Sunday, June 1, 2008

मंत्री जी की अंगूठी

बिना विभाग के मंत्री जी ने उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक बुलाई। बैठक में राष्ट्र के सर्वागीण विकास से संबद्ध योजना पर चर्चा की जानी थी। क्योंकि मंत्रालय बिना विभाग का था, इसलिए सर्वागीण विकास पर ही चर्चा लाजिम थी और मजबूरी भी। कांफ्रेंस हाल में एक-एक कर विभाग के सभी उच्चधिकारी उपस्थित हो चुके थे। बस शेष रह गए थे मंत्री जी। उपस्थिति पूर्ण होने की सूचना मंत्री जी के पास भेजी गई और इसी के साथ मोबाइल पर बतियाते-बतियाते मंत्री जी ने कांफ्रेंस हाल में प्रवेश किया। एक-एक कर सभी मातहतों ने उनकी चरण वंदना की। चरण वंदना कराना मंत्री जी का शौक था और करना मातहतों का परम कर्तव्य। चरण वंदना के घनत्व के आधार पर मंत्री जी अपने मातहतों की निष्ठा, कर्तव्य और कर्तव्य के प्रति ईमानदारी का आंकलन करते हैं।

मंत्री जी ने मोबाइल पीए साहब के हाथ में थमाया और दोनों हाथों की अंगुलियां एक दूसरे के बीच फंसाने की अदा का प्रदर्शन करते हुए तशरीफ का टोकरा कुर्सी पर टिकाया। मंत्री जी अभी पूरी तरह टिक भी न पाए थे कि दाएं हाथ की अंगुलियों से बांए हाथ की अंगुलियों के उद्ंगम स्थल को सहलाते हुए हवा में ऐसे उछले मानो कुर्सी के नीचे किसी ने आग लगा दी हो। इसके साथ ही उनके मुंह से निकला, 'हाय, मेरी अंगूठी!'

समूचा कांफ्रेंस हाल 'हाय मेरी अंगूठी' की प्रतिध्वनि से गुंजायमान हो गया।

पीए के मुंह से निकला 'हाय, मेरी अंगूठी' सचिव के मुंह से निकला 'हाय, मंत्री जी की अंगूठी'

मैडम बटरफ्लाई के मुंह से निकला 'हाय! उनकी अंगुठी।'

मानों सभी के टेप में एक ही नारा रिकार्ड था, 'हाय, अंगूठी-हाय अंगूठी।'

वैसे तो बिना विभाग के मंत्रालय के वरिष्ठं-कनिष्ठं सभी अधिकारी व्यवहारिक प्रकृति के जीव थे अर्थात प्रेक्टिकल एप्रोची थे। सभी अधिकारी खुला मक्खन हाथ में लिए घूमते थे, मगर मक्खनी आंखों वाली मैडम बटरफ्लाई उनमें बेजोड़ थी।

बटरफ्लाई मैडम का असली नाम नहीं था। असली नाम उनके स्वभाव से मेल नहीं खाता था। दरअसल मैडम बटरफ्लाई जब भी किसी की तरफ ताकती थी तो लगता था मानों उनकी आंखों से मक्खन की बौछार हो रही है। मंत्री व अधिकारियों के चारो तरफ ऐसे भिन-भिनाती रहती थी, जैसे फूल के चारों तरफ बटरफ्लाई और सुविधानुसार अपनी पसंद के किसी फूल पर काबिज होने के बाद उसके पराग का रसास्वादन तब तक जारी रखती थी, जब तक निचुड़ा फूल निरीह अवस्था में धरती की तरफ ताकने के लिए मजबूर नहीं हो जाए। ऐसे ही कई फूलों को वह मोक्ष की अवस्था तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त कर चुकी थी। इसी विशेषता का आकलन करते हुए उनके सहकर्मियों ने उनका नाम बटरफ्लाई रख दिया था।

मंत्री जी के चेहरे पर पुरवा हवा के शुष्क झोंके स्पष्ट दिखलाई दे रहे थे। उन्हें लग रहा था, अंगुली से अंगूठी नहीं, वर्षो की कड़ी मेहनत से प्राप्त कुर्सी आज यकायक खिसक रही है।

