त टिकट भी नीलामी में ले रहे हैं!
बापू (संशय व्यक्त करते हुए) : ...नीलामी! मगर क्यों?
मुन्नालाल : यहाँ भी वही माँग- आपूर्ति का सिद्धांत..!
बापू (क्षुब्ध भाव से) : ...मुझे विश्वास नहीं होता!
मुन्नालाल : ...विश्वास नहीं होता, चल तुझे उन्हीं से मिलवा देता हूँ। तू खुद समझ जाएगा। .. तब तुझे विश्वास हो जाएगा।
(मुन्नालाल एक-एक कर टिकट के उम्मीदवार कुछ नेताओं से बापू को मिलवाता है।)
मुन्नालाल :
बापू इन से मिल, ये शर्मा साहब हैं। ...टिकट के लिए शर्मा जी ने पचास लाख तक की बोली लगा दी है। इससे भी आगे बढ़ने का इरादा रखते हैं। ...चुनाव में चार करोड़ खर्च करने का वायदा कर चुके हैं।
बापू (आश्चर्य से) : ...इतना रुपया, मगर कहाँ से?
मुन्नालाल (मुसकराते हुए) : कभी लाटरी का धंधा करते थे, आज सट्टा और जुआ खिलवाकर जनता की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर रहे हैं। ये राष्ट्रसेवा को भी जूआ का ही खेल मानते हैं...।
बापू (मध्य ही में आश्चर्य से) : ...किंतु पुत्र, दोनों साधन तो अपवित्र हैं! सट्टंा और जूआ खेलना तो पाप है ...उसकी कमाई राष्ट्रसेवा में?
मुन्नालाल (पूर्व भाव से) : ...किंतु साध्य तो पवित्र है। फिफटी -फिफटी ही सही, कुछ तो पवित्र है!
बापू (क्षुब्ध भाव से) : नहीं, पुत्र-नहीं, साधन और साध्य दोनों की पवित्रता आवश्यक है।
मुन्नालाल (मुसकराते हुए) : ...इनका हृदय परिवर्तन हो गया है, अत: सट्टें की कमाई को राष्ट्रसेवा में निवेश करने की इच्छा रखते हैं। इसमें हर्ज क्या है बापू!
बापू (पूर्व भाव से) : नहीं, नहीं पुत्र..!
मुन्नालाल (मध्य ही में) : ...अधीर न हो बापू! देखता जा..आ तेरा दूसरे भामाशाह से परिचय करता हूँ।
(शर्मा जी से मिलवाकर मुन्नालाल बापू को एक अन्य नेता के पास ले जाता है)
मुन्नालाल (परिचय कराते हुए) :
बापू, इनसे मिल, ये सुराना साहब हैं। बहुत बडे़ व्यापारी हैं।
सुराना (हाथ जोड़ कर अभिवादन करते हुए) : ...जी बस मैं तो सेवक हूँ, राष्ट्र सेवा का संकल्प लिया है।
मुन्नालाल (विनम्र भाव से) : ...क्या उम्मीद है?
सुराना (विश्वास के साथ) : उम्मीद तो पक्की है, किंतु दलाल साहब का पलड़ा भी कम भारी नहीं है।
(सुराना साहब के नाम की आवाज लगती है और तेज कदमों के साथ सचिव के कमरे के कमरे का ओर बढ़ जाते हैं। आशीर्वाद के लिए बापू का हाथ आसमान की ओर उठता है)
मुन्नालाल : ...आशीर्वाद जाया न कर बापू। इनकी भी तो कैफियत सुन!
बापू (सहज भाव से) : ...मगर सुरानाजी तो भले आदमी जान पड़ते हैं, पुत्र!
मुन्नालाल (व्यंग्य भाव से) : हाँ, भले आदमी तो हैं! ...बेचारे कबाड़ी का धंधा करते-करते अब राजनीति को कबाड़ में तब्दील करने का व्यापार करने लगे हैं।
बापू (आश्चर्य से) : क्या मतलब?
मुन्नालाल (समझाते हुए) : बहुत जल्दी धैर्य खौ बैठता है, बापू! ...सुन, टिकट के लिए अब तक सबसे बड़ी बोली इन्हीं की है। किंतु हाईकमान ने अभी हाँ नहीं की है, इसलिए बोली अभी और बढ़ने की उम्मीद है।
बापू (क्रोध व्यक्त करते हुए) : फिजूल की बात! देख, सामने देख पार्टी का नाम पढ़ 'समाजवादी पार्टी' आगे पढ़ 'सामाजिक न्याय, समता, सुचिता, पारदर्शिता!' क्या एक भी चरित्रवान चेहरा नहीं है? ...कभी-कभी बहुत नेगेटिव हो जाता है।
