Wednesday, October 17, 2007
केकड़ा संस्कृति
आज आपको एक कहानी सुनाता हूं। कहानी गूढ़ है, मगर नेताई चरित्र की तरह उलझी हुई नहीं। कहानी को हम रहस्यवादी भी कह सकते हैं, मगर उसका रहस्य राजनीति की तरह अगम-अगोचर नहीं है, क्योंकि यह आपके चारों तरफ की कहानी है, परीलोक या परलोक की नहीं इसी मिथ्या संसार की कहानी है। इसी समाज से जुड़ी कहानी है, लोकतंत्र की कहानी है। वैयक्तिक स्वतंत्रता की कहानी है। घर-घर की कहानी है, सास-बहू की कहानी है, आपकी अपनी कहानी है। हम सभी इस कहानी के पात्र हैं। कुछ पीड़ित पात्र हैं, कुछ पीड़ादायक अर्थात पीड़ा-कारक पात्र हैं।
लो सुनो कहानी- चीन ने भारत से केकड़े आयात किए। केकड़े कंटेनर में भर जहाज में लाद दिए गए। मंजिल की और रवाना होने से पूर्व चीनी-कप्तान ने जहाज का निरीक्षण किया और फिर जोर से चिल्लाया, 'अरे, मूर्खो! जहाज रवाना होने वाला है और केकड़ों से भरे सभी कंटेनरों के ढक्कन खुले पड़े हैं। क्या मूर्खता है, बंद करों इन्हें। ढक्कन खुले रहे तो सभी केकड़े कंटेनरों से बाहर निकल कर समुद्र में चले जाएंगे।'
कप्तान की बात सुन उसका सहायक मुस्कराया और फिर विनम्र भाव से बोला, 'हुजूर यह चिंता का विषय नहीं है, ढक्कन बंद करने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। भारतीय केकडे़ हैं, कहीं नहीं जाएंगे।'
सहायक का रहस्यमय कथन कप्तान को मूर्खतापूर्ण लगा। परंपरा भी है, जब कभी कोई रहस्य अनसुलझा रह जाता है, तो उसे मूर्खता के खाते में डाल कर खाता बंद कर दिया जाता है। कप्तान पुन: चिल्लाया, 'मूर्खतापूर्ण बातें बंद कर, आदेश का पालन करो।'
सहायक फिर मुस्कराया और कप्तान से कंटेनरों के अंदर झांकने के लिए प्रार्थना की। कप्तान ने एक-एक कंटेनर में झांकना शुरू किया और अंदर का दृश्य देख आश्चर्यचकित रह गया। सभी केकड़े एक दूसरे के साथ उलझे हुए थे। जो भी केकड़ा कंटेनर से बाहर निकलने का प्रयास करता दूसरा केकड़ा टांग खींच उसे नीचे गिरा देता। रहस्य-रोमांच से भरपूर उस दृश्य को देख कप्तान ने आश्चर्य-भाव के साथ सहायक से पूछा, 'यह सब क्या है?'
रहस्यमयी पहली सुलझाते हुए सहायक बोला, 'हुजूर इसे केकड़ा संस्कृति कहते हैं। मैने कहा था ना, ये भारतीय केकड़े हैं, एक दूसरे को बाहर नहीं निकलने देंगे। भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से बहुत लगाव होता है, उसका सहज त्याग नहीं करते।'
कहानी समझ आई, ना। यह कहानी न केवल एटमी-डील के हश्र की है! अपितु समूची भारतीय राजनीति की है। आपके चारो-तरफ की आपकी अपनी कहानी। महसूस कर रहे हो ना, किसी न किसी रूप में हम सभी इस कहानी के एक पात्र हैं। कंटेनर से बाहर निकल मैं खुली हवा में सांस ले सकूं अथवा नहीं, पड़ोसी कंटेनर से बाहर नहीं जाना चाहिए। मेरे सपने साकार हों न हों, लेकिन दूसरों के सपनों में पलीता लगना जरूरी है। संपर्क : 9868113044---
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बेहतरीन एवं धांसू.
ReplyDeleteएकदम सच्ची बात कही आपने। होना तो चाहिए था स्वस्थ कंपटीशन, मगर होती है यह टांग खिचौवल। कहानी और आपके कहने की स्टाइल काफी रोचक है।
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