मनुष्य जब-जब भी संकटावस्था में होता है, उसका अध्यात्म जागृत हो जाता है। कुछ क्षण के लिए मंत्री जी भी अध्यात्म की गंगा में सशरीर गोते लगाने लगे। सामने पड़ी कुर्सी आज उन्हें रज्जाू में सर्प की भांति भ्रम लग रही थी। जगत के मिथ्यात्व का यथार्थ ज्ञान पुष्ट हो रहा था। अत: वह कुर्सी पर पुन: विराजमान होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे।

कांफ्रेंस हाल मौन था। मंत्री जी के सामने सभी अधिकारी हाथ बंधे सिर झुकाए गिरजाघर में एकत्रित श्रद्धालुओं की मुद्रा में खडे़ थे। मैडम बटरफ्लाई ने मौन तोड़ा, 'सर! क्या हुआ, आप की अंगूठी को? घर तो ठीक-ठाक थी!'

अबोध किसी बालक के समान रुंधे गले से मंत्री जी बोले, 'कहीं गिर गई।'

समूचे कांफ्रेंस हाल के मुंह से निकला, 'गिर गई!' और गिर गई की इस आवाज के साथ ही समूचा कांफ्रेंस हाल गतिमान हो गया। मैडम बटरफ्लाई ने मौके की नजाकत भांपते हुए मंत्री जी के चरणों में मोर्चा जमाया और वह दंडवत अंदाज में उनके चरण तले अंगूठी खोजने लगी। मैडम का अनुसरण करते हुए जो जहां खड़ा था, वहीं झुका और अपने-अपने पैरों तले अंगूठी ऐसे खोजने लगा, मानो मंत्री जी की अंगूठी नहीं उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई हो। यह मंत्री जी के प्रति उनकी निष्ठा का प्रदर्शन था।

सचिव साहब ने हाल के चारों कोनों की खाक उड़ाई तो पीए साहब ने फर्श पर बिछे गलीचे की। मानों अंगूठी नहीं, राजनीति की गेंद हो गई थी, अंगूठी। अत: सभी ने अपने-अपने पाले में तलाशी। मगर गेंद किसी के हाथ नहीं लग पाई। शायद किसी और के पाले में चली गई थी। राजनीति स्वयं गेंद खिसकाने का खेल है। एक दूसरे के पाले में खिसका कर खिलाड़ी स्वयं ही ताली बजाते हैं।

तलाश की हताशा के बाद मैडम बटरफ्लाई ने मंत्री जी का हाथ पकड़ा और दिलासा के साथ उन्हें कुर्सी पर बिठाया। एक-एक कर सभी अपने-अपने आसन पर विराजमान हो गए और अंगूठी को लेकर चिंतन-मंथन का दौर शुरू हुआ। पहल पुन: मैडम ही ने की, 'सर! घर फोन करूं शायद वहीं छूट गई हो।'

'नहीं! कमबख्त फोन भी नहीं मिल रहा है।'

'सर! यह तो अपशकुन है। अंगूठी भी गायब है, फोन भी नहीं मिला!'

'यही सोच-सोच कर तो मैं चिंतित हूं।'

सचिव बोले, 'सर! मुझे तो इस मामले में विपक्ष की साजिश लगती है।'

'ठीक ही कहते हो, मेहता जी। विदेशी हाथ भी हो सकता है।' पीए साहब बोले।

मंत्री जी ने चेहरे पर हाथ फेरा और बोले, 'मुझे अपनी कुर्सी की चिंता नहीं है, मेहता साहब। हालांकि बाल्टी बाबा से यह अंगूठी मिलने के बाद ही मुझे मंत्री पद मिला था। मगर इसी तरह यदि मंत्रियों की अंगूठियां गायब होती रही तो एक दिन सरकार का भी पतन हो जाएगा। सरकार यदि गिर गई तो इस देश का क्या होगा? बस मैं तो यही सोच-सोच कर परेशान हूं, मैडम!'