मुन्नालाल (रहस्यमयी मुद्रा में) : ...अच्छा ले इनसे मिल, बहुत पॉजेटिव आदमी हैं! .. सिंह साहब हैं, समाजवादी विचारधारा के अनुयायी हैं। शराब की तस्करी इनका धंधा है। बहुत दयालु प्रकृति के हैं। ...धंधे में टांग अड़ाने वाले कई महानुभावों की आत्माओं का मिलन परमात्मा से करा चुके हैं।
बापू (चौंकते हुए) : हिंसा... !
मुन्नालाल : ..फिर वही घिसे-पिटे जुमले! अरे बापू, सिंह साहब के भी हृदय का डायलेसिस हो चुका है, अत: राष्ट्रप्रेम जागृत हो गया है। ...इनके लिए राष्ट्रसेवा के सामने संपूर्ण धन बे-धन है। अर्थात कोई कीमत नहीं रखता।
बापू (क्षुब्ध भाव से) : अब लौट चले पुत्र!
मुन्नालाल : ...बस, राष्ट्र के एक और महान सेवक से मिललें, फिर चलते हैं!
बापू (पूर्व भाव से) : चल ठीक है... !
मुन्नालाल (हाथ जोड़ कर अभिवादन करते हुए) : ...ये दलाल साहब हैं, दिन-रात जनता की सेव में लगे रहते हैं।
दलाल साहब (अभिवादन की औपचारिकता पूरी कर मुस्कराते हुए) : आप...?
मुन्नालाल : ...ये महात्मा गांधी हैं।
दलाल साहब (उपेक्षा भाव के साथ) : अच्छा...!
(मुँह फेर कर दलाल साहब वहाँ से चले जाते हैं)
मुन्नालाल (क्षुब्ध भाव से) :
दलाल साहब के नखरे देख, बापू!
बापू (सहज भाव से) : कोई बात नहीं पुत्र, कोई काम याद आ गया होगा, जल्दी में हैं।
मुन्नालाल (मुसकराते हुए) : हाँ, बेचारे अतिव्यस्त हैं, दलाली करते हैं,ना!
बापू (पूर्व भाव से) : ...छोड़, पुत्र! ...इनकी कैफियत बता।
मुन्नालाल (पूर्व भाव से) : हाँ, ले बापू, इनकी भी कैफियत सुन। देश के अग्रणी नेताओं में से हैं!
बापू (पूर्व भाव से) : ...लगता तो है!
मुन्नालाल (क्षुब्ध भाव से) : हाँ, सो तो है! ...गाय-भैंसों की दलाली करते-करते राजनीति की पैंठ में उतर आए हैं। राजनैतिक हलकों में इनका बड़ा नाम है, बड़ा आदर है। सरकार बनाना-गिराना इनके बांए हाथ का खेल है। जनप्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त और गाय-भैंसों की दलाली इनके लिए समान है।
बापू (नाक-भौं सिकोड़ते हुए) : छी-छी-छी, ऐसा आदमी और राजनीति में। तरक्की का कारण...?
मुन्नालाल (कृत्रिम गंभीर भाव के साथ) : तरक्की? ...अरे बापू, जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा! यही इनकी तरक्की का मूल मंत्र है, यही आदर्श। ...पैसा इनके लिए हाथ का मैल है।
बापू (क्षुब्ध भाव से) : हे राम, हे राम! क्या इनका भी हृदय-परिवर्तन..?
मुन्नालाल (जोर से हँसते हुए) : हाँ, बापू! दलाल साहब भी परिवर्तित हृदय वाले हैं!
बापू (आश्चर्य व्यक्त करते हुए) : अच्छा...!
बापू (क्षुब्ध भाव से) : हृदय परिवर्तन तो ठीक है.. मगर साध्य और साधन की पवित्रता, पुत्र?
मुन्नालाल (खिन्न भाव से) : ...डेंगू के कारण मौत हो गई।
बापू (जिज्ञासा व्यक्त करते हुए) : मगर महाराणा प्रताप...?
मुन्नालाल (पूर्व भाव से) : महाराणा प्रताप! ...उस ऊदबिलाऊ की खोज में जंगल-जगंल भटक रहा है, जिसने उसके पुत्र के हाथ से घास की रोटी का टुकड़ा छीन लिया था।
(बापू ने क्षुब्ध भाव से मुन्नालाल की ओर देखा)
मुन्नालाल (पूर्व भाव से) :
...बापू चलें या अभी और?
(लाठी टेकते-टेकते बापू का खिन्न भाव के साथ राजघाट की तरफ प्रस्थान। मुन्नालाल भी उनके पीछे-पीछे चल देता है।)
(कल : बापू का टिकट के लिए आवेदन ...जारी)
संपर्क- 9868113044

1 comment:

  1. यह तो क्लियर हो गया कि बापू के नाम से टिकट नहीं मिलता। बापू का नाम कुछ वोट भले दिला दे।

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