Tuesday, January 13, 2009



ग़ज़ल
बे-सबब ही झुक गई उनकी नज़र।
चाँद से हमने मिलाई थी नज़र।।

झील-सी आँखों में चाहा झांकना।
क्यों चुराली आपने अपनी नज़र।।

दीप यादों के हुए रौशन मगर।
बंद पलकों से मिली उनकी नज़र।।

झुक गए हैं फूल सारे शाख्‍़ा पर।
क्या इशारा कर गई तेरी नज़र।।

थम के रह जाएगी सारी कायनात।
अब उठाओ तुम झुकी अपनी नज़र।।

फूल सा लेकर बदन वो आ गए।
हो गई हैरान हर इक की नज़र।।

अक्स 'अंबर' का सँवर ही जायगा।
जब भी उठेगी वो शीशे-सी नज़र।।

संपर्क : 9717095225

4 comments:

  1. थम के रह जाएगी सारी कायनात।
    अब उठाओ तुम झुकी अपनी नज़र।।


    -वाह, उम्दा गज़ल!

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  2. बेहतरीन गज़ल.........

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  3. अब उठाओ तुम झुकी अपनी नज़र।।
    ----
    अत्यन्त मोहक लगी गज़ल।

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  4. झील-सी आँखों में चाहा झांकना।
    क्यों चुराली आपने अपनी नज़र।।
    achha likha hai .mubarak ho
    ye jheel ka safar jaree rahe.
    bezar dehlvee

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