एक गोष्ठी में जाना हुआ। चर्चा का विषय था, 'क्या भारत कृषि प्रधान देश है।' विषय सामयिक था। सभी विद्वान वक्ताओं के भिन्न-भिन्न मत थे, अत: वक्ताओं ने पक्ष-विपक्ष दोनों ही पहलुओं पर जमकर लतरानी की और विद्वत्ता का परिचय दिया। कहते हैं कि जहां सभी एक मत के लोग हों, वहां विद्वत्ता का अभाव होता है।
पहले वक्ता मुन्नालाल थे। उनका मानना था कि भारत कृषि प्रधान देश है। क्योंकि किसान आत्महत्या कर रहे हैं और उनके मुक्ति-आन्दोलन को मीडिया बराबर तरजीह दे रहा है। मीडिया केवल प्रधान विषयों को ही प्रधानता प्रदान करता है। बजट में किसानों के दयनीय हालत पर चिंता व्यक्त करते हुए, कर्ज-माफ किया गया। प्रधानमंत्री और भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी भी किसानों की दयनीय स्थिति पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं। सोनिया जी तो रहती ही चिंतित है। भारत यदि कृषि प्रधान देश न होता, तो सरकार किसानों को लेकर चिंतित न होती।
दूसरे वक्ता मास्टर मुसद्दीलाल मुन्नालाल जी के मत से सहमत नहीं थे। उनका कहना था कि किसान की आत्महत्या के अकेले तर्क के आधार पर देश की अर्थ-प्रधानता का निर्धारण करना बेमानी होगा। उन्होंने बल देते हुए कहा कि भारत कृषि-प्रधान नहीं भ्रष्टाचार प्रधान देश है, क्योंकि समूची अर्थ व्यवस्था भ्रष्टाचार के फन पर उसी प्रकार टिकी है, जिस प्रकार शेषनाग के फन पर पृथ्वी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की थी।। उनके कहने का तात्पर्य था कि एक रुपये में से केवल 8भ् पैसे ही भ्रष्टाचार के माध्यम से देश की अर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रहे हैं, शेष क्भ् पैसे फिजूल ही जाया हो रहे हैं। ऐसी ही चिंता भाव प्रधानमंत्री राहुल गांधी भी व्यक्त कर चुके हैं। हकीकत में भ्रष्टाचार का यह शिष्टाचार जिस दिन लुप्त हो जाएगा, अर्थ व्यवस्था रसातल में चली जाएगी। अत: इस देश में कृषि नहीं, भ्रष्टाचार प्रधान है।
मास्टर मुसद्दीलाल के उपरांत माइक संभाला प्रो. खैराती लाल जी ने। उनका मत पूर्व दोनों वक्ताओं से भिन्न था। उन्होंने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि यह महंगाई प्रधान देश है। इस देश में ईमान के अलावा सभी कुछ महंगा है। इस देश में निरंतर यदि किसी ने प्रगति की है, तो वह महंगाई ही है। महंगाई हमेशा ही महंगी रही है, कभी सस्ती नहीं हुई। महंगाई जीवन-संगनी ही नहीं, पनघट से मरघट तक साथ देने वाली दिव्य प्रेयसी है। महंगाई देश की सुदृढ़ अर्थिक स्थिति का प्रतीक है। महंगाई का कद राजनीति से भी बड़ा हो गया है। महंगाई के बढ़ते रुतबे को देखकर पक्ष-विपक्ष दोनों आतंकित हैं। प्रधानमंत्री, भावी प्रधानमंत्री, राजमाता और पी.एम. वेटिंग सभी इस पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं। किंतु यह भी सभी जानते हैं कि जिस दिन इस देश में 'टके सेर भाजी, टके सेर ख़्ाजा बिकने लगेगा' यह देश लाल बुझक्क्ड़ का देश कह लाया जाने लगेगा। कौन सरकार चाहेगी कि महंगाई दर में कटौती कर लाल बुझक्क्ड़ की सरकार कहलाए। अत: यह देश महंगाई प्रधान देश है।
संगोष्ठि-कक्ष से बाहर निकल कर हम सोच रहे हैं कि सभी वक्ता अपूर्ण सत्य का बखान करते रहे। पूर्ण सत्य की और किसी का ध्यान नहीं गया। यह देश न कृषि प्रधान है, न भ्रष्टाचार प्रधान और न ही महंगाई प्रधान है। यह देश चिंता प्रधान देश है। क्योंकि इस देश में प्रत्येक समस्या का समाधान केवल मात्र चिंतित होना है। यही पूर्ण सत्य है।
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सभी ओर से, सभी दिशाओं से चिंतायें आयें और हमें सुपुष्ट करें। हे देवाधिदेव! ये चिंतायें हमें गुमनामी से प्रसिद्धि की ओर, अकेले पन से आकर्षण के केन्द्र की ओर और चलती फिरती अवस्था से चिता की ओर ले चलें! :D
ReplyDeleteसत्य वचन!! साधु साधु!!
ReplyDeleteबिल्कुल सही।
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