Monday, February 16, 2009
ग़ज़ल
सुहाने चाँद-से मुख पर तुम्हारे क्यों उदासी है?
तुम्हारी हर अदा पर तो फ़जा करवट बदलती है।।
पुरानी इन किताबों में, किसी के प्यार की गाथा।
ज़रा पढ़कर इसे देखो, कुँआरी ये कहानी है।।
न रोको आँसुओं को तुम, इन्हें बहने ही दो थोड़ा।
तुम्हारे ज़हन पर काली घटा सदमों की छाई है।।
हवाओं से कहा जाए, न छेड़े सुर यहाँ अपना।
व़फा की मौत से पैदा, यहाँ गहरी उदासी है।।
ज़रा देखो सितारों को, ये' कहना तुमसे कुछ चाहें।
मगर कहने से डरते हैं, तुम्हारी माँग सूनी है।।
व़फा के नाम पर क़समें, न खाओ बेव़फा तुम हो।
फरेबों-मक्र की चादर, तुम्हारे दिल ने ओढ़ी है।।
घटा 'अंबर' पे घिर आई, बुझाए प्यास वो किसकी।
किसी का जिस्म प्यासा है, किसी की रूह प्यासी है।।
संपर्क : 9717095225
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व़फा के नाम पर क़समें, न खाओ बेव़फा तुम हो।
ReplyDeleteफरेबों-मक्र की चादर, तुम्हारे दिल ने ओढ़ी है।।
-वाह! बहुत उम्दा.
waah lajawaab,har sher aafrin
ReplyDeleteउदासी लिख दी जाये तो शायद धीरे धीरे हवा में विरल हो जाती है। यही मान कर चलना चाहिये।
ReplyDeleteघटा 'अंबर' पे घिर आई, बुझाए प्यास वो किसकी।
ReplyDeleteकिसी का जिस्म प्यासा है, किसी की रूह प्यासी है।।
bahut bahut sunder
घटा 'अंबर' पे घिर आई, बुझाए प्यास वो किसकी।
ReplyDeleteकिसी का जिस्म प्यासा है, किसी की रूह प्यासी है।
.....वाह..खूबसूरत ग़ज़ल...बधाई.
नीरज
बेहतरीन कहा है आपने........ वाह.. त्यागी जी, वाह....
ReplyDeleteहवाओं से कहा जाए, न छेड़े सुर यहाँ अपना।
ReplyDeleteव़फा की मौत से पैदा, यहाँ गहरी उदासी है।।
वाह ! क्या बात है ।
हवाओं से कहा जाए, न छेड़े सुर यहाँ अपना।
ReplyDeleteव़फा की मौत से पैदा, यहाँ गहरी उदासी है।।
wafa kee mout se. khubsurat andaz zanab ambarsaab.mubarak,achhesher likhe hai
bezar
राजेन्द्र जी बहुत दिनों से आपकी कोई रचना नही देखी ।
ReplyDeleteराजेन्द्र जी बहुत उम्दा.. हर शेर बहुत खूबसूरत है.. उसके साथ ही आपका तखल्लुस भी बहुत खूबसूरत है...
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