मक्खनी आंखों में आंसू छलकाते हुए मैडम बोली, 'ठीक कहते हो सर! आप हमेशा ही इस देश की चिंता में भुनते रहे हैं। अंगूठी का खोना मुझे भी किसी गंभीर साजिश का परिणाम लगता है।'

सचिव बोले, 'क्यों न इस बारे में प्रधानमंत्री जी को अवगत करा दिया जाए।'

बटरफ्लाई बोली, 'नोट तैयार करूं, सर!'

मंत्री जी ने सचिव को झाड़ पिलाई, 'मेहता साहब कभी-कभी तो मूर्खता की सभी हदें पार कर जाते हो। प्रधानमंत्री जी को बताने का नतीजा जानते हो? अभी इस मामले को यहीं दबा रहने दो।'

मंत्री जी का मोबाइल घन-घनाया। मंत्री जी जंग खाई तार से कांप गए। उन्हें लगा कि बात शायद प्रधानमंत्री जी तक पहुंच गई है और फोन त्यागपत्र देने का आदेश लिए हुए है।

मंत्री जी ने फोन ऑन किया, 'यऽऽऽस! यस, सर!!!'

आवाज प्रधानमंत्री की नहीं मंत्री जी की पत्‍‌नी की थी। हड़काने का लहजा लिए पत्‍‌नी की आवाज कान में पड़ी, 'अंगूठी भूल गए! हां, हां, हां, बाथरूम में।'

'ओऽऽऽहो! सॉरी, मैडम आज स्नान किया था।'

'मना किया था, स्नान मत किया करो, जब भी स्नान करते हो कोई न कोई अपशकुन हो जाता है।'

'वेरी सॉरी! आइंदा ध्यान रखूंगा।'

बटर फंलाई ने आंसू पोंछ मक्खन का सटीक उपयोग करते हुए पूछा, 'सर! कॉल कौन सी मैडम की थी?'

मंत्री जी के चेहरे पर भी पुरवा के स्थान पर पछवा हवा के अस्थाई चिन्ह प्रकट हुए और बोले, 'पत्‍‌नी की, अंगूठी मिल गई। आज स्नान किया था। अंगूठी बाथरूम में ही भूल आया। कमबख्त जब कभी स्नान करता हूं, कोई न कोई अपशकुन हो ही जाता है। अंगूठी बाल्टी बाबा ने दी थी। स्नान से परहेज करने की सलाह लोटा बाबा ने दी थी।'

'सऽऽऽर! इसी खुशी में फिर तो लंच हो जाए।'

बटफ्लाई के मुंह से लंच निकला और सचिव महोदय ने एक गाड़ी पंचतारा होटल रवाना कर दी और दूसरी गाड़ी अंगूठी लेने के लिए मंत्री जी के निवास पर। पत्‍‌नी पहले ही अंगूठी लेकर तीसरी गाड़ी मंत्री जी के कार्यालय की ओर रवाना कर चुकी थी।

शाम होते-होते प्रधानमंत्री कार्यालय से एक फरमान जारी हुआ, 'कोई भी मंत्री किसी भी स्थिति में अंगूठी नहीं उतारेगा। आदेश की अवहेलना करने वाले मंत्री के खिलाफ पोटा के तहत कार्रवाई की जा सकती है।'

आपात स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष से विभिन्न रत्न जड़ित अंगूठियां तैयार कराने के आदेश भी दे दिए जा चुके थे। ताकि वक्त-जरूरत पर काम आ सके और सरकार पर आने वाले संभावित खतरे को टाला जा सके।

संपर्क : 9717095225

3 comments:

  1. क्या जबरदस्त व्यंग्य है.
    " क्योंकि मंत्रालय बिना विभाग का था, इसलिए सर्वागीण विकास पर ही चर्चा लाजिम थी और मजबूरी भी। "
    "आपात स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष से विभिन्न रत्न जड़ित अंगूठियां तैयार कराने के आदेश भी दे दिए जा चुके थे। ताकि वक्त-जरूरत पर काम आ सके और सरकार पर आने वाले संभावित खतरे को टाला जा सके।"
    अद्भुत लेखन है.
    सच्चाई के बिल्कुल करीब.

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  2. गजब भाई गजब...क्या करारा आलेख है, मजा आ गया. सुपर..सुपरर्ब!! जियो.

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  3. रख के दे दिए हो हजूर!

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