Tuesday, May 6, 2008

अमेरिका की टांग


अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने कह दिया भारत के लोगों की थाली का वजन बढ़ता जा रहा है, इसलिए महंगाई बढ़ रही है। इससे पूर्व अमेरिका कि विदेश मंत्री कांडोलीजा राइस ने इसी जुमले को हवा में फेंका था। किंतु उसे लेकर कुछ ज्यादा हो-हल्ला नहीं हुआ। शायद इसलिए कि कांडोलीजा नाम से ही किसी भयानक बीमारी से पीडि़त सी लगती हैं। अब बीमारी हो या बीमारी से पीडि़त, उसकी बात को गंभीरता से क्या लेना।
लेकिन बुश साहब ने जब उसी जुमले को दोहराया तो काफी हो-हल्ला मच रहा है। बुश के इस जुमले को लेकर केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के अलावा पूरे भारत में सनसनी फैल गई। बुश का जुमला और उस पर मनमोहन सिंह जी की चुप्पी, विपक्ष के हो-हल्ला करने के लिए बैठे-बिठाए दो मुद्दे मिल गए। विपक्ष के हो-हाल्ले करने में हमें किसी प्रकार के आश्चर्य का कोई कारण नहीं दिखाई दे रहा है। बेरोजगार के पास इसके अलावा काम भी क्या होता है। इसके अलावा विपक्ष की सार्थकता भी इसी में है कि कुछ हो या न हो, किंतु हल्ला होना चाहिए। वैसे भी विपक्ष जब है ही वि-पक्ष अर्थात पक्ष रहित।
हमारी चर्चा का विषय भी आज बुश का जुमला और उस पर मनमोहन सिंह की चुप्पी ही है। मनमोहन सिंह की चुप्पी को मैं दो प्रकार से देखता हूं। प्रथम, बुश से पूर्व मनमोहन सिंह खुद महंगाई का कारण आम आदमी की थाली का बढ़ते वजन बता चुके हैं। बुश ने तो केवल दोस्ती का निर्वाह करते हुए उसे दोहराया है। फिर मनमोहन सिंह जी उस पर हो-हल्ला क्यों करें? द्वितीय, मनमोहन सिंह कोई राजनीतिक व्यक्ति तो है नहीं, इसलिए वे राजनीति की भाषा बोलना नहीं जानते हैं। इससे पहले एक-दो मुद्दों पर उन्होंने प्रतिक्रिया जाहिर की भी, तो विपक्ष उस पर भी परम् कर्तव्य-निर्वाह करने से बाज नहीं आया, इसलिए उचित यही है कि मौन रहो। कहते हैं कि मौन मूर्खता पर पर्दा डाल देता है। राजकुमारी के स्वयंवर में कालिदास को उसके शुभ चिंतकों ने इसीलिए मौन रहने की सलाह दी थी और सलाह कामयाब भी निकली। राजकुमारी कलिदास के पल्ले में आ गिरी। अत: मनमोहन सिंह जी का चुप रहना कोई मुद्दा नहीं है।
जहां तक बुश-वचन का प्रश्न है, दूसरों के बैडरूम और किचन में झांकना प्रत्येक विचार-शील इनसान की प्रवृत्ति है। इनसान यदि जबरदस्त हो, तो स्वत: ही यह उसका मौलिक-अधिकार बन जाता है। अमेरिका ने पहले इराक की रसोई में ताकझांक की, वहां तेल की पीपों में उसे तेजाब नजर आया। अब ईरान की रसोई उसे तेजाबी लगने लगी है। पाकिस्तान के तो बैडरूम से लेकर किचिन तक में जो भी पकता है, उसी के इशारे पर पकता है। अब भारत की रसोई में भी ताकझांक शुरू कर अपने मौलिक अधिकार का सद्-उपयोग करने का संकेत दे दिया है।
इसके अलावा दूसरों के फटे में अपनी टांग का प्रवेश कराना, कुछ लोग अपना जन्म-सिद्ध अधिकार मानते हैं। अमेरिका ने इसके लिए शायद एक टांग स्पेयर में रखी हुई है। संभवतया उस टांग की इंचार्ज कोंडोलीजा जी हैं। जब कहीं भी थोड़ा सी सीवन उधड़ी हुई दिखती है, जुबान के माध्यम से टांग हरकत में आ जाती है। सीवन यदि कहीं उधड़ी दिखलाई न भी दे तो भूत के समान टांग खुद-अ-खुद कुलबुलाने लगती है। फिर टांग के लिए स्पेस खोजना अमेरिका की मजबूरी हो जाती है, नहीं तो टांग उसके फटे में ही प्रवेश करने के लिए बाध्य हो जाएगी। अमेरिका मजबूर है उसे अपनी टांग कहीं न कहीं तो व्यस्त रखनी ही है। नहीं, तो कौन कहेगा अमेरिका भी कोई महाशक्ति है, जिसे अपनी उघड़ी हुई की फिक्र नहीं दूसरों की उधड़ी हुई की चिंता है। अंत में हम वही कहेंगे, जो दो-तीन दिन पहले कहा था। आतंकवादी लंबरदारी के लिए वह खुद दोषी नहीं है। दोष सारा कोलंबस का है, क्या जरूरत थी उसे अमेरिका खोजने की। वह न अमेरिका खोजता, न उसकी टांग किसी अन्य की सीवन उधेड़ती।
संपर्क- 9868113044

3 comments:

  1. कम से कम हमारे मनमोहन सिंह जी को एक बार बुश साहब को फ़ोन कर धन्यवाद तो बोल ही देना चाहिए, आखिर इतने बड़े रहस्य से पर्दा उठाया हे उन्होने

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  2. आपसे सहमत हूँ कि गलती कोलम्बस की है. :)

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  3. भई वाह अच्छा जमाया है ।